‘सब्जी-दूध की बर्बादी करने वाले ये लोग और कुछ भी हों, मगर किसान नहीं हो सकते’
किसानों की समस्याओं से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसा भी नहीं कि ये सभी समस्याएं पिछले तीन चार वर्ष में पैदा हुई हैं और इसके पहले किसान बहुत खुशहाल थे। आज कांग्रेस पार्टी स्वामीनाथन आयोग के लिए बेचैन है, जबकि इसकी रिपोर्ट कांग्रेस के शासन काल में आई थी। रिपोर्ट आने के बाद सात वर्ष तक यूपीए की सरकार थी, तब उसने रिपोर्ट की सिफारिशों पर कोई भी
इंतजार करिए, केजरीवाल जल्दी-ही कांग्रेस को ईमानदार पार्टी का तमगा भी दे देंगे !
देश की राजनीति में उस शख्स को किसलिए याद किया जाए, जो देश में बदलाव का नारा लगाते-लगाते दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच गया। अपनी कुर्सी यात्रा के क्रम में उस शख्स ने दूसरी पार्टी के नेताओं पर खूब बेबुनियाद इल्जाम भी लगाए, लेकिन जब अदालतों में आरोपों के पक्ष में सबूत पेश करने की बात आई, तो उसने धीरे-धीरे एक-एक कर सबसे माफ़ी मांग ली।
कर्नाटक : गठबंधन हुआ नहीं कि घमासान भी शुरू हो गया !
कर्नाटक सरकार का सत्ता के अंगना में प्रवेश क्लेश के साथ हुआ। गठबन्धन की मेंहदी लगने के साथ ही कांग्रेस ने अपना रंग दिखा दिया। उपमुख्यमंत्री परमेश्वर ने कहा कि अभी पांच वर्ष सरकार चलाने की गारंटी नहीं दी गई है। इसके पहले मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने विश्वास व्यक्त किया था कि सरकार कार्यकाल पूरा करेगी। उपमुख्यमंत्री का बयान इसी की प्रतिक्रिया में आया
कर्नाटक : ‘122 से 78 सीटों पर पहुँचने के लिए कांग्रेस को खूब-खूब जश्न मुबारक !’
कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद गत दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मीडिया के सामने आए और खुलकर अपनी बात देश के सामने रखी। एक घंटे से ज्यादा चली उनकी इस प्रेसवार्ता में भाजपा ने कांग्रेस के दोहरे चरित्र पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या वाकई कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिल गया है ? क्या कांग्रेस को जनता ने सत्ता से बाहर नहीं कर दिया ? चुनाव पूर्व एकदूसरे
जेडीएस से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है !
कर्नाटक के घटनाक्रमों से एक बार फिर साबित हो गया कि कांग्रेस के लिए सत्ता साधन न होकर साध्य है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार, विशेषकर नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की मजबूरी के तहत बनने जा रही कांग्रेस-जनता दल (एस) सरकार कितनी टिकाऊ साबित होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि ये गठबंधन करके कांग्रेस ने
आखिर किस मुँह से मोदी की भाषा पर सवाल उठा रहे हैं, मनमोहन सिंह !
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कभी अपने मौन के लिए प्रसिद्ध हुआ करते थे। अब अक्सर वर्तमान प्रधानमंत्री पर हमला बोलने के लिए मुखर दिखाई देते हैं। इस बार वह अपने मौन या बोलने के लिए चर्चा में नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रपति को लिखा गया उनका पत्र चर्चा में है। इसमें नरेंद्र मोदी द्वारा कांग्रेस पर हमला बोलने के प्रति नाराजगी जाहिर की गई है। मनमोहन सिंह ने मोदी की भाषा पर ऐतराज़ जताया है। वहीं कांग्रेस के दिग्गजों
न्यायपालिका पर आरोप लगाकर लगातार अपनी फजीहत करवा रही कांग्रेस !
प्रधान न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव संबन्धी कांग्रेस की याचिका याची पक्ष द्वारा वापस लेने के अनुरोध के बाद खारिज हुई। इसके सूत्रधार कपिल सिब्बल अब क्या करेंगे, यह देखने के लिए इंतजार करना होगा। लेकिन, इस प्रकरण के प्रत्येक कदम पर कांग्रेस की फजीहत हुई है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश पर कदाचार का कोई आरोप नहीं था। इन आरोपों के अलावा किसी स्थिति में संविधान किसी न्यायाधीश को
कर्नाटक चुनाव : विकास के मुद्दे पर विफल कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति !
यह अजीब है कि कांग्रेस को प्रत्येक चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की याद सताने लगती है। शायद उसे लगता होगा कि संघ पर हमला बोलकर वह अपना समीकरण दुरुस्त कर लेगी। लेकिन, वह मतदाताओं के मिजाज को समझने में विफल हो रही है। लोग जानते हैं कि सच्चाई क्या है। झूठ का सहारा लेकर लोगों को भ्रमित नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बार भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण
जिन्ना प्रकरण में कांग्रेस पर भी उठते हैं सवाल !
कांग्रेस बेशक अय्यर के जिन्ना की प्रशंसा करने वाले बयान से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश करे, मगर सवाल फिर भी उसपर उठते ही हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर दशकों से कैसे लगी हुई है ? देश में सर्वाधिक समय तक सत्तारूढ़ रहने वाली कांग्रेस के शासन में कभी ये विषय
कर्नाटक चुनाव : नामदार पर भारी पड़ रहा कामदार !
कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कामदार शब्द कारगर साबित हुआ। धर्म विभाजन के सहारे चुनाव में उतरी कांग्रेस को इससे कांटा लगा है। क्योंकि, कामदार शब्द ने विकास को प्रमुख मुद्दा बना दिया है। कांग्रेस अपने को इसमें घिरा महसूस कर रही है। उसकी सरकार के लिए विकास के मुद्दे पर टिके रहना संभव होता, तो चलते-चलते विभाजन का मुद्दा न उठाती। यह उसकी कमजोरी का प्रमाण है। मोदी ने इसे