कुमार विश्वास की बजाय काम पर फोकस करे ‘आप’
एक के बाद एक हार के बाद दिल्ली की आम आदमी पार्टी अब आंतरिक कलह से जूझ रही है। दो ढाई साल पहले जिस पार्टी को दिल्ली की जनता ने प्रचंड बहुमत से दिल्ली की गद्दी सौंपी थी, वो इतने कम समय में ही इतने बड़े कलह का शिकार हो जाएगी, किसी ने सोचा भी नहीं था। पंजाब में हार, दिल्ली उपचुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी और फिर दिल्ली नगर निगम में हार के बाद पार्टी के संस्थापकों में से एक कुमार विश्वास ने
मोदी ऐसे नेता बन चुके हैं, जिनका विपक्ष के पास कोई जवाब नहीं है!
पूरे विपक्षी खेमे में कोई एक नेता ऐसा नहीं दिखता जो मोदी के जवाब में खड़ा हो सके। ऐसे में, ये कहना गलत नहीं होगा कि मोदी के आगे विपक्ष एकदम लाजवाब हो गया है। उसके पास न तो कोई नेता है और न ही कोई एजेंडा। दरअसल विपक्ष की इस दुर्गति के लिए काफी हद तक विपक्ष की नकारात्मक राजनीति ही जिम्मेदार है, जिससे जनता का उसके प्रति
ये कैसा हैकर है मनीष सिसोदिया जी कि बस एक रिट्वीट करके छोड़ दिया ?
आम आदमी पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया जो दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री भी हैं, ने हाल ही में एक ऐसे ट्वीट जिसमे अन्ना हजारे को साफ़ तौर पर धोखेबाज कहा गया था, को रिट्वीट कर उसके प्रति अपना समर्थन व्यक्त कर दिया। जब इस ट्वीट के समर्थन को लेकर उनकी निंदा होने लगी तो अपने बचाव में उन्होंने वही तरीका अपनाया जिसका पाठ केजरीवाल ने अपनी पूरी कैबिनेट को बहुत अच्छे ढंग से पढाया है। उन्होंने कहा कि
वो पांच कारण जिन्होंने एमसीडी चुनाव में ‘आप’ की दुर्गति कर दी !
राजनीति का चरित्र सुधारने का दावा करके सत्ता में आये हुए एक व्यक्ति को आज जनता के जनादेश ने यह संदेश दे दिया कि उसी का राजनैतिक चरित्र सवालों के घेरे में है। आखिर क्या कारण है कि जनता के बीच सिर्फ सेवा का दावा करके आये हुए व्यक्ति को आज वो सब कुछ चाहिए जो सेवा के लिए जरूरी नहीं है ? जो नीयत की, शुद्धता की बात करते थे, आज उनकी नीयत पर खुद लोगों ने उंगली
लगातार मिल रही पराजयों से तो सबक ले आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी को शायद अब रुकना चाहिए। सांस लेकर यह सोचना चाहिए कि क्या दिल्ली में मिले मैंडेट का उसने सही उपयोग किया है? यह सोचने पर केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी को समझ आएगा कि दिल्ली में मिले जनादेश का उन्होंने अपने अबतक के शासन में केवल दुरूपयोग किया है। केवल केंद्र सरकार और उपराज्यपाल से बेवजह की खींचतान और अपने लोगों को
चादर के हिसाब से पाँव फैलाना कब सीखेगी आम आदमी पार्टी ?
अकबर-बीरबल से संबंधित एक मशहूर किस्सा है। अकबर हमेशा से बीरबल की तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभा से प्रभावित रहते थे। लगभग हर मसले पर बीरबल से राय मशविरा करते थे। दोनों एक दूसरे पर व्यंग्य आदि भी करते थे; कहने का अर्थ यह कि दोनों में मित्रवत संबंध थे। अकबर-बीरबल के बीच के इस तरह के संबंध को देखकर अकबर के नवरत्नों समेत अन्य दरबारियों को ईर्ष्या होती थी।
चुनाव आयोग की ईवीएम हैक करने की चुनौती पर गोल-मोल बातें क्यों बना रहे केजरीवाल ?
चुनाव आयोग ने इन्हें ईवीएम हैक करने की चुनौती दी है, तो इनसे कुछ ठोस जवाब देने नहीं बन रहा । दरअसल तकनीकी विशेषज्ञों का स्पष्ट कहना है कि ईवीएम से किसी तरह कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती । इसलिए चुनावी आयोग की चुनौती पर अब केजरीवाल गोल-मोल बातें बना रहे हैं ।
निजी हितों के लिए सत्ता का दुरूपयोग कर फँसे केजरीवाल, शुंगलू समिति ने खोली पोल
नयी और ईमानदार राजनीति का स्वप्न दिखाकर काफी कम समय में ही केजरीवाल ने जनता के मन में अपने प्रति भरोसा पैदा किया और इसी भरोसे के बलबूते दिल्ली की सत्ता पर काबिज भी हुए। मगर, वर्तमान परिस्थितियों पर अगर हम नज़र डालें तो देखते हैं कि अरविन्द केजरीवाल ने जनता के भरोसे के साथ बुरी तरह से खिलवाड़ किया है। खुद को सर्वाधिक ईमानदार नेता का ख़िताब देने वाले केजरीवाल और
शुंगलू समिति की रिपोर्ट से बेनकाब हुआ केजरीवाल की ईमानदारी का असल चेहरा
अगर देश की जनता को हाल के दौर में किसी एक नेता ने सर्वाधिक छला और निराश किया है, तो वो अरविंद केजरीवाल हैं। अपने आप को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला बताने वाला यह शख्स भ्रष्टाचार और नियमों की अवहेलना करने में सबसे आगे रहा है। केजरीवाल के ईमानदार और पारदर्शी सरकार देने के तमाम दावों को तार-तार कर दिया है शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट ने। दिल्ली के तत्कालीन उपराज्यपाल
केवल दूसरों पर आरोप ही लगाते रहेंगे या अपने वादे भी पूरे करेंगे, केजरीवाल !
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल को दिल्ली में सरकार बनाए और मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किए दो साल से अधिक का समय हो चुका है। फ़रवरी, 2015 में वे 67 सीटें जीतकर बड़े बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए थे। दिल्ली की जनता ने उनके बड़े-बड़े और लोक लुभावने वादों पर भरोसा कर उन्हें इतना बड़ा जनादेश दिया। लेकिन, सत्ता में आने के बाद से अबतक की अवधि