‘शासन के मोर्चे पर विफल केजरीवाल को टकराव की राजनीति का ही सहारा है’
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए तीन साल का समय हो गया है, इस कालखंड में अगर उनकी सरकार पर नजर डालें तो उसके खाते में काम कम, विवाद ही ज्यादा दिखाई देते हैं। राज्यपाल और केंद्र से टकराव हो या विधायकों का लाभ के पद मामले में अयोग्य सिद्ध होना हो अथवा विपक्षी नेताओं पर उल-जुलूल आरोप लगाकर केजरीवाल का मानहानि के मुकदमों में फँसना हो, ऐसे
जनता के सामने हाजिरी लगाने से डर क्यों रहे, केजरीवाल ?
लाभ के पद मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता चली गई। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद अरविन्द केजरीवाल सरकार ने एक ऐसा हैरानीजनक कदम उठाया था, जिसने राजनीतिक मर्यादा और शुचिता की धज्जियां उड़ा दीं। आज अगर आम आदमी पार्टी के विधायकों के फज़ीहत के लिए कोई ज़िम्मेदार है तो सबसे ज्यादा अरविन्द केजरीवाल ही हैं।
लाभ का पद प्रकरण : ‘आप’ जैसे विचार विहीन दल का ये हश्र चौंकाता नहीं है !
आम आदमी पार्टी के लिए कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। पिछले दिनों राज्यसभा के टिकट दो धनाढ्य लोगों को दिए जाने के बाद से ही लगातार आंतरिक एवं बाहरी विरोधी झेल रही पार्टी को अब सबसे बड़ा झटका लगा है। पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता खत्म होने की कगार पर है। यह मामला लाभ के पद का है, जिसे लेकर निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रपति से इन जनप्रतिनिधियों की सदस्यता समाप्त करने की
अहंकार में चूर केजरीवाल यह नहीं समझ रहे कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती !
आम आदमी पार्टी में एक बार फिर से घमासान मचा हुआ है। इस बार फिर से सत्ता को ही लेकर खींचतान मची और उसके परिणामस्वरूप पार्टी के भीतर आंतरिक कलह फिर प्रकट हो गई। पार्टी ने इसी सप्ताह राज्यसभा के लिए अपने तीन प्रत्याशी तय किए। 16 जनवरी को चुनाव होना है और परिणाम आएंगे। इनमें बाहरी प्रत्याशी सुशील गुप्ता और नारायण गुप्ता को स्थान दिया गया। संजय सिंह पहले से थे।
‘आप’ के पांच साल : व्यवस्था परिवर्तन के वादे से मोदी के अंधविरोध की राजनीति तक
अन्ना आंदोलन की कोख से पैदा हुई आम आदमी पार्टी (आप) अपनी स्थापना की पांचवी सालगिरह मनाने में जोर-शोर से जुटी है। दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाले इस समारोह के लिए “क्रांति के पांच साल” नामक नारा दिया गया है। लेकिन जिस शुचिता और ईमानदारी के संकल्प के साथ पार्टी का गठन हुआ था, अब उसका कोई नामलेवा नहीं रह गया है।
केजरीवाल की राष्ट्रीय नेता बनने की निरर्थक महत्वाकांक्षा ने ‘आप’ को पतन की ओर धकेल दिया है !
दिल्ली पर राज कर रही अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए 23 अगस्त को होने वाला बवाना विधानसभा उप चुनाव एक इम्तिहान से कम नहीं है। एक के बाद एक कई चुनाव हारने के बाद अपनों की बगावत और केजरीवाल की छवि पर हो रहे चौतरफा हमले के कारण इस चुनाव का महत्व बहुत बढ़ गया है।
आम आदमी पार्टी में गहराता जा रहा ‘विश्वास’ का संकट !
जिस तरह से हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी के दफ्तर में कुमार विश्वास ने अपनी सक्रियता बढ़ाई उसके बाद उनपर हमले और तेज हो गए हैं। एक तरफ तो दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा हर दिन खुलासों का दावा करते घूम रहे हैं। कभी एसीबी के दफ्तर तो कभी सीबीआई के दफ्तर, ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के खिलाफ मोर्चा खोलकर आम आदमी पार्टी एक और संकट मोल
अब तो सुधर जाएं केजरीवाल, वर्ना मतदाता तो क्या इतिहास भी उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा !
आम आदमी पार्टी में इन दिनों सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। बाहरी और आंतरिक दोनों मोर्चों पर पार्टी विषम हालातों से जूझ रही है। बाहरी मोर्चं पर जहां एक के बाद एक आए चुनाव परिणामों ने पार्टी के जनाधार को डगमगा दिया, वहीं भीतरी तौर पर भी उपजे विरोधों का सामना करना पड़ रहा है। अधिक समय नहीं बीता था कि कुमार विश्वास ने एक वीडियो जारी करके और विभिन्न मंचों पर कविताओं, बयानों के ज़रिये
‘जब मुझे पीटा जा रहा था, केजरीवाल हँस रहे थे’
अभी अधिक समय नहीं हुआ जब दिल्ली विधानसभा में भाजपा के दो विधायकों को मार्शलों द्वारा बड़े ही घटिया ढंग से बाहर निकाला गया था, इसके बाद अब एक बार फिर इससे भी बदतर व्यवहार पूर्व आप नेता कपिल मिश्रा के साथ हुआ है। दरअसल आम आदमी पार्टी बहुमत के नशे में इतनी चूर हो गयी है कि उसे लोकतान्त्रिक मर्यादाओं और मूल्यों तक का ध्यान नहीं रहा है।
कपिल मिश्रा के आरोपों के आगे निरुत्तर नज़र आ रही आम आदमी पार्टी
क्या अरविन्द केजरीवाल कपिल मिश्रा के आरोपों को केवल इसलिए दरकिनार कर सकते हैं, क्योंकि वह कभी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से जुड़े हुए थे ? राजनीति में कोई भी संशय से परे नहीं होता, केजरीवाल भी नहीं। भारत में अगर कोई नेता इस यथार्थ को झुठलाकर भोली-भाली जनता को चकमा देने की कोशिश करे तो जनता उसे नकार देती है। दिल्ली की जनता कुछ समय के लिए मोहपाश में बंध गई थी।