अंतर्कलह के ड्रामे से अखिलेश राज की विफलताओं को छुपाने की बेजा कवायद कर रहे मुलायम !
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आते जा रहे हैं, सूबे की मौजूदा सरकार की पीड़ा लगातार बढ़ती नजर आ रही है। प्रदेश में डूबती सियासी विरासत को संजोने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें सूबे की सपा सरकार और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह में भी तकरार देखने को मिल रही है। दंगो, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलताओं से भरी सियासी पारी को बचाने के लिए सपा कुनबा तरह-तरह के पैंतर
हमेशा से अध्ययनशील परम्परा की अनुगामी रही है भाजपा
प्रसिद्ध जर्मन भाषाविद और लेखक मैक्समूलर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘इंडिया व्हॉट कैन इट टीच अस’ में कहते हैं- ‘अगर मुझसे पूछा जाए कि वह कौन सा स्थान है, जहां मानव ने अपने भीतर सद्भावों को पूर्ण रूप से विकसित किया है और गहराई में उतर कर जीवन की कठिनतम समस्याओं पर विचार किया है, तो मेरी उंगली भारत की तरफ उठेगी।’ ज़ाहिर है जब पश्चिम तक सभ्यता के सूरज ने पहुंचने
भ्रम और नेतृत्वहीनता के भँवर में घिरी कांग्रेस
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इस वक्त उस दौर से गुजर रही है जहां पार्टी नेतृत्व के सम्बन्ध में उसके नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक में एक भ्रम और उलझन लक्षित किया जा सकता है । अपनी बीमारी और राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की रणनीति के तहत कांग्रेस अध्यक्षा ने खुद को नेपथ्य में रखा था । उनके नेपथ्य में रहने की वजह से पुरानी पीढ़ी के नेता स्वत: परिधि पर चले गए थे और राहुल गांधी के आसपास के
विमुद्रीकरण : निर्णय एक आयाम अनेक
सचमुच अतुलनीय हैं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी। अनपेक्षित और चौकाऊ, हर कयास से परे, हर वह साहसिक फैसला लेने को हमेशा तैयार जिससे देश का कोई भला होने वाला हो, जिससे माँ भारती का भाल ज़रा और ऊँचा उठने वाला हो। देश भर में भाजपा-जन जब राजनीति में शुचिता के प्रतीक पुरुष श्री लालकृष्ण आडवाणी का जन्मदिन मना रहे थे, उसी दिन भारत में आर्थिक स्वच्छता के एक बड़े कदम, या यूं कहें
यूपी चुनाव : भाजपा को रोकने की बेबसी का नाम ‘महागठबंधन’
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब बमुश्किल दो-तीन महीने शेष हैं, ऐसे में सूबे के सभी राजनीतिक दलों द्वारा अपनी-अपनी राजनीतिक बिसात बिछाकर चालें चली जाने लगी हैं। सत्तारूढ़ सपा जहाँ अपने अंदरूनी कलह के बावजूद अखिलेश को विकास पुरुष के रूप में पेश करने में लगी है, वहीँ बसपा सपा शासन की खामियाँ गिनवाने और बड़े-बड़े वादे करने में मशगुल है। कांग्रेस दिल्ली से शिला दीक्षित जैसे बड़े
भारत ही नहीं, समूचे विश्व के लिये प्रेरणा के स्रोत हैं अटल बिहारी वाजपेयी
‘हार नहीं मानूंगा, रार ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ’ जैसीे कविताओं से सभी के ह्रदय को जीतने वाले महान भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय परिप्रेक्ष्य में हुए, जिन्होंने राजनीति के साथ साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी चलाकर हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया और पूरी निष्ठा से संघ के कार्य में जुटकर देश को आगे ले जाने में अपना बहुमूल्य योगदान देना शुरू किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित
अटल बिहार वाजपेयी : एक कवि-ह्रदय राजनेता
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर के शिंके का बाड़ा मुहल्ले में हुआ था। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी अध्यापन का कार्य करते थे और माता कृष्णा देवी घरेलू महिला थीं। अटलजी अपने माता-पिता की सातवीं संतान थे। उनसे बड़े तीन भाई और तीन बहनें थीं। अटलजी के बड़े भाइयों को अवध बिहारी वाजपेयी, सदा बिहारी वाजपेयी तथा प्रेम बिहारी वाजपेयी के नाम
भारतीय राजनीति के ‘राजर्षि’ हैं अटल बिहारी वाजपेयी
आपने वर्णमाला भी अभी पूरी तरह से सीखी नहीं हो और कहा जाय कि निराला के अवदान पर कोई निबंध लिखें; ‘दिनकर’ पर टिप्पणी आपको तब लिखने को कहा जाय जब आपने विद्यालय जाना शुरू ही किया हो, इतना ही कठिन है राजनीति के अपने जैसे किसी शिशु अध्येता के लिए अटल जी पर कुछ लिखना। और अगर साहित्य के साधक ऋषि का ‘राजर्षि’ में रूपांतरण या साहित्य और राजनीति दोनों को दूध और
यूपी चुनाव : भाजपा की परिवर्तन यात्रा में उमड़ रहा जनसैलाब, विपक्षियों के ध्वस्त हो रहे समीकरण
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अपनी धाक जमाने और जनता के दिलों में घर बनाने के लिए भाजपा एड़ी-चोटी का दम लगाकर तैयारियां कर चुकी है। परिवर्तन ना सिर्फ जमीनी स्तर पर हो, बल्कि इस परिवर्तन की लहर लोगों के दिलों-दिमाग पर भी छा जाए, इसके लिए चुनाव प्रचार करने का अनोखा तरीका अपनाते हुए परिवर्तन यात्रा शुरू कर दी। भाजपा की इस परिवर्तन यात्रा का जोर उत्तर प्रदेश की जनता पर
भाजपा की अध्ययन परंपरा और वर्तमान परिदृश्य
गोयबल्स थ्योरी कहती है कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच लगने लगता है। इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी जमात ने ऐसे अनेक झूठ हजार बार बोले हैं। उन्हीं में से एक बड़ा झूठ यह भी कि राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग, खासकर संघ और भाजपा वाले, पढ़ते-लिखते नहीं है। यह कोरा झूठ कम से कम हजार बार, सैकड़ों तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा बोला गया होगा। 21 दिसंबर को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष