कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश में विभिन्न चुनावी मंचों पर स्थानीय मुद्दों पर बोलने की बजाय केवल राफेल जैसे असंगत विषय पर, बिना किसी अध्ययन व जानकारी के अनर्गल बयानबाजी की और अपनी अपरिपक्व मानसिकता का परिचय दिया। राफेल पर राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत कुछ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया और इतना सब कहते हुए वे यह भूल गए थे कि वे स्वयं नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर छूटे हुए हैं।
आखिर राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट का आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने राफेल विमान खरीद मामले में फैसला देते हुए स्पष्ट कहा कि इस सौदे की प्रक्रिया में कोई त्रुटि या कमी नहीं है। इस निर्णय के साथ ही केंद्र सरकार को ना केवल राहत मिली बल्कि विपक्ष के उन तमाम बेसिर पैर के आरोपों को भी करारा जवाब मिला है, जिनके जरिये मोदी सरकार को लगातार कोसा जा रहा था। असल में राफेल की डील इतना बड़ा मसला कभी थी ही नहीं। यदि विपक्ष ने अपने राजनीतिक द्वेष के चलते चीख-चीखकर इसका प्रलाप ना किया होता तो आज इस पर इतना समय भी अदालत का व्यर्थ ना गया होता।
असल में राफेल लड़ाकू विमान खरीदी का सौदा एक वायुसेना की आवश्यकताओं को पूरा करने दिशा में उठाया गया एक अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण कदम है। चूंकि पिछले चार साल में विपक्ष केंद्र सरकार की कोई भी खामी नहीं पकड़ पाया है और एक भी घोटाले की खबर सामने नहीं आई है, इसलिए मुद्दा विहीन विपक्ष बौखलाकर इस राफेल डील को अनावश्यक रूप से तूल देकर मुद्दा बनाने की असफल कोशिश में लगा रहा।
यही कारण है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश में विभिन्न चुनावी मंचों पर स्थानीय मुद्दों पर बोलने की बजाय केवल राफेल जैसे असंगत विषय पर, बिना किसी अध्ययन व जानकारी के अनर्गल बयानबाजी की और अपनी अपरिपक्व मानसिकता का परिचय दिया। राफेल पर राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत कुछ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया और इतना सब कहते हुए वे यह भूल गए थे कि वे स्वयं नेशनल हेराल्ड मामले में जमानत पर छूटे हुए हैं।
विपक्ष ने इस सौदे की जांच के लिए कई याचिकाएं लगाई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने गत 14 नवंबर को सभी याचिकाओं पर सुनवाई की और निर्णय को सुरक्षित रख लिया था। यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि याचिका दायर करने वालों में अरूण शौरी, प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और संजय सिंह जैसे नाम शामिल हैं। ये वही लोग हैं जो खुद के गिरेबान में झांकना पसंद नहीं करते, यदि करते तो उन्हें स्वयं की छवि का भी भान होता और ग्लानि के चलते सरकार पर अंगुली उठाना संभव नहीं हो पाता।
अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले में केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी है, तो विपक्ष की बोलती बंद हो गई है। विपक्ष ने अपने निराधार विरोध में राफेल की कीमतों को जाहिर करने की मांग की थी जबकि राहुल गांधी जैसे अपरिपक्व नेता स्वयं ही हर मंच पर राफेल का मनगढ़ंत अलग-अलग दाम बताते रहे। वे अपने आरोपों में ही संगत नहीं रह पाए।
उधर, फ्रांस की सरकारी कंपनी दसाल्ट के सीईओ ने स्वयं एक समाचार एजेंसी को साक्षात्कार देकर एकदम साफ शब्दों में कहा था कि राफेल का सौदा पूरी तरह से पारदर्शी और भारत के हित में किया गया है। इसके बावजूद विपक्ष को यह बात गले नहीं उतरी। असल में, यहां राफेल की कीमत मुख्य मुद्दा है भी नहीं, यहां तो केवल विरोध की मंशा मुख्य मसला है। आखिर विपक्ष इस कदर क्यों बौखला गया है कि व्यक्तिगत आक्षेप पर उतर आया है। शायद सत्ता से दूर रहने से उपजी कुंठा अब विपक्ष को वैचारिक दिवालियेपन की ओर धकेलती जा रही है।
इधर, भाजपा ने अब विपक्ष को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। निश्चित ही सुप्रीम कोर्ट से आया फैसला सरकार के लिए बड़ी सफलता बनकर सामने आया है। इससे सरकार को मजबूती मिलेगी। गत 11 दिसंबर को ही संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ है। कोर्ट के फैसले के बाद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को अब इस बात के लिए माफी मांगना चाहिये कि उन्होंने राफेल पर देश की छवि खराब की। राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस पर बहस की मांग की और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हमलावर होते हुए पूरे मामले पर कांग्रेस को बुरी तरह घेर लिया है। मीडिया से मुखातिब होकर शाह ने कांग्रेस पर करारा पलटवार किया है।
राहुल गांधी ने बिना किसी आधार के लगातार केंद्र सरकार पर खूब कीचड़ उछाला है, अब चूंकि कोर्ट से उन्हें करारा झटका लग चुका है तो ऐसे में उनको पलायन करने की बजाय स्वयं सामने आकर अपनी भूल स्वीकारनी चाहिये और अपने आरोपों के लिए माफी मांगनी चाहिये। वास्तव में यह सत्य की ही जीत है। शाह ने राहुल गांधी से खुले सवाल पूछे हैं कि अपनी सूचनाओं का स्त्रोत बताएं और साथ ही देश की जनता को गुमराह करने के लिए मांफी मांगें। प्रशांत भूषण तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से भी सहमत नहीं हैं। यदि कांग्रेस में नैतिक साहस होगा तो वह अपनी भूल स्वीकार करेगी अन्यथा जनता तो सब देख ही रही है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)