राहुल के साथ-साथ वामपंथी गिरोह के कुछ पत्रकारों और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी राहुल द्वारा झूठ की बुनियाद पर उठाए गए इस मामले में तरह-तरह के दुष्प्रचारों को हवा देने का काम किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब एकबार पुनः उन सभी के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने राफेल को लेकर राहुल गांधी को डांट पिलाई थी। लेकिन यदि इन चीजों से सबक ले लें तो राहुल गांधी, राहुल गांधी कैसे रह जाएंगे।
कहते हैं कि किसी झूठी बात को सौ बार कहें तो वो सच मान ली जाती है। इस बात को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया इसीलिए राफेल सौदे को लेकर हर तरफ से नकारे जाने के बावजूद लगातार झूठ फैलाते रहे हैं। राहुल के साथ-साथ वामपंथी गिरोह के कुछ पत्रकारों और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी राहुल द्वारा झूठ की बुनियाद पर उठाए गए इस मामले में तरह-तरह के दुष्प्रचारों को हवा देने का काम किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अब एकबार पुनः उन सभी के मंसूबों पर पानी फेर दिया है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने राफेल को लेकर राहुल गांधी को डांट पिलाई थी। लेकिन यदि इन चीजों से सबक ले लें तो राहुल गांधी, राहुल गांधी कैसे रह जाएंगे।
बीते 14 नवम्बर को राफेल मामले में पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पुनः यह स्पष्ट कर दिया कि राफेल मामले में मोदी सरकार का काम एकदम पाकसाफ है। यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट का है जिसके बाद यह पूर्ण रूप से साबित होता है कि राफेल की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है।
राफेल विमान सौदा भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच सितंबर 2016 में हुआ था। इसके तहत भारतीय वायुसेना को 36 अत्याधुनिक लड़ाकू विमान मिलेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सौदा 7.8 करोड़ यूरो (करीब 58,000 करोड़ रुपए) का है।कांग्रेस ने दावा किया था कि यूपीए सरकार के दौरान एक राफेल फाइटर जेट की कीमत 600 करोड़ रुपए तय की गई थी। मोदी सरकार के दौरान एक राफेल करीब 1600 करोड़ रुपए का पड़ेगा।
जाहिर सी बात है कि दोनों सरकारों के बीच सौदे को लेकर इतना अंतर कैसे आया। तो इसका जवाब यह है कि यूपीए सरकार के दौरान सिर्फ विमान खरीदना तय हुआ था। इसके स्पेयर पार्ट्स, हैंगर्स, ट्रेनिंग सिम्युलेटर्स, मिसाइल या हथियार खरीदने का कोई भी प्रावधान उस मसौदे में शामिल नहीं था।
जबकि मोदी सरकार ने जो डील की, उसमें इन सभी बातों को शामिल किया गया है। राफेल के साथ मेटिओर और स्कैल्प जैसी दुनिया की सबसे खतरनाक मिसाइलें भी मिलेंगी। मेटिओर 100 किलोमीटर तक मार कर सकती है जबकि स्कैल्प 300 किमी तक सटीक निशाना साध सकती है। लेकिन कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राफेल के सौदे में घोटाला हुआ है। इसी खोखले मुद्दे को लेकर वो लोकसभा चुनावों में उतरी और जनता ने राफेल के मामले पर राहुल के हर झूठ का जवाब अपने वोट से दिया। परिणाम यह हुआ कि एक बार फिर कांग्रेस बुरी तरह से हार गई।
राफेल पर अनेक बार झूठे साबित हुए राहुल
राफेल प्रकरण में झूठ की राजनीति करने वाले राहुल गांधी के झूठ जब-तब बेनकाब भी होते रहे। जब सुप्रीम कोर्ट, राफेल सौदे के लीक दस्तावेजों को सबूत मानकर मामले की दोबारा सुनवाई के लिए तैयार हो गया था, तब इस पर राहुल ने कहा था कि कोर्ट ने भी मान लिया है कि चौकीदार ने ही चोरी की है, जिसके बाद भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने राहुल के खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज कराया।
तब राहुल ने जवाब में अपने झूठ को मानते हुए स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ‘चौकीदार चोर है’ टिप्पणी नहीं की थी। यह सब चुनाव प्रचार के दौरान गर्म माहौल में उनके मुंह से निकल गया था। इस विषय में ताजा फैसले में कोर्ट ने राहुल को माफ़ी तो दे दी, लेकिन इस चेतावनी के साथ कि आगे से वे सतर्क रहें।
फ़्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का नाम लेकर भी राहुल ने झूठ बोला जिसे खुद ओलांद ने नकार दिया। इसके अलावा राहुल ने कहा था कि वर्तमान में फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने उन्हें एक मुलाकात के दौरान बताया कि राफेल सौदे में किसी तरह की गोपनीयता का प्रावधान नहीं है और रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने पीएम के कहने पर संसद में झूठ बोला है। जितना ऐतिहासिक यह झूठ था उतना ही ऐतिहासिक कदम उठाते हुए फ़्रांस की सरकार ने संसद की कार्यवाही के बीच में ही बयान जारी कर कहा कि मैक्रों ने राहुल गांधी से ऐसा कुछ नहीं कहा था।
इस प्रकरण में राहुल गांधी देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी झूठ बोलने वाले नेता के रूप में स्थापित हुए। राफेल की कीमत को लेकर भी राहुल ने अपने बयान समय-समय पर बदले। कभी 700 करोड़, कभी 500 करोड़ तो कभी 570 रुपए भी।
इस पूरे विषय को थोड़ा और विस्तार से समझें तो 2014 से 2019 तक निर्विवाद रूप से नरेंद्र मोदी की सरकार ने भ्रष्टाचार मुक्त तथा पारदर्शिता से युक्त सरकार चलाई जिसके बाद कांग्रेस को एक अदद राजनीतिक मुद्दे की कमी बड़ी शिद्दत से महसूस हुई। यहीं पर राफेल का शिगूफा लेकर न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के कथित पत्रकारों ने भी इस झूठ का खाका तैयार किया। इस झूठ की नाव पर बैठकर राहुल गांधी ने सोचा था कि 2019 लोकसभा चुनाव रुपी वैतरणी वे पार कर लेंगे जो कि नहीं हुआ। ‘चौकीदार चोर है’ पर ‘मैं भी चौकीदार’ भारी पड़ गया।
देश की वायुसेना और स्वयं देश की रक्षा जरूरतों के लिए राफेल कितना जरूरी था और कांग्रेस की सरकार इसके लिए कितनी गंभीर थी, यह इसी से पता चलता है कि 30 साल से वायुसेना राफेल विमान मांग रही थी। 2014 में मोदी सरकार आते ही यह तय हुआ कि हम राफेल खरीदेंगे। यह एक साफ़ संदेश था कि देश की सुरक्षा मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। निश्चय ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राहुल गांधी और कांग्रेस सहित पत्रकारिता का चोला पहने एक ख़ास गिरोह के सभी लोगों की उम्मीदों के मीनार भी धराशायी हो गए हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)