लाल जी टंडन : राजनीति में सक्रिय लोगों को उनकी वैचारिक निष्ठा प्रेरणा देती रहेगी
लाल जी टंडन जैसे नेता कम ही होते हैं। उनका जीवन राजनीति में वैचारिक निष्ठा के प्रति समर्पित लोगों के लिए सदैव प्रेरणादायी रहेगा।
जयंती विशेष : भारत की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व को आत्मसात किए थे अटल जी
अटल बिहारी वाजपेयी इस देश की राष्ट्रीयता के प्राणतत्व को आत्मसात किए हुए थे। भारत क्या है, अगर इसे एक पंक्ति में समझना हो तो अटल बिहारी वाजपेयी का नाम ही काफी है। वे लगभग आधी शताब्दी तक हमारी संसदीय प्रणाली के अविभाज्य अंग रहे। अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व व कार्य-क्षमता से उन्होंने लोगों के हृदय पर राज किया।
जयंती विशेष : ‘भारत की राजनीति में ‘अटल’ सर्वथा अटल थे और अटल ही रहेंगे’
अपने 65 वर्षों के सक्रिय जीवन में 56 वर्ष वाजपेयी विपक्ष में रहे और नौ साल सत्ता में रहे। वे लोकसभा के लिए दस बार निर्वाचित हुए और राज्यसभा के लिए दो बार। वे मोरारजी देसाई मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री रहे और बाद में तीन बार प्रधानमंत्री बने। लेकिन चाहे वे विपक्ष में रहे हों या सत्ता में, अटलजी ने आजादी के बाद से ही देश के विकास में मौलिक
‘राजनीति के महानायक और देश के सर्वमान्य नेता थे अटल बिहारी वाजपेयी’
अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन का अधिकांश समय विपक्ष में बिता। इस रूप में उन्होंने मर्यादा का नया अध्याय कायम किया। यह बताया कि सत्ता पक्ष का जोरदार विरोध भी मर्यादा की सीमा में रहते हुए किया जा सकता है। वह दो वर्ष विदेश मंत्री और छह वर्ष प्रधानमंत्री रहे। इस रूप में उन्होंने सत्ता को देशहित का माध्यम बनाया। विदेशमंत्री के रूप में मजबूत विदेश
अटल जी कोई शौकिया कवि नहीं थे, बल्कि कवित्व उनके स्वभाव में रचा-बसा था!
देश का बहत्तरवां स्वतंत्रता दिवस एक ऐसी तारीख के रूप में इतिहास में दर्ज हो चुका है, जिसके अगले ही दिन राजनीतिक जीवन में नैतिक निष्ठा और वैचारिक शालीनता के पर्याय, समावेशी राजनीति के अग्रदूत, जनप्रिय नेता, प्रखर वक्ता, काल के कपाल पर जीवन के गीत लिखने वाले मूर्धन्य कवि और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 93 वर्ष की अवस्था में मृत्यु
दशक भर से सार्वजनिक निष्क्रियता के बावजूद अटल जी का मुख्यधारा में बने रहना यूं ही नहीं था!
पूर्ण क्षमता, निष्ठा, ईमानदारी और मर्यादा के साथ दायित्व निर्वाह ही कर्म कौशल होता है। ‘योग: कर्म कौशलम’ इस अर्थ में अटल बिहारी वाजपेयी कर्म योगी थे। राजनीति में ऐसे कम लोग ही हुए हैं जो कुर्सी नहीं, कर्म से महान बने। अटल जी ऐसे ही लोगों में से एक थे।अटल जी पिछले दस वर्षों से सार्वजनिक जीवन से दूर थे। किसी विषय पर उनका कोई बयान नहीं आता था। इसके
भारतीय राजनीति के अजातशत्रु का अवसान
आपने पिछले बार दिल्ली की सडकों पर ऐसा विशाल जनसैलाब कब देखा? किसी नेता के लिए ऐसा अपार प्यार, स्नेह और इज्ज़त आपने कब देखा? यह याद रखिए अटल जी ने एक ऐसे समय में सियासत की थी, जब कोई सोशल मीडिया नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद लाखों-करोड़ों लोगों के दिल में उनकी प्रतिमा स्थापित रही। अब पूरे देश के सामने यह उदाहरण है कि
भारतीय राजनीति के सूर्य का अस्ताचलगामी हो जाना!
1985 के शुरुआत की बात है। श्रीमती इंदिरा गांधी की दुखद हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में नवोदित भाजपा मात्र दो सीटों तक सिमट कर रह गयी थी। तब ऐसा लगा था मानो पार्टी का अस्तित्व शुरू होते ही ख़त्म हो गया हो। सर मुड़ाते ही ओले पड़े हों जैसे। ऐसे नैराश्य के समय में एक दिन पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक शांता कुमार, अटल जी के यहां किसी कार्यक्रम का
अटल बिहारी वाजपेयी : ‘मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?’
सोलह अगस्त की तारीख इतिहास में एक युग के अवसान के रूप में दर्ज हो गयी है। राजनीति के अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी अस्वस्थता के बाद निधन हो गया। अटल जी को याद करते हुए उनकी एक कविता का जिक्र यहाँ समीचीन लगता है- “ठन गई, मौत से ठन गई/ जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था/ रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।“
राजनीतिक पंडितों के लिए अकल्पनीय हैं मोदी और अमित शाह के लक्ष्य-बिंदु
राजनीतिक पंडितों के लिए जो अकल्पनीय है, वो मोदी और शाह के लक्ष्य बिंदु हैं। और, उन लक्ष्यों को लगातार भाजपा हासिल भी करती जा रही है। आमतौर पर किसी भी सरकार के तीन साल बाद लोकप्रियता कम होती है, लेकिन मोदी इस मामले में भी परंपरागत धारणाओं को धता साबित करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।