वंशवादी राजनीति से मुक्ति की दिशा में बढ़ रहा है देश
प्रधानमंत्री मोदी विकास की राजनीति के जरिए लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन यानी वंशवादी राजनीति को ठिकाने लगाने में जुटे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है।
मुलायम के पदचिन्हों पर चलते हुए अखिलेश दे रहे राजनीति में अपराधीकरण को बढ़ावा
सपा के मुखिया अखिलेश यादव जनता के बीच चाहे जो दावा कर लें, मौका मिलते ही वह पहले की तरह माफिया एवं अपराधियों की रहनुमाई, दंगाइयों और आतंकियों की पैरोकारी करने से बाज नहीं आते।
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, वो आजम के बयान को गलत मान ही कैसे सकता है!
जो दल ‘बलात्कार’ को ‘गलती’ मानता रहा हो, उसके लिए आजम का बयान आपत्तिजनक कैसे हो सकता है? आजम का बयान हो, चाहें अखिलेश-डिम्पल का उसके बचाव में उतरना हो, ये सब समाजवादी पार्टी के उसी बुनियादी संस्कार से प्रेरित आचरण है, जिसकी झलक सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के ‘लड़कों से गलती हो जाती है’ वाले बयान में दिखाई देती है।
महागठबंधन: हर हप्ते बदल रहा विपक्ष का प्रधानमंत्री उम्मीदवार
चुनाव से पहले देश की राजनीति बहुत हो रोचक दौर में प्रवेश कर गई है। विपक्षी गठबंधन का आलम यह है कि विपक्ष की तरफ से हर हफ्ते प्रधानमंत्री पद के नए दावेदार सामने आ रहे हैं। आज उन्हीं नामों की चर्चा जो प्रधानमंत्री पद की रेस में बने हुए हैं।कांग्रेस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी है (संसद में वैसे कांग्रेस को विपक्षी दल का स्टेटस हासिल नहीं है), जिसके अध्यक्ष राहुल गाँधी पिछले कई सालों से प्रधानमंत्री पद की दौड़ में लगातार बने हुए हैं।
गायत्री प्रजापति को बचाना कौन-सी क़ानून व्यवस्था है, अखिलेश जी ?
यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री और अमेठी विधानसभा क्षेत्र से सपा प्रत्याशी गायत्री प्रजापति जो पहले से ही खनन घोटाले सम्बन्धी आरोपों से घिरे थे, पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का आरोप सामने आना सपा की मुश्किलें बढ़ा सकता है। दरअसल मामला कुछ यूँ है कि विगत दिनों एक महिला द्वारा गायत्री प्रजापति पर यह आरोप लगाया गया है कि २०१४ में उन्होंने उसे प्लाट दिलाने के बहाने अपने लखनऊ स्थित
अखिलेश राज की नाकामियों को ढँकने की कवायद है अंतर्कलह का समाजवादी नाटक
वर्चस्व की जंग के बीच भले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के दरम्यान सीजफायर का एलान न हुआ हो और दोनों तरफ से तनातनी बनी हो पर सियासी इजारदारी पर हक जताने की इस आपाधापी में घंटे-आधे घंटे के लिए क्रांतिकारी बने अखिलेश यादव और पुराने जमींदारों की तरह बर्ताव करते देखे गए सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव दोनों के बीच समाजवादी किले पर