ये आंकड़े बताते हैं कि गरीबों तक बैंक पहुँचाने में कामयाब रही मोदी सरकार !
सैद्धांतिक रूप से ही भले ही बैंकों को गरीबों का हितैषी कहा जाता हो लेकिन व्यावहारिक धरातल पर बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल रहा है। देश में गरीबी की व्यापकता एवं उद्यमशीलता के माहौल में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है। 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अब बैंकों की चौखट तक गरीबों की पहुंच बढ़ेगी लेकिन वक्त के साथ यह उम्मीद धूमिल पड़ती गई।
‘सबका साथ, सबका विकास’ के एजेंडे को प्रतिबिंबित करता बजट
विगत एक फ़रवरी को केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आम बज़ट पेश किया, जिसमें कि उन्होंने अनावश्यक लोकलुभावन वादों से परहेज़ करते हुए राष्ट्र के सर्व-समावेशी विकास की रूपरेखा प्रस्तुत की। विपक्षी दल अभी तक भाजपा सरकार पर धनाढ्य और कुलीनतंत्रों की हिमायती होने का फ़िज़ूल आरोप लगाते आये हैं, लेकिन इस बजट से केंद्र सरकार ने अपना एजेंडा स्पष्ट कर दिया है कि सरकार देश के गांवों
गरीबों-मजदूरों के लिए लाभकारी है नोटबंदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबंदी के फैसले को लागू करके बड़ा रिस्क लिया है जो अगर वो नहीं भी लेते तो कोई फर्क नहीं पड़ता और उनकी राजनीति निर्बाध गति से चलती रहती । नोटबंदी के पहले हो रहे तमाम सर्वे के नतीजे यह बता रहे थे कि मोदी सबसे लोकप्रिय नेता हैं । बावजूद ये जोखिम उठाना इस बात का संकेत देता है कि नरेन्द्र मोदी देश के लिए कुछ बड़ा करने की दिशा में कदम उठा चुके हैं ।