लोकतंत्र

भारत के मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप की मांग कर राहुल गांधी ने बचकानेपन की सभी हदें पार कर दी हैं

भाजपा सरकार कोई बलात नहीं वरन भारी बहुमत से चुनकर आई हुई सरकार है। इस चुनी हुई सरकार के विरुद्ध राहुल का एक अन्य देश से अपील करना देश के लोकतंत्र और जनमत का अपमान तो है ही, शर्मनाक भी है।

किसान आंदोलन की दशा और दिशा

अब किसान आंदोलन किसानों से निकल कर ऐसे ही संदिग्ध हाथों में पहुँच गया है। ऐसे में सरकार जिस धैर्य से काम ले रही है वो ठीक ही है।

भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का गौरवशाली कीर्तिस्तंभ होगा नया संसद भवन

नया संसद-भवन भारत की लोकतांत्रिक यात्रा का गौरवशाली कीर्त्तिस्तंभ है, मील का पत्थर है। यह राष्ट्र के मस्तक का रत्नजड़ित मान-मुकुट है।

‘उपसभापति हरिवंश का आचरण प्रशंसनीय ही नहीं, अनुकरणीय और वरेण्य भी है’

त्वरित प्रतिक्रिया एवं तल्ख़ टीका-टिप्पणियों वाले इस दौर में उपसभापति हरिवंश का यह आचरण न केवल प्रशंसनीय है, अपितु अनुकरणीय एवं वरेण्य भी है।

सरकार का अंधविरोध करते-करते विपक्ष अब संसदीय मर्यादाओं के विरोध पर उतर गया है

हां तक बिल की बात है, यह पूरी संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक ढंग से पारित किया गया है। लेकिन विपक्ष ने तो इस तरह हंगामा मचाया मानो इसे पिछले दरवाजे से बिना प्रक्रिया पूरी किए पास कर दिया गया हो।

‘आपातकाल के विरोध में उठा हर स्वर वंदन का अधिकारी है’

आपातकाल के दौरान मैं बक्सर व आरा की जेल में बंद रहा था। वो संघर्ष और यातना का दौर था। उस समय मेरे जैसे लाखों युवा देश की विभिन्न जेलों में बंद थे।

डॉ. भीमराव आंबेडकर : भारत की सामाजिक समरसता के शिल्पकार

समाज को समरसता के सूत्र में पिरोकर उसे संगठित और सशक्त बनाने वाले महानायकों में एक हैं डॉ. भीमराव आंबेडकर। भारत के संविधान को बनाने, गढ़ने वाले डॉ. आंबेडकर यानि वह विभूति जो आने वाले युग की झलक भांपकर देश को उसके अनुसार बढ़ने की प्रेरणा देती रही। ऐसे प्रखर राष्ट्रभक्त, युगदृष्टा के 130वें जयंती वर्ष पर उन्हें व उनके चिंतन को,

संविधान दिवस : सिर्फ अधिकार नहीं, मौलिक कर्तव्यों के प्रति भी सजग हों नागरिक

संविधान दिवस वस्तुतः कर्तव्य बोध का अवसर होता है। देश को संविधान के अनुरूप चलाने में जन सामान्य का भी योगदान रहता है, उनकी भी इसमें भूमिका होती है। इसीलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग से हुई है। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पारित किया। लेकिन इसे 26 जनवरी, 1950 को विधिवत लागू किया गया। यह हमारा गणतंत्र दिवस हुआ।

ममता के अलोकतांत्रिक शासन से त्रस्त बंगाल

ममता ताकत और तानाशाही के दम पर अपनी सत्ता को स्थायी करना चाहती हैं, मगर उन्हें समझना चाहिए कि ये लोकतंत्र है, जहां ताकत से नहीं, जनमत से निर्णय होते हैं और जनमत को अपने पक्ष में करने का केवल एक ही उपाय है कि संकीर्ण राजनीतिक हितों व स्वार्थों को छोड़ सकारात्मक सोच के साथ देश की प्रगति के लिए कार्य किया जाए।

‘हिंसा की राजनीति से ममता ने जो किला बनाया था, अब उसमे लोकतंत्र की सेंधमारी हो गयी है’

इन दिनों पश्चिम बंगाल देश की राजनीति में सुर्खियों का केंद्र बना हुआ है। इसके मूल में हैं यहां की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी और लोकसभा में जमीन खिसकने के बाद बढ़ चुकी उनकी बौखलाहट। उन्‍होंने जिस नफरत और हिंसा की राजनीति से बंगाल का अपना किला बनाया था, अब उसमें लोकतंत्र की सेंधमारी हो गई है। वह किला अब दरक रहा है और इससे ममता का गुस्‍सा दिनोदिन भड़कने लगा है। असल में, लोकसभा चुनाव से पहले ही ममता को आभास हो गया था कि अब यहां की जनता बदलाव