जानिये क्यों है भाजपा ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’!
उसवक़्त मेरे पास मोबाइल तो नहीं, मगर एक डायरी हुआ करती थी, जिसमें कुछ महत्त्वपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक लोगों के लैंडलाइन नं थे। तब शायद मोबाइल होना बड़ी बात थी। यही कोई 4:30-5:00 बजे का वक्त रहा होगा। मैंने बड़े संकोच और द्वन्द्व के साथ एक टेलीफोन बूथ पर जाकर एक लैंडलाइन नं डायल किया, दूसरी तरफ से जो आवाज आई, उसकी आत्मीयता और अपनेपन ने मेरी सारी झिझक, सारा संकोच क्षण भर में दूर कर दिया।