गौतम नवलखा का वर्तमान ही नहीं, अतीत भी डरावना है
न्याय का रास्ता भले ही कानून से तय होता है किंतु इसकी बुनियाद ‘भरोसे’ पर टिकी होती है। यानी न्याय प्रणाली में आस्था रखने वालों को यह भरोसा होता कि जो भी निर्णय आएगा वो उचित और नैतिक होगा। अगर यह भरोसा टूट जाए तो क्या न्याय व्यवस्था चल पाएगी भले ही कानून कितने ही ‘अनुकूल’ क्यों न हों?