क्यों लगता है कि सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा को नहीं होगी कोई मुश्किल?
2019 लोक सभा चुनाव से पूर्व देश के सबसे महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश ने कांग्रेस को न चाहते हुए भी अपना दुश्मन नंबर-2 बना लिया है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को हराने की मजबूरी में दो ऐसी पार्टियों सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ जो पिछले दो दशक से एकदूसरे की धुर विरोधी रही हैं।
यूपी उपचुनाव : कम मतदान होना सपा-बसपा गठजोड़ के लिए कोई ठीक संकेत नहीं है !
यूपी के दो लोकसभा क्षेत्रों गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनाव संपन्न हो गए, जिनका परिणाम १४ मार्च को आना है। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर सीट तो केशव प्रसाद मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद फूलपुर सीट रिक्त हुई थी। लेकिन, इन दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में जिस तरह से पिछले लोकसभा चुनाव की अपेक्षा मतदान के प्रतिशत में भारी गिरावट आई है, उसने चुनावी पंडितों
यूपी लोकसभा उपचुनाव : सपा-कांग्रेस गठबंधन जैसा ही होगा सपा-बसपा गठजोड़ का भी हश्र !
राष्ट्रीय स्तर पर केसरिया उभार ने उत्तर प्रदेश में विपक्ष को गठजोड़ के लिए विवश कर दिया। लेकिन, इन्होने आज की बीमारी के लिए पच्चीस वर्ष पुरानी दवा लेने का निर्णय लिया है। इस लंबी अवधि में बहुत कुछ बदल गया। गोमती का न जाने कितना पानी बह चुका। अब बसपा संस्थापक कांशीराम हैं नहीं, सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव उस पार्टी के लिए बेगाने हो गए हैं, जिसकी स्थापना उन्होंने की थी। मतलब
योगी सरकार के श्वेत पत्र ने खोला सपा-बसपा सरकारों के ‘कारनामों’ का कच्चा-चिट्ठा
विरासत पर श्वेतपत्र जारी करना प्रत्येक सरकार का अधिकार और कर्तव्य दोनो है। यह एक बेहतर परम्परा है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसकी शुरुआत की है। प्रदेश की जनता को पिछली सरकारों के क्रियाकलापो के संबन्ध में जानने का अधिकार भी है। चुनाव के समय बहुत आरोप प्रत्यारोप लगते हैं। जो पार्टी सत्ता में आती है, उसी पर सच्चाई को सामने लाने की जिम्मेदारी होती है। यदि यह कार्य पिछली
सत्ता की सियासत में गठबंधनों पर भारी दिलों की दीवारें
बिहार में चल रहे सियासी उठा-पटक के बीच जो लोग टेलीविजन से चिपके हुए थे, उन्होंने एक दिलचस्प नजारा देखा – महज 60 मिनट के भीतर ही रिश्तों और मर्यादाओं की सीमाएं टूटने का। कुछ देर पहले तक जो लालू यादव नीतीश कुमार को छोटा भाई बताते हुए गठबंधन को अटूट बता रहे थे, वही लालू बदले हुए तेवर में नीतीश को मौकापरस्त और हत्यारोपी तक साबित करने में जुटे हुए थे। उनके बेटे और बिहार के पूर्व
सपा-बसपा की जातिवादी राजनीति से बदहाल हुए यूपी के किसान
जहां तक उत्तर प्रदेश के किसानों की बदहाली का सवाल है, तो उसके लिए जातिवादी राजनीति जिम्मेदार है। पिछले तीन दशकों से उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति चरम पर रही। विकास पर राजनीति के भारी पड़ने का ही परिणाम है कि सिंचाई, बिजली आपूर्ति, ग्रामीण सड़क, बीज विकास, भंडारण, विपणन, सहकारिता जैसी किसान उपयोगी गतिविधियां ठप पड़ गईं। इस दौरान पूरा प्रशासनिक अमला समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की जातिवादी राजनीति के हितों को पूरा करने में लगा रहा।
मोदी-शाह के तिलिस्म से अबूझ विपक्ष
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आ गए हैं। हार-जीत के कयास अब नतीजों में तब्दील होकर देश के सामने है। पांच राज्यों में से दो, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड, जहाँ भाजपा के पास सत्ता नहीं थी उनमे भाजपा ने सत्ता में मजबूती से वापसी की है। पूर्वोत्तर भारत का एक राज्य मणिपुर, जहाँ भाजपा न के बराबर थी वहां भाजपा ने सबसे ज्यादा 36.3 फीसद वोट हासिल किया है और 21 सीटें भी हासिल की है। गोवा राज्य में
यूपी को ये वाला ‘साथ’ पसंद है !
पांच राज्यों के चुनाव परिणाम लगभग-लगभग आ चुके हैं। यूपी और उत्तराखंड में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिल चुका है। गोवा और मणिपुर में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है। दस साल से पंजाब की सत्ता में रहे अकाली दल और भाजपा के गठबंधन को इसबार संभवतः सत्ता-विरोधी रुझान के कारण हार का सामना करना पड़ा है। बहरहाल, इन पाँचों राज्यों में उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों को लेकर लोगों में सर्वाधिक
स्थानीय निकायों में मजबूत होती भाजपा
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब चंद दिन ही शेष रह गए हैं । राजनीतिक विश्लेषक इस चुनाव के नतीजे को लेकर तरह-तरह का आंकलन कर रहे हैं । बौद्धिक जुगाली के लिए हर तरह के जातिगत और अन्य आंकड़ों का इस्तेमाल किया जा रहा है । भारतीय जनता पार्टी की नीतियों का लंबे समय से विरोध करनेवाले व्यक्ति और संस्थाएं भी इस बात पर एकमत दिखती हैं कि उत्तर प्रदेश में भारतीय
यूपी चुनाव : सोशल इंजीनियरिंग के नए समीकरण
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अपने अंतिम चरण में है। सियासी समीकरण कयासों की कसौटी पर अलग-अलग ढंग से कसे जा रहे हैं। यूपी का ताज किसके सर बंधेगा और कौन इस इस जंग में मुंह की खायेगा, इस सवाल पर सियासी पंडित अलग-अलग आकलन कर रहे हैं। हालांकि अलग-अलग जानकारों का अलग-अलग आकलन होने के बावजूद एक बात पर सभी सहमत नजर आ रहे हैं कि लड़ाई के केंद्र में