क्या ममता के राज में भाजपा का कार्यकर्ता होना भी गुनाह हो गया है ?
पश्चिम बंगाल में इन दिनों राजनीतिक अराजकता चरम पर है। यह अराजकता इसलिए है, क्योंकि वहाँ बीते दिनों दो भाजपा कार्यकर्ताओं की दुर्दांत हत्या हुई, लेकिन आश्चर्य की बात है कि इन दोनों हत्याओं पर बुद्धिजीवियों का दिल नहीं पसीजा है। शायद इसकी वजह ये है कि ये दोनों कार्यकर्ता भाजपा के थे। पहली हत्या एक जून को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में हुई।
’18 साल की उम्र में बीजेपी के लिए काम करोगे तो यही हश्र होगा’
भारत जैसे विविधताओं से भरे महान लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक हत्याओं के मामले जब सामने आते हैं, तो निश्चित तौर पर यह लोकतंत्र को मुंह चिढ़ाने वाली बात होती है। राजनीतिक हत्याएं न केवल भारत के विचार–विनिमय की संस्कृति को चोट पहुँचाने वाला विषय हैं, बल्कि यह सोचने पर मज़बूर भी करती हैं कि राजनीति में अब सियासी भाईचारे की जगह बची है अथवा
पंचायत चुनाव : हिंसा के सहारे कबतक अपनी राजनीतिक जमीन बचा पाएंगी, ममता !
पश्चिम बंगाल में सोमवार को संपन्न हुए पंचायत चुनाव में दर्जन भर लोग मारे गए और कम से कम पचास लोग घायल हो गए। हालांकि ममता बनर्जी ने कहा कि राज्य में छह से ज्यादा लोगों की मौत नहीं हुई है, लेकिन चुनाव पूर्व और चुनाव के दौरान की हिंसा को अगर देखा जाए तो पंचायत चुनाव के दौरान कम से कम अब तक 50 लोगों की मौत हो चुकी है, यह आंकड़े 2013 में हुए चुनाव से कहीं ज्यादा भयावह हैं।
ममता बनर्जी के तीसरे मोर्चे की कवायदों से बढ़ेगी कांग्रेस की परेशानी !
पिछले कुछ समय से देश की सियासत में एक नया चलन देखने को मिल रहा है कि जब भी लोकसभा चुनाव आसन्न होते हैं, देश की सभी छोटी-बड़ी पार्टियां सामूहिक एकता दर्शाने के लिए सामूहिक भोज का आयोजन करने लगती हैं। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी ने ऐसे ही एक भोज का आयोजन कर रस्मी तौर पर एक फोटोग्राफ जारी कर दिया। मानो गठबंधन की खानापूर्ति हो गई। क्या
जलता रहा बंगाल और दिल्ली में बैठकर राजनीति करती रहीं ममता बनर्जी !
बंगाल में इन दिनों अराजकता मची हुई है। खुलेआम हिंसा और अशांति का नंगा नाच चला और राज्य सरकार इसे नियंत्रित नहीं कर पाई। रामनवमी के जुलूस को लेकर अभी तक कई स्थानों पर हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं। सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ और हमेशा की तरह निर्दोष नागरिकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। बंगाल के आसनसोल और रानीगंज में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि यहां लोगों के सिर से छत
बंगाल में भाजपा के बढ़ते प्रभाव से घबराई ममता तानाशाही पर उतर आई हैं !
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वोटबैंक सियासत में इतना उलझ गई हैं कि अब उन्हें राष्ट्रवादी विचारो से परेशानी होने लगी है। वस्तुतः इसे वह अपने लिए सबसे बड़ी चुनौती मानने लगी हैं। यही कारण है कि उनकी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम हेतु महाजाति आडिटोरियम की बुकिंग रदद् करा दी। यह राज्य सरकार का आडिटोरियम है। बताया जाता है कि संबंधित अधिकारियों
‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की वर्षगाँठ पर भी अपनी नकारात्मक राजनीति से बाज नहीं आया विपक्ष !
भारत छोड़ो आंदोलन की पचहत्तरवीं वर्षगांठ देश के लिए अहम है। इस दिन राष्ट्र-हित के विषयों का चयन होना चाहिए था और उनके प्रति संकल्प का भाव व्यक्त होना चाहिए था जिससे खास तौर पर युवा पीढ़ी उन राष्ट्रीय मूल्यों को समझ सके जिनकी स्थापना हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानियों ने की थी। लोकसभा और राज्यसभा ने इस संबंध में अलग-अलग संकल्प पारित किए। मगर उसके पहले विपक्षी नेताओं ने
भाजपा के प्रति ममता का ये अंधविरोध खुद उन्हें ही नुकसान पहुंचाएगा !
2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा के प्रति विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है। विशेष रूप से गत वर्ष हुई नवम्बर में हुई नोटबंदी के बाद से तो उनका भाजपा विरोध घृणा के स्तर तक पहुँचता नज़र आ रहा है। भाजपा के प्रति वे अपने विरोध को जिस-तिस प्रकार से जाहिर करती रहती हैं। अब उन्होंने घोषणा की है कि आगामी 9 अगस्त से वे ‘बीजेपी भारत छोड़ो’ नामक
बंगाल हिंसा : इखलाक और जुनैद पर आंसू बहाने वाले कार्तिक घोष पर सन्नाटा क्यों मारे हुए हैं ?
कार्तिक घोष न तो जुनैद बन पाया और न ही अखलाक। कार्तिक के लिए तथाकथित सेकुलरों से लेकर स्वघोषित मानवाधिकारवादियों ने जंतर-मंतर पर जाकर कैंडिल मार्च भी नहीं निकाला। बता दें कि पश्चिम बंगाल के 24 परगना में बीते दिनों भड़की खूनी सांप्रदायिक हिंसा में कार्तिक को अपनी जान गंवानी पड़ी। ये देश के सेकुलरानों का मिजाज है। कोई हिन्दू मारा जाए तो उफ तक न करो। कोई मुसलमान भीड़ का शिकार हो तो
ममता के संकीर्ण राजनीतिक हितों में फँसकर दंगों का प्रदेश बनने की ओर बढ़ता बंगाल !
बंगाल इन दिनों दो तरफा समस्याओं से घिरा हुआ है। एक तरफ गोरखा आन्दोलन में दार्जीलिंग डूबा हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर उत्तरी परगना जिले के बादुरिया और बाशीरहाट सांप्रदायिक तनाव से जूझ रहे हैं। इन सबमें सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है ममता सरकार, जो इन उत्पातों को रोककर शांति कायम करने में विफल नज़र आ रही है। बंगाल में पहली बार ऐसा तनाव देखने को नही मिल रहा, बल्कि हाल के वर्षों में बंगाल में