परेश रावल की लानत-मलानत करने वाले अरुंधति राय के इन ‘कारनामों’ पर क्या कहेंगे ?
हिन्दी फिल्मों के बेहतरीन चरित्र अभिनेता और बीजेपी सांसद परेश रावल के पीछे सारी सेक्युलर बिरादरी हाथ धोकर पड़ गई है। परेश रावल ने कश्मीर में आर्मी की जीप से एक युवक को बांधकर घुमाने वाले मामले पर ट्वीट किया कि किसी पत्थरबाज को जीप से बांधने से अच्छा है अरुंधति राय को बांधो। इस ट्वीट पर तगड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया। वाम और तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड के पैरोकार परेश रावल की लानत-मलानत करने में
स्टिंग ऑपरेशन में सामने आया कश्मीर के अलगाववादी नेताओं का देशविरोधी चेहरा
यूँ तो देश में अक्सर ही कश्मीरी अलगाववादियों के पाक से संबंधों को लेकर चर्चा होती ही रहती है, लेकिन अभी हाल ही में आए इंडिया टुडे के एक स्टिंग ने इस सम्बन्ध में स्थिति को विशेष रूप से चर्चा में ला दिया है। कई बार ऐसा हुआ है कि अलगाववादियों की गतिविधियों से उनका देश विरोधी रवैया सामने आया है, मगर अब इस स्टिंग ने पूरी स्थिति को एकदम ससाक्ष्य रूप से स्पष्ट कर दिया है।
सेना पर सवाल उठाने वाले बताएं कि उन्हें पत्थरबाजों से इतना लगाव क्यों है ?
पत्थरबाज सेना के जवानों के साथ जिस तरह का बर्ताव कर रहे और जिस तरह उनके तार पाकिस्तान से जुड़े होने की बात सामने आ रही, उसके बाद यह कहना गलत नहीं है कि ये लोग किसी तरह के रहम के काबिल नहीं हैं। पाकिस्तान की शह पर आतंकियों की मदद करने वाले ये चाँद कश्मीरी पत्थरबाज देशद्रोही हैं, अतः इनके साथ कड़ाई से पेश आना ही समय की ज़रूरत है।
सेना के कठोर रुख पर सवाल उठाने वाले सेना के साथ बदसलूकी पर खामोश क्यों हैं ?
पिछले दिनों श्रीनगर में चुनाव कराकर लौट रहे सीआरपीएफ के जवानों के साथ जिस तरह कश्मीर के बिगड़े और अराजक नौजवानों ने उन पर लात-घूसा बरसा बदसलूकी की और बड़गाम चाडूरा (बड़गाम) में हिजबुल मुजाहिदीन के खतरनाक आतंकी को बचाने के लिए सेना पर पत्थरबाजी की, उससे देश सन्न है। हथियारों से लैस होने के बावजूद भी सीआरपीएफ के जवानों ने तनिक भी प्रतिक्रिया
उचित है कश्मीरी पत्थरबाजों के प्रति सेना और सरकार का कठोर रुख
कश्मीर में आतंकियों पर कारवाई या मुठभेड़ के दौरान कश्मीर के स्थानीय लोगों द्वारा सेना पर पत्थरबाजी का सिलसिला जो कुछ समय से बंद था, अब फिर शुरू होता दिख रहा है। अभी हाल ही में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान सेना के जवानों पर पत्थरबाजों ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। परिणाम यह हुआ कि एक आतंकी तो मारा गया, मगर पत्थरबाजी में सेना के काफी जवान घायल हो गए। इस घटना के बाद
आतंकियों के मददगारों पर सेना प्रमुख के कठोर रुख से बौखलाए क्यों हैं विपक्षी दल ?
भारतीय थल सेनाध्यक्ष विपिन रावत का ताजा बयान सेना पर पत्थर बरसाने वालों के लिए कड़े सन्देश और चेतावनी की तरह नज़र आ रहा। लेकिन, राष्ट्रीय हित में जारी इस चेतावनी को भी कांग्रेस व कुछ अन्य विपक्षी दलों ने राजनीतिक चश्मे से देखने में कोई गुरेज़ नहीं किया, जो देश के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। साथ ही, यह इन विपक्षी दलों के राष्ट्र-हित के तमाम दावों की भी पोल खोल रहा है। गौरतलब है कि सभी
भारत की प्रगति के लिए ‘भारतीयता’ को आवश्यक मानते थे पं दीनदयाल उपाध्याय
पंडित दीनदयाल उपाध्याय को जितनी समझ भारतीय संस्कृति और दर्शन की थी, उतनी ही राजनीति की भी थी। व्यक्तिगत स्वार्थ में लिप्त राजनीति पर वे हमेशा प्रहार करते थे। पंडित जी जब उत्तर प्रदेश के सह प्रांत-प्रचारक थे, उस समय उनके निशाने पर भारत सरकार की गलत नीतियों के साथ-साथ देश में फैली निराशा भी रहती थी। उस समय देश में कांग्रस की सरकार थी और उस समय देश के प्रधानमंत्री
कश्मीर में उखड़ने लगे अलगाववादियों के पाँव
जम्मू-कश्मीर की कहानी किसी से छुपी नहीं है, मगर बदलते दौर में सुधार की गुंजाईश भी इस राज्य में बढ़ी है, जिसकी बानगी हमे अलगाववादी खेमों के घटते जनसमर्थन के रूप में देखने को मिल रही है। हाल ही में अलगाववादियों ने अपना हड़ताली कैलेंडर जारी किया जिसमे उन्होंने २६ जनवरी को कश्मीर में यौम-ए-स्याह के तहत सिविल कर्फ्यू लागू करने की बात की, जिससे गणतंत्र दिवस को काले दिन के
पीओके पर फारुक अब्दुल्ला का बेसुरा राग
कश्मीर को को लेकर बंटवारे के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की खटास किसी से छिपी नहीं है। गाहे-बगाहे यह मुद्दा अन्तरराष्ट्रीय पटल पर भी उठाया जाता रहा है। तमाम विवादों और समझौतों के बीच खुद को भारतीय माननें वाले अथवा भारतीय होने का गर्व करने वाले किसी भी आम जन या ख़ास के मन में इस बात को लेकर शायद ही कोई संदेह हो कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पार कश्मीर का जो
कश्मीर में ‘राष्ट्रवादी विचारधारा’ की जीत है महबूबा मुफ्ती का बयान
तीन-चार महीने पूर्व एक टीवी न्यूज़ कार्यक्रम में एंकर ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह…