पिंजरा तोड़ अभियान से उपजते सवाल
छोटे-छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर देश की राष्ट्रीय राजधानी आने वाले लड़के-लड़कियों को वामपंथी ताक़तें किस क़दर बहलाती-फुसलाती हैं, उसकी कहानी आप इस संगठन के बनने के पीछे की कहानी को जानकर समझ सकते हैं।
कल्पना और झूठ पर आधारित है अमेरिकी आयोग की रिपोर्ट
भारत के विदेश मंत्रालय ने न केवल आयोग की रिपोर्ट के दावों को खारिज किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इसमें भारत के खिलाफ की गई भेदभावपूर्ण और भड़काऊ टिप्पणियों में कुछ नया नहीं है। यह आयोग पहले भी भारत के विरुद्ध दुष्प्रचार करने का प्रयास करता रहा है। लेकिन इस बार गलत दावों का स्तर एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है।
लम्बे समय से मुसलमानों के दिमाग में भरे जा रहे जहर की उपज है दिल्ली की हिंसा
दिल्ली में अचानक भीड़ सड़कों पर निकलती है और पत्थरबाजी करने लगती है। पुलिस परेशान कि क्या किया जाए और लोग पुलिस को घेर कर एक कांस्टेबल को जान से मार देते हैं। पूरी की पूरी भीड़ लाठी और डंडों के साथ सड़क पर निकलती है और पुलिस के सामने फायरिंग तक होती है। तस्वीरें आती हैं कि लाशों को घरों के सामने फेंका जा रहा है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के
हर तरह से देशहित में है नागरिकता संशोधन क़ानून, बेमतलब है विरोध प्रदर्शन
नागरिकता संशोधन कानून से भारत के नागरिकों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं थी, न उनसे सरकार नागरिकता पूछने जाती। सब कुछ यथावत चलता रहता। धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित कुछ लोगों को पनाह मिल जाती, अवैध घुसपैठ के प्रति सावधानी बढ़ती। हर प्रकार से यह क़ानून देशहित में है। लेकिन ऐसे क़ानून को भी अराजकता में बदल दिया गया।
नागरिकता संशोधन क़ानून के इस हिंसक विरोध का आधार क्या है?
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इस विधेयक से हिंदुस्तान के किसी भी मुस्लिम को डरने की जरूरत नहीं है। वह (मुसलमान) नागरिक हैं और रहेंगे। इसके बाद भी देशभर में नागरिकता कानून के विरोध में हिंसा फैलाने वाले लोगों की मंशा क्या है?
‘CAB-2019 के विरोध ने विपक्ष की संवेदनहीनता और स्वार्थी राजनीति को ही दिखाया है’
राज्यसभा से नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पास होने के बाद से ही लगातार असम में इसका विरोध हो रहा है। इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रहने वाले “अल्पसंख्यक समुदाय” जैसे हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदाय अगर भारत में शरण लेते हैं तो उनके लिए भारत की नागरिकता हासिल करना आसान होगा। यह विधेयक उन पर लागू होगा जिन्हें इन तीन देशों में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किए जाने के कारण भारत में
देशहित में जरूरी है एनआरसी का पूरे देश में लागू होना
बीते 20 नवम्बर को केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एनआरसी पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि एनआरसी के द्वारा नागरिकता की पहचान सुनिश्चित की जाएगी और इसे पूरे देश में लागू किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी धर्म विशेष के लोगों को इसके कारण डरने की जरूरत नहीं है।
एनआरसी : ‘देश देख रहा है कि विपक्षी दल सरकार के विरोध और देश-विरोध के अंतर को भूल गए हैं’
आज राजनीति प्रायः सत्ता हासिल करने मात्र की नीति बन कर रह गई है, उसका राज्य या फिर उसके नागरिकों के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है। कम से कम असम में एनआरसी ड्राफ्ट जारी होने के बाद कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया तो इसी बात को सिद्ध कर रही है। चाहे तृणमूल कांग्रेस हो या सपा, बसपा, जद-एस, तेलुगु देसम या फिर आम आदमी पार्टी।
2005 में घुसपैठियों का विरोध करने वाली ममता आज उनकी हितैषी क्यों बन रही हैं?
इन दिनों आसाम में एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का मुद्दा उछल रहा है। इसके बहुत विस्तार में न जाते हुए सरल रूप में इतना ही समझा जा सकता है कि असम में 40 लाख लोग ऐसे रह रहे हैं जो कि भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं हैं। इस लिहाज से वे घुसपैठियों के दर्जे में आते हैं। ये लोग बांग्लादेशी मूल के हैं। आसाम में इनकी बड़ी आबादी निवासरत है। अब
‘जो समझौता लागू करने की हिम्मत राजीव गांधी नहीं दिखा सके, उसे मोदी सरकार ने लागू किया है’
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे मसौदे को जारी कर दिया गया है। एनआरसी में शामिल होने के लिए आवेदन किए 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं और इसमें 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। असम सरकार का कहना है कि जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है, उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा।