बिहार में अपनी छवि गँवा चुके नीतीश किस आधार पर देश में विपक्षी एकता की संभावना तलाश रहे हैं ?
अब नीतीश देश में विपक्षी एकता की गुहार लगाते घूम रहे हैं। तेजस्वी के साथ वह दर-दर भटक रहे हैं। इनके राजनीतिक सपने तो हसीन हैं, लेकिन वास्तविकता से दूर हैं।
विपक्षी एकता की कवायदों में नीति, नेतृत्व और नीयत का अभाव
विपक्षी एकता के अधिकांश दलों की राजनीति का आधार क्षेत्रीय और जातिगत रहा है तथा वर्तमान में इनके जुटान का उद्देश्य भाजपा को हराना मात्र है।
बिहार चुनाव ने सिद्ध किया कि देशहित की राजनीति को ही मिलेगा जनसमर्थन
बिहार चुनाव के परिणामों ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि देश की राजनीति राजनेताओं के वोट कबाड़ने वाले हथकंडों से उबरने का प्रयत्न कर रही है।
बिहार चुनाव : राजग के पास विकास का मुद्दा है, जबकि राजद अपने शासन का नाम भी नहीं ले रहा
भाजपा व जेडीयू दोनों सुशासन को महत्व देने वाले दल हैं, जबकि राजद व कांग्रेस के काम करने का अलग तरीका है। इन दोनों दलों को विकास से कोई मतलब नहीं।
लोकलुभावन चुनावी वादे करने वाले तेजस्वी यादव अतीत को भुला बैठे हैं
नीतीश कुमार के शासनकाल को जंगलराज करार देते हुए राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव चुनावी वादों की बरसात कर रहे हैं।
‘बिहार अब लालू के लालटेन युग के अंधेरे से निकलकर एनडीए के विकास की रोशनी में चल रहा है’
बिहार अब लालू प्रसाद यादव एवं जनता दल के लालटेन युग वाले अंधेरे से बाहर निकल चुका है और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की रोशनी में चल रहा है।
देश की साझी विरासत सुरक्षित है, आप तो अपनी सीट की चिंता करिए शरद जी !
विपक्षी पार्टियों का जमावड़ा बड़े अर्न्तद्वन्द से गुजर रहा है। शरद यादव के साझी विरासत बचाओ सम्मेलन में यही त्रासदी दिखाई दी। नामकरण से लग रहा था कि इसमें कोई बड़ा वैचारिक धमाका होने वाला है। साझी विरासत के रूप देश की गौरवपूर्ण सामाजिक व्यवस्था पर चर्चा होगी। यह भी सोचा गया कि इस विरासत को बचाने के लिए कोई नया प्रस्ताव आयेगा। लेकिन फिर वही ढांक के तीन पात। तीन वर्षों से जो बातें चल रही
बिहार के सुस्त विकास को फिर गति देगी जदयू-भाजपा सरकार
नीतीश कुमार के इस्तीफे को सिर्फ मौजूदा घटनाक्रम से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। महागठबंधन के बैनर के तले नीतीश कुमार जरूर मुख्यमंत्री बन गये थे, लेकिन वे अपनी छवि के मुताबिक काम नहीं कर पा रहे थे। उनके अतंस में अकुलाहट थी। देखा जाये तो परोक्ष रूप से लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे।
भारतीय राजनीति में क्यों अप्रासंगिक होती जा रही है कांग्रेस ?
इतिहास के पन्नों को पलटें और इसके सहारे भारतीय राजनीति को समझने को प्रयास करें तो हैरानी इस बात पर होती है कि जो कांग्रेस पंचायत से पार्लियामेंट तक अपनी दमदार उपस्थिति रखती थी, आज वही कांग्रेस भारतीय राजनीति में अप्रासंगिक हो गई है। ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है, क्योंकि आज बिहार से लगाये कई राज्यों की सियासत गर्म है और इन सबमें में कांग्रेस कहीं गुम-सी नज़र आ रही है। बिहार में महागठबंधन
सत्ता की सियासत में गठबंधनों पर भारी दिलों की दीवारें
बिहार में चल रहे सियासी उठा-पटक के बीच जो लोग टेलीविजन से चिपके हुए थे, उन्होंने एक दिलचस्प नजारा देखा – महज 60 मिनट के भीतर ही रिश्तों और मर्यादाओं की सीमाएं टूटने का। कुछ देर पहले तक जो लालू यादव नीतीश कुमार को छोटा भाई बताते हुए गठबंधन को अटूट बता रहे थे, वही लालू बदले हुए तेवर में नीतीश को मौकापरस्त और हत्यारोपी तक साबित करने में जुटे हुए थे। उनके बेटे और बिहार के पूर्व