आज़ादी

अमित शाह ने ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के जरिये कांग्रेस की दुखती रग पर ऊँगली रख दी है !

अमित शाह के ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज तक कांग्रेस ही ज़्यादातर सत्ता पर काबिज़ रही है और कांग्रेस के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। गांधी को ये अंदेशा था, इसीलिए वो कांग्रेस को भंग करने की बात कहे थे। मगर, कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा का तो सम्मान नहीं किया, बल्कि उनके

उनका इतिहास कमजोर है, जिन्हें आज़ादी की लड़ाई में संघ का योगदान नहीं दिखता !

संघ की शाखाएं राष्ट्र निर्माण की प्रयोगशाला है जहां स्वयंसेवकों को राष्ट्रीय व सामाजिक गुणों से लैस किया जाता है। संघ के अनेकों संगठन मसलन सेवा भारती, विद्या भारती, स्वदेशी जागरण मंच, हिंदू स्वयंसेवक संघ, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय किसान संघ अपने कार्यों से देश के रचनात्मक विकास में योगदान दे रहे हैं। सच तो यह है कि

भगत सिंह कैसे बने शहीद-ए-आज़म ?

शहीद तो भगत सिंह के अलावा राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस समेत सैकड़ों हुए। इन सभी को जनमानस स्वत:स्फूर्त भाव से शहीद पुकारने लगा। तो भगत सिंह शहीद-ए-आजम कैसे बन गए ? भगत सिंह संभवत: देश के पहले चिंतक क्रांतिकारी थे। वे राजनीतिक विचारक थे। वे लगातार लिख-पढ़ रहे थे। उनसे पहले या बाद में कोई उनके कद का चिंतनशील क्रांतिकारी सामने नहीं आया।

आज़ाद भारत के पुनर्निर्माण के प्रति चिंतित थे दीनदयाल उपाध्याय

देेश जब गुलामी के दौर से गुजर रहा था, उस समय देश के नागरिकों और तत्कालीन नेताओं, बुद्धिजीवियों, छात्रों एवं समाजसेवियों का एक मात्र उद्देश्य था कि देश को अग्रेजों से आजाद कराया जाए। भारत माँ की गुलामी की बेड़ियों को किस प्रकार से तोड़ा जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, इस देश के असंख्य आजादी के दीवानों ने अपने-अपने तरीके से कार्य किया तथा आजादी की लड़ाई लड़ी। इनमें कई वर्ग ऐसे थे

पाकिस्तान हुआ हलकान, अब सिंध मांगे सिंधुस्थान!

भारत के एक दाँव ने पाकिस्तान को चित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गिलगित, बलूचिस्तान और पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर का मामला दुनिया के सामने लाकर न केवल पाकिस्तान को आईना दिखाया है, बल्कि पाकिस्तान के अत्याचार से पीडि़त जनमानस को साहस भी दिया है।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हो रहा भारत का पुनर्निर्माण

भावी भारत के निर्माण और प्राचीन भारत के मूल स्वरुप की जब बात आती है तो यह बहस शुरू हो जाती है कि आखिर ‘भारत’ है क्या ? क्या यह महज संविधान शासित लोकतांत्रिक राज्य वाला एक भू-भाग मात्र है अथवा इससे आगे भी इसकी कोई पहचान है ? इस बहस के सन्दर्भ में अगर समझने की कोशिश की जाय तो भारत कोई 1947 में पैदा हुआ देश नहीं है।

शहीदों के राष्ट्र-निर्माण के स्वप्न को पूर्ण करने में ही है आज़ादी की सार्थकता!

भारत आज अपनी आजादी की 70 वीं सालगिरह मना रहा है। लाल किले पर तिरंगा फहर चुका है । सन् 1947 को आज ही के दिन भारत ने लगभग 200 वर्षों की अंग्रेजी दासता के बंधनों को तोड़ कर आजादी का प्रथम सूर्योदय देखा था। आजादी के इस आंदोलन में कितनी शहादतें हुई, ये अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। देश के हर गांव के ही आस-पास ऐसी कई कहानियां होगी, जिनसे हम आज भी अनजान हैं।