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पाठ्यक्रमों पर गहराया लाल रंग न तो हिंदी के विद्यार्थियों के लिए अच्छा है, न ही समाज के लिए – प्रो चन्दन कुमार

साहित्य यूँ तो समाज का दर्पण कहा जाता है, लेकिन क्या हो जब यह दर्पण किसी ख़ास विचारधारा का मुखपत्र भर बन कर रह जाये ? क्या हो जब साहित्य के नाम पर विचारधारा का प्रचार किया जाने लगे। साहित्य की दुनिया में एक खास विचारधारा की तानाशाहियों पर खुलकर बातचीत की हिंदी-विभाग के प्रोफ़ेसर चन्दन कुमार से