अखिलेश

अगर राहुल भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं, तो ममता-माया-अखिलेश जैसों के घोटालों पर क्यों नहीं बोलते?

क्या राहुल रॉफेल डील से सचमुच असंतुष्ट हैं? अगर हाँ, तो जैसा कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, उन्हें ठोस सबूत पेश करने चाहिए। अगर वो कहते हैं और मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनिल अंबानी को 30 हज़ार करोड़ रुपए दिए हैं तो इसे सिद्ध करें, कहीं न कहीं किसी ना किसी खाते में पैसों का लेनदेन दिखाएं।

व्यंग्य : उत्तर प्रदेश में ‘काम’ के बोलने की कहानी

इक्कीसवीं सदी की जवानी परवान पर थी। ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘समाजवादी प्रजातंत्र’ का ज़बर्दस्त जलवा था। जलवा भी ऐसा-वैसा नहीं! बस यूं समझ लीजिए कि ‘काम’ बोलता था। ‘प्रजातंत्र’ के ‘प्रजापति’ लोग ‘कामुकता’ की पराकाष्ठा पार कर चुके थे। ‘काम’ बोलता रहा और ‘उत्तम प्रदेश’ में ‘प्रजातंत्र’ कब ‘प्रजापति-तंत्र’ में तब्दील हो गया, किसी को पता भी नहीं चला। वहां की सरकार में ‘प्रजापति’ की जगह पक्की रहती

यूपी चुनाव : अपने विकासवादी एजेंडे के साथ प्रदेश में सबसे मज़बूत नज़र आ रही भाजपा

उत्तर प्रदेश सात चरणों में से तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। प्रदेश की आवाम लोकतंत्र के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मना रही है। यही कारण है कि जैसे -जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे है, वोटिंग फीसद भी 2012 के मुकाबले बढ़ रहा है। मतदान प्रतिशत बढ़ना अक्सर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित होता है, इसलिए ये सपा-कांग्रेस गठबंधन की चिंता को बढ़ा रहा है, तो भाजपा की उम्मीदों को और

यूपी चुनाव : भाजपा के पक्ष में दिख रही लोकसभा चुनाव जैसी लहर

संभवतः इस सप्ताह चुनाव आयोग उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दे। सभी पार्टियाँ पूरी तैयारी के साथ प्रदेश के चुनावी दंगल में उतरने के लिए बेताब हैं, सभी दल अपनी–अपनी दावेदारी पेश करने में लगे हैं, किन्तु लोकतंत्र में असल दावेदार कौन होगा इसकी चाभी जनता के पास होती है। सत्ता की चाभी यूपी की जनता किसे सौंपती है यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। लेकिन, यूपी में जो

सियासी ड्रामे से विफलताओं पर परदा डालने की क़वायद

उत्तर प्रदेश की राजनीति में चल रहा सत्ताधारी परिवारवादी कुनबे का सियासी ड्रामा आखिरकार उसी बिंदु पर खत्म हुआ जिस पर उसे खत्म होना था। सियासी ड्रामे का यह अंतिम चरण कहा जा सकता है। इसके पहले भी अक्तूबर महीने में यह उठा-पटक तेज हुई थी। उस समय सपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष

अंतर्कलह के ड्रामे से अखिलेश राज की विफलताओं को छुपाने की बेजा कवायद कर रहे मुलायम !

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे पास आते जा रहे हैं, सूबे की मौजूदा सरकार की पीड़ा लगातार बढ़ती नजर आ रही है। प्रदेश में डूबती सियासी विरासत को संजोने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिसमें सूबे की सपा सरकार और सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह में भी तकरार देखने को मिल रही है। दंगो, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक विफलताओं से भरी सियासी पारी को बचाने के लिए सपा कुनबा तरह-तरह के पैंतर

यह ‘विकास रथ’ नहीं, अखिलेश सरकार का ‘विदाई रथ’ है!

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे–जैसे करीब आ रहा है, सूबे की सियासत भी हर रोज़ नए करवट लेती नजर आ रही है। हर रोज़ ऐसी खबरें सामने आ रहीं हैं, जो प्रदेश की सियासत में बड़ा उलट फेर करने का माद्दा रखतीं हैं। सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी की आंतरिक कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही। गत जून माह से ही चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच शुरू हुई तल्खी लागतार बढती जा रही है। अगर

जातीय तुष्टिकरण से बदहाल उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में माँ-बेटी के साथ हुई गैंगरेप की वारदात ने एकबार फिर यह साफ़ कर दिया है कि अपने शासन के चार वर्ष बीता लेने के बाद भी सूबे की अखिलेश सरकार प्रदेश में क़ानून व्यवस्था को जरा भी दुरुस्त नहीं कर सकी है, बल्कि इस अवधि में क़ानून का राज लचर ही हुआ है।