तथाकथित सेक्युलर मीडिया को पत्रकार रोहित सरदाना का करारा जवाब
किले दरक रहे हैं। तनाव बढ़ रहा है। पहले तनाव टीवी की रिपोर्टों तक सीमित रहता था। फिर एंकरिंग में संपादकीय घोल देने तक आ पहुंचा। जब उतने में भी बात नहीं बनी तो ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, अखबार, हैंगआउट – जिसकी जहां तक पहुंच है, वो वहां तक जा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करने लगा।जब मठाधीशी टूटती है, तो वही होता है जो आज भारतीय टेलीविज़न में हो रहा है। कभी सेंसरशिप के खिलाफ़ नारा लगाने वाले कथित पत्रकार – एक दूसरे के खिलाफ़ तलवारें निकाल के तभी खड़े हुए हैं जब अपने अपने गढ़ बिखरते दिखने लगे हैं। क्यों कि उन्हें लगता था कि ये देश केवल वही और उतना ही सोचेगा और सोच सकता है – जितना वो चाहते और तय कर देते हैं। लेकिन ये क्या ? लोग तो किसी और की कही बातों पर भी ध्यान देने लगे।