आतंकवाद की कमर तोड़ने वाला है भाजपा सरकारों का रुख
देश में जहाँ हर तरफ दीपावली के त्योहार की रौनक है, वहीं दूसरी तरफ लगातार आतंकी मंसूबो को अंजाम देने की कोशिशें भी जारी है। देश में दहशत का माहौल फैलाने और खून की होली खेलने के इरादे से इन आतंवादियों ने कभी पाकिस्तान की ओट लेते हुए तो कभी खुलेआम अपने इरादों को जाहिर किया है। दीपावली की अगली ही सुबह को भोपाल सेंट्रल जेल से सिमी के आठ आतंकी जेल तोड़ कर और
ब्रिक्स के मंच से भी पाक को अलग-थलग करने की नीति को आगे बढ़ाएगा भारत
भारत के तटीय राज्य गोवा में आगामी 15 और 16 अक्टूबर को भारत की मेजबानी और अध्यक्षता में आठवीं ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। ऐसे समय में, जब समूचा विश्व आतंकवाद, राजनीतिक संकट, सुरक्षा चिंता और आर्थिक मंदी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, वैसे में ब्रिक्स जैसे वैश्विक संगठनो का महत्व अपने आप बढ़ जाता है। भारत इस शिखर सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा जोर-शोर
पूरी दुनिया के इस्लामिक स्टेट होने से आपको फर्क नहीं पड़ता होगा मिस्टर सेकुलर, पर हमें पड़ता है!
एजेंडा के तहत रिपोर्टिंग करने वाले चैनलों और बुद्धिजीवियों की दृष्टि में…
क्या खुद को ‘एंटी नेशनल’ मानती हैं बरखा दत्त, एक युवा पत्रकार का सवाल!
विगत दिनों वरिष्ठ टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी द्वारा मीडिया के एक धड़े को ‘एंटी नेशनल’ कहा गया था, जिसके बाद बरखा दत्त आदि कई बड़े पत्रकार अर्नब के खिलाफ लामबंद नज़र आए…
तय कीजिये आतंक का मज़हब, वर्ना ये आपका मजहब तय कर देगा
मेरे एक मुस्लिम मित्र थे, जिनसे पहली बार 2012 में मुलाकात हुई थी। प्रथमद्रष्टया स्वभाव के अच्छे लगे, अतः उनसे आत्मीयता भी बढ़ गयी, लेकिन उनका भोलापन और मृदुभाषी होना महज एक दिखावा था। इस बात का आभास मुझे उस समय हुआ जब हम लोग बाटला हाउस एनकाउंटर पर चर्चा कर रहे थे।
तथाकथित सेक्युलर मीडिया को पत्रकार रोहित सरदाना का करारा जवाब
किले दरक रहे हैं। तनाव बढ़ रहा है। पहले तनाव टीवी की रिपोर्टों तक सीमित रहता था। फिर एंकरिंग में संपादकीय घोल देने तक आ पहुंचा। जब उतने में भी बात नहीं बनी तो ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, अखबार, हैंगआउट – जिसकी जहां तक पहुंच है, वो वहां तक जा कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करने लगा।जब मठाधीशी टूटती है, तो वही होता है जो आज भारतीय टेलीविज़न में हो रहा है। कभी सेंसरशिप के खिलाफ़ नारा लगाने वाले कथित पत्रकार – एक दूसरे के खिलाफ़ तलवारें निकाल के तभी खड़े हुए हैं जब अपने अपने गढ़ बिखरते दिखने लगे हैं। क्यों कि उन्हें लगता था कि ये देश केवल वही और उतना ही सोचेगा और सोच सकता है – जितना वो चाहते और तय कर देते हैं। लेकिन ये क्या ? लोग तो किसी और की कही बातों पर भी ध्यान देने लगे।
भारत से भला और कितनी बार मुँह की खाएगा पाकिस्तान?
देश के बंटवारा के बाद से ही पाकिस्तान कदम दर कदम भारत से मुंह की खाता रहा लेकिन वो इससे कोई सीख नहीं ले सका, अथवा लेने की कोशिश नहीं किया। उसके इरादे भारत और खासकर कश्मीर को लेकर कभी भी नेक नहीं रहे। वो उसी कबिलाई मानसिकता में आज भी जी रहा है, जिसकों सदियों पहले सभ्य समाज द्वारा नाकार दिया गया था। अपनी अंदरूनी मामलों से निबटने के बजाय पाकिस्तान हमेशा कश्मीर का राग अलापता रहता है, और यहां अस्थिरता पैदा करने और अलगाव को हवा देने में लगा रहता है। जबकि उस के खुद के आंतरिक मामले इतने जटिल है जो निकट भविष्य में पाकिस्तान को कई टूकड़ों में विभाजित कर सकता है।
गुलाम नबी को तो हीलिंग टच चाहिए, पर बाकी देश को क्या चाहिए?
अभिरंजन कुमार कश्मीर में गुलाम नबी आज़ाद हीलिंग टच की बात कर रहे थे। 70 साल से वहां हीलिंग टच ही हो रहा था। अगर किसी की फीलिंग में हीप्रॉब्लम हो, तो कब तक हीलिंग करें? हीलिंग करते-करते तो दो-दो पाकिस्तान बन गए। हमारा आधा कश्मीर फंसा हुआ है। बचे हुए आधे कश्मीर की भी समूची
दिल्ली का निजाम बदला तो आये आतंकवादियों के समर्थकों के बुरे दिन
दुर्दांत आतंकी और हिजबुल का कमांडर बुरहान की मिजाज पुर्सी में 23 24 25 ……30 31 32 की संख्या वाली जो गिनती चल रही है ये सिर्फ गिनती नहीं है, बल्कि यह कश्मीर से गए हुए वो कुछ लोग हैं, जिन्हे आतंकी के समर्थन करने के एवज में भारतीय सेना ने उनके सही ठिकाने पर भेजा है। मेरा ख्याल है की इनकी संख्या अभी और बढ़ेगी और फिर एक खतरनाक सन्नाटे की तरह रुक जाएगी।