क्या दिल्ली चुनाव से पहले ही कांग्रेस अपनी हार स्वीकार कर चुकी है?
दिल्ली के चुनाव आज देश का सबसे चर्चित मुद्दा हैं। इसे भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य कहें या लोकतंत्र का, कि चुनाव दर चुनाव राजनैतिक दलों द्वारा वोट हासिल करने के लिए वोटरों को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देना तो जैसे चुनाव प्रचार का एक आवश्यक हिस्सा बन गया है।
मोदी सरकार ने किया दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों के विकास का रास्ता साफ़
यदि हम बीते दो दशकों का दौर देखें तो दिल्ली में डेढ़ दशक तक कांग्रेस का शासन रहा, उसके बाद गत 5 वर्षों से आम आदमी पार्टी सत्ता में है। इसके बावजूद दोनों दलों ने अनाधिकृत कॉलोनियों की दिशा में ना कुछ सोचा, ना किया। अब जब मोदी सरकार ने यह बीड़ा उठाया है तो केजरीवाल इसका श्रेय लेने की कोशिश में जुट गए हैं।
सिर्फ दिल्ली के पानी का सैम्पल ही फेल नहीं हुआ, दिल्ली की सरकार भी फेल हो चुकी है
राजधानी नई दिल्ली में इन दिनों पानी को लेकर खासा घमासान मचा है। असल में, पिछले दिनों केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्रालय ने देश भर के 20 राज्यों को लेकर एक रैंकिंग जारी की थी। इसमें केवल राजधानियों के पानी की गुणवत्ता की जांच का हवाला था। दिल्ली का पानी इसमें सर्वाधिक प्रदूषित पाया गया। दिल्ली से जो 11 सैंपल लिए गए थे, वे सारे सैंपल 19 तय मापदंडों
मुफ्तखोरी की राजनीति का नया रिकॉर्ड बना रहे केजरीवाल
ईमानदार राजनीति के जरिए व्यवस्था बदलने का ख्वाब दिखाने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुफ्तखोरी की राजनीति को नया आयाम देने में जुटे हैं। पिछले साढ़े चार साल से प्रधानमंत्री से लेकर उप राज्यपाल तक पर काम न करने देने का आरोप लगाने वाले केजरीवाल अब मुफ्तखोरी की राजनीति कर रहे हैं।
लगातार राजनीतिक जमीन खो रही है आम आदमी पार्टी
पंजाब, गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश के बाद अब हरियाणा और महाराष्ट्र में भी आम आदमी पार्टी को करारी शिकस्त मिली है। साल भर पहले पार्टी ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव पूरे दमखम से लड़ने का ऐलान किया था और नवीन जयहिंद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया था। इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने विधानसभा की 90 में से
मुफ्तखोरी की राजनीति के जरिए अपनी नाकामियां छिपाने में जुटे हैं केजरीवाल
एक ओर मोदी सरकार सभी को चौबीसों घंटे-सातों दिन बिजली मुहैया कराने के लिए बिजली क्षेत्र में सुधारो को गति दे रही है तो दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मुफ्त बिजली का पासा फेंककर सुधारों की गाड़ी को पटरी पर उतारने पर तुले हैं। गौरतलब है कि बिजली क्षेत्र को बदहाल बनाने में मुफ्त बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
वादे निभाने में नाकाम रहने के बाद अब मुफ्तखोरी की राजनीति पर उतरे केजरीवाल
मुफ्तखोरी की राजनीति का आगाज मुफ्त बिजली से हुआ था और इसने राज्य विद्युत बोर्डों को खस्ताहाल कर डाला। गठबंधन राजनीति के दौर में भारतीय रेलवे की भी कमोबेश यही दशा हुई। अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली मेट्रो व बसों में मुफ्त यात्रा का प्रस्ताव देकर वोट बैंक की राजनीति को एक नया आयाम देने में जुट गए हैं।
घटती लोकप्रियता की हताशा में सस्ती राजनीति पर उतरे केजरीवाल
कांग्रेस से गठबंधन में नाकाम रहने, आप विधायकों के पार्टी छोड़ने, घटती लोकप्रियता जैसे कारणों से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपनी राजनीतिक जमीन खिसकती दिख रही है। इसीलिए वह नुस्खे की राजनीति पर उतर आए हैं।
कांग्रेस के इंकार के बाद अलग-थलग पड़े केजरीवाल
कांग्रेसी भ्रष्टाचार की पैदाइश अरविंद केजरीवाल ने खुलेआम अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि वे कभी भी कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेंगे। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कई महीनों से कांग्रेस से गठबंधन की भीख मांगते फिर रहे थे। यहां तक कि केजरीवाल एक रात शीला दीक्षित के घर के बाहर भी बैठे रहे लेकिन कांग्रेस ने केजरीवाल को
‘खोट ईवीएम में नहीं, विपक्षी दलों की नीयत में है’
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन देश में ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों का विलाप थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते रविवार को कांग्रेस, आप, टीडीपी आदि विपक्षी दलों द्वारा प्रेसवार्ता में कहा गया कि वे पचास प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम वोटों से करवाने की मांग लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जाएंगे। गौरतलब है कि इससे पूर्व इक्कीस विपक्षी दलों की एक ऐसी ही याचिका को सर्वोच्च न्यायालय खारिज कर चुका है।