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‘आप’ नेता सुखपाल खैहरा के देश तोड़क बयान पर केजरीवाल की ख़ामोशी का मतलब क्या है ?

कुछ लोग हैं जो आग से खेलने की कोशिश कर रहे, लेकिन उन्हें अंजाम का ज़रा भी इल्म नहीं है। ऐसे ही लोग खालिस्तान और रेफेरेंडम-2020 के नाम पर सियासी रोटियाँ सेंकने में लगे हैं। पंजाब में शांति ऐसे नहीं आई, हजारों बेगुनाह लोगों, सेना के जवानों और पंजाब पुलिस बलों की कुर्बानी के बाद पंजाब में अमन-चैन  का राज कायम हुआ। लेकिन, सब जानते-बूझते हुए भी पिछले

चादर के हिसाब से पाँव फैलाना कब सीखेगी आम आदमी पार्टी ?

अकबर-बीरबल से संबंधित एक मशहूर किस्सा है। अकबर हमेशा से बीरबल की तीक्ष्ण बुद्धि और प्रतिभा से प्रभावित रहते थे। लगभग हर मसले पर बीरबल से राय मशविरा करते थे। दोनों एक दूसरे पर व्यंग्य आदि भी करते थे; कहने का अर्थ यह कि दोनों में मित्रवत संबंध थे। अकबर-बीरबल के बीच के इस तरह के संबंध को देखकर अकबर के नवरत्नों समेत अन्य दरबारियों को ईर्ष्या होती थी।

जनता के पैसे से अपनी छवि चमकाने के चक्कर में फँसे केजरीवाल, फिर खुली नयी राजनीति की पोल

अलग तरह की राजनीति का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में सत्तारूढ़ हुए दो वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। जनता के हित के बड़े-बड़े काम करने का वादा करके सत्ता में आने वाले केजरीवाल इस दौरान काम तो कुछ नहीं किए हैं; मगर अपने विभिन्न कारनामों के लिए खूब चर्चा में रहे हैं। कभी अपने मंत्रियों की गिरफ़्तारी तो कभी नजीब जंग से लेकर अनिल बैज़ल तक दिल्ली के उपराज्यपालों से

वादों की कसौटी पर विफल आम आदमी पार्टी सरकार

विगत १४ फ़रवरी को दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार के दो साल पूरे हो गए । दो साल किसी भी सरकार के काम-काज का आंकलन करने के लिए काफी होता है । ‘आप’ सरकार दो साल तक केंद्र सरकार से टकराव के रास्ते पर चलती रही और उनके कुछ मंत्री विवादों में पड़े । संभव है कि आम आदमी पार्टी ने टकराव को ही अपनी राजनीति का आधार बनाया हो, लेकिन लोकतंत्र में जनहित के कामों को लेकर

अब तो दिल्ली के तुगलक का दरबार छोड़ दीजिये मैत्रेयी पुष्पा जी!

हिंदी दिवस पर दिल्ली सरकार के अतर्गत आने वाली हिंदी अकादमी एकबार फिर विवादों में है। विवाद की वजह सम्मान-वापसी से जुड़ा है। घबराइये मत, यह सम्मान वापसी अवार्ड वापसी वाले उस असहिष्णुता इवेंट जैसा नहीं है। इसबार आम आदमी पार्टी सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली हिंदी अकादमी ने हिंदी दिवस पर तीन साहित्यकारों

खुलीआम आदमी पार्टी की पोल, सामने आई नई राजनीति की हकीकत!

गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार आदि को ख़त्म कर देने के वायदो के साथ भोले-भाले लोगों के दिलो मे विश्वास घोलने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे अपने असली रंग में आती जा रही है। जन-लोकपाल और भ्रष्टाचार को हथकण्डा बनाकर लोगों के दिलो में जो विश्वास आम आदमी पार्टी ने कायम किया था, वह पार्टी की आंतरिक खामियों की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। जिन लोगों ने जनता को यकीन

राजनीतिक मूल्यों और विचारों से हीन है आप, पतन तो होना ही है!

आम आदमी पार्टी (आप) गत फ़रवरी में जब सत्ता में आई तबसे अबतक वो अपने कामों के लिए कम कारनामों के लिए अधिक चर्चा में रही है। राजनीतिक शुचिता, पारदर्शिता और कर्तव्यनिष्ठा की बड़ी-बड़ी कसमें खाकर सत्ता में आने वाली आप ने सत्ता का रसपान करते ही कैसे इन कसमों को तिलांजलि दे दी, उसकी गवाही उसके शासन का ये लगभग डेढ़ साल का समय देता हैं।

ईमानदार राजनीति की निकली हवा, दिल्ली सरकार के पदों की बंदरबाँट करने में डूबे केजरीवाल!

अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन का सहारा लेकर अरविन्द केजरीवाल व उनकी टीम ने मौका देख धीरे-से पूरे आंदोलन को एक-तरफ़ कर अपना नया राजनीतिक एजेंडा आम आदमी पार्टी के रूप में देश में लांच किया।

अराजकता का ध्वस्त होता अधिकारवाद, केजरीवाल को कोर्ट का तमाचा

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को संवैधानिक मर्यादाओं के विधिक विवेचन और स्थापन के बीच अधिकारों की ‘जंग’ में दिल्ली हाईकोर्ट से वाजिब सबक मिलने के साथ ही बड़ा सियासी झटका लगा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने आज केजरीवाल सरकार की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख हैं और वह कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य नहीं हैं। दरअसल आज दिल्ली हाईकोर्ट के सामने प्रश्न था कि दिल्ली पर किसका कितना अधिकार है यानी दिल्ली सरकार का या फिर उपराज्यपाल का।