संघर्ष एक शास्वत सत्य है जो हर महान कार्य में संलग्न होता ही है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्वामी जी की प्रतिमा की स्थापना भी इस सत्य को स्थापित करती है। स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित करने के लिए बनी समिति के महत्वपूर्ण सदस्य डॉ. बुद्धा सिंह एवं डॉ. मनोज कुमार के अनुसार विश्वविद्यालय में राष्ट्रवादी विचारों की प्रखर उपस्थिति की एक लम्बे समय से छात्रों की मांग रही थी, इस सम्बन्ध में ही एक महत्वपूर्ण मांग स्वामी विवेकानंद की मूर्ति-स्थापना को लेकर भी थी।
आज जेएनयू के लिए ऐतिहासिक दिन है। आज इस विश्वविद्यालय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण किया गया जिनके अध्यात्म और राष्ट्रवाद ने भारत को दिशा दिखायी, युवाओं को प्रेरित किया और हमें इस देश के भविष्य के लिए एक कार्य-योजना सौंपी है। स्वामी जी की यह प्रतिमा उनके आज तक प्रासंगिक विचारों की प्रतीक, हमारे राष्ट्रीय आदर्शो के सम्मान की द्योतक तथा हर युवा दिल में धड़कने वाले स्वामी जी के विचारों का प्रतिरूप है।
संघर्ष एक शास्वत सत्य है जो हर महान कार्य में संलग्न होता ही है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्वामी जी की प्रतिमा की स्थापना भी इस सत्य को स्थापित करती है। स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा स्थापित करने के लिए बनी समिति के महत्वपूर्ण सदस्य डॉ. बुद्धा सिंह एवं डॉ. मनोज कुमार के अनुसार विश्वविद्यालय में राष्ट्रवादी विचारों की प्रखर उपस्थिति की एक लम्बे समय से छात्रों की मांग रही थी, इसी सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण मांग स्वामी विवेकानंद की मूर्ति-स्थापना को लेकर भी थी।
लम्बे समय से चली आ रही इस मांग को वास्तविक रूप से बल 2016 में मिला जब विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस योजना को न केवल मंजूरी दे दी बल्कि इस कार्य में सभी संभव सहयोग में तत्परता दिखाई। लगभग चार वर्षों के पश्चात् आज वह शुभ दिन हमारे सामने है जब ‘राष्ट्र की प्रेरणा’ स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण हुआ है।
अनावरण से एक दिन पूर्व एक विशेष कार्यक्रम में ‘स्वामी विवेकानंद का युवाओं के लिए सन्देश’ के विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गयी जिसकी अध्यक्षता जे एन यू के कुलपति प्रो. जगदीश कुमार ने की।
विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी की उपाध्यक्षा निवेदिता भिड़े दीदी ने समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में सहभाग किया। अपने सम्बोधन में निवेदिता दीदी ने स्वामी विवेकानंद के आदर्शों तथा विचारों पर बल देते हुए कहा स्वामी जी का विश्वास युवाओ में था और अब समय है कि हम उस विश्वास को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करें।
उन्होंने कहा, “स्वामी जी के सन्देश को प्रचारित तथा प्रसारित करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम उन संदेशों को अपने जीवन में उतारें क्योंकि तभी वो अपने सही रूप में उपयोग किये जा सकेंगे”। आधुनिक समाज की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हमें ‘एकात्मता’ के विचार को लेकर चलना है, सभी से सीखना है परन्तु अपनी आवश्यकतानुसार, सीखने के इस क्रम में हमारी संस्कृति की निरंतरता बहुत आवश्यक है। इस विशेष अवसर पर देश के कोने-कोने से लोगों ने भाग लिया तथा अनावरण के पूर्व संध्या पर आयोजित इस सत्र को सफल बनाया।
आज जब एक विश्वविद्यालय में स्वामी जी की प्रतिमा का अनावरण हो गया है, तब हमारे लिए यह आवश्यक है कि हम स्वामजी के शिक्षा पर रखे हुए विचारों की प्रासंगिकता समझें। वह कहते थे, ‘वह शिक्षा जो आम लोगों को जीवन के संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने में मदद नहीं करती है, जो चरित्र की ताकत, परोपकार की भावना और एक शेर की हिम्मत को बाहर नहीं लाती है– क्या वह लायक है? वास्तविक शिक्षा वह है जो किसी को अपने दम पर खड़ा करने में सक्षम बनाती है।’
अपने चिंतन में स्वामीजी युवाओं और शिक्षा को हमेशा स्थान देते थे और अब उन्हीं उन्नीसवीं शताब्दी के कर्मयोगी स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में हो रहा है। जिन स्वामी विवेकानंद ने देश और विदेश के न जाने कितने ही महापुरुषों के जीवन को प्रेरित किया, जिन्होंने पराधीन भारत को अपने पैरों पर खड़े होने कार्य-योजना बताई, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मातृभूमि की सेवा में लगा दिया तथा जिनके विचार आज भी लाखों लाख युवाओं के जीवन को दिशा देते हैं, जब आज उन्ही स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा का अनावरण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा देश के सर्वोच्च विश्विद्यालयों में से एक, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में किया गया, तो इससे ज्यादा हर्ष का विषय आखिर क्या हो सकता है।
आज हम सबको प्रतिमा के अनावरण के साथ ही यह दृढ़ संकल्प लेना चाहिए कि हम स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं वरण करेंगे और राष्ट्र-पुनर्निर्माण के कार्य में लगे रहेंगे।
(लेखक निखिल यादव- विवेकानंद केंद्र के उत्तर प्रान्त के युवा प्रमुख हैं और पुष्कर पांडेय कार्यालय प्रमुख। यह उनके निजी विचार हैं।)