व्यंग्य : उत्तर प्रदेश में ‘काम’ के बोलने की कहानी
इक्कीसवीं सदी की जवानी परवान पर थी। ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘समाजवादी प्रजातंत्र’ का ज़बर्दस्त जलवा था। जलवा भी ऐसा-वैसा नहीं! बस यूं समझ लीजिए कि ‘काम’ बोलता था। ‘प्रजातंत्र’ के ‘प्रजापति’ लोग ‘कामुकता’ की पराकाष्ठा पार कर चुके थे। ‘काम’ बोलता रहा और ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘प्रजातंत्र’ कब ‘प्रजापति-तंत्र’ में तब्दील हो गया, किसी को पता भी नहीं चला। वहां की सरकार में ‘प्रजापति’ की जगह पक्की रहती