कर्नाटक : गठबंधन हुआ नहीं कि घमासान भी शुरू हो गया !
कर्नाटक सरकार का सत्ता के अंगना में प्रवेश क्लेश के साथ हुआ। गठबन्धन की मेंहदी लगने के साथ ही कांग्रेस ने अपना रंग दिखा दिया। उपमुख्यमंत्री परमेश्वर ने कहा कि अभी पांच वर्ष सरकार चलाने की गारंटी नहीं दी गई है। इसके पहले मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने विश्वास व्यक्त किया था कि सरकार कार्यकाल पूरा करेगी। उपमुख्यमंत्री का बयान इसी की प्रतिक्रिया में आया
कर्नाटक : ‘122 से 78 सीटों पर पहुँचने के लिए कांग्रेस को खूब-खूब जश्न मुबारक !’
कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद गत दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मीडिया के सामने आए और खुलकर अपनी बात देश के सामने रखी। एक घंटे से ज्यादा चली उनकी इस प्रेसवार्ता में भाजपा ने कांग्रेस के दोहरे चरित्र पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या वाकई कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिल गया है ? क्या कांग्रेस को जनता ने सत्ता से बाहर नहीं कर दिया ? चुनाव पूर्व एकदूसरे
जेडीएस से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है !
कर्नाटक के घटनाक्रमों से एक बार फिर साबित हो गया कि कांग्रेस के लिए सत्ता साधन न होकर साध्य है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार, विशेषकर नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की मजबूरी के तहत बनने जा रही कांग्रेस-जनता दल (एस) सरकार कितनी टिकाऊ साबित होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि ये गठबंधन करके कांग्रेस ने
कर्नाटक चुनाव : कांग्रेस के कुचक्र हुए ध्वस्त, भाजपा की बनी सरकार !
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम सबके सामने हैं। किसी भी दल को वहाँ की जनता ने स्पष्ट जनादेश नहीं दिया, लेकिन भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई और बहुमत के आकड़े को छूते-छूते रह गई। कौन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा ? इस खंडित जनादेश के मायने क्या है ? ऐसे बहुतेरे सवाल इस खंडित जनादेश के आईने में लोगों के जेहन में थे।
कर्नाटक चुनाव : विकास के मुद्दे पर विफल कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति !
यह अजीब है कि कांग्रेस को प्रत्येक चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की याद सताने लगती है। शायद उसे लगता होगा कि संघ पर हमला बोलकर वह अपना समीकरण दुरुस्त कर लेगी। लेकिन, वह मतदाताओं के मिजाज को समझने में विफल हो रही है। लोग जानते हैं कि सच्चाई क्या है। झूठ का सहारा लेकर लोगों को भ्रमित नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक बार भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण
जनता के पैसे से 60 लाख के चाय-बिस्कुट उड़ाने वाले सिद्धारमैया को जवाब देने को तैयार कर्नाटक!
कनार्टक में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस की अपनी-अपनी तैयारियां हैं। दोनों दलों नेता जनता के बीच रैलियां, सभाएं करते हुए अपनी बात अवाम तक पहुंचा रहे हैं। मूल रूप से हिंदी भाषी राज्य न होने के बावजूद यहां हिंदी में दिए गए भाषणों को तरजीह मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कनार्टक राज्य के सघन भ्रमण पर हैं। इस क्रम में वे बेल्लारी, कलबुर्गी, बेंगलुरु, उडुपी आदि स्थानों पर सभाएं कर चुके हैं।
कर्नाटक चुनाव : नामदार पर भारी पड़ रहा कामदार !
कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कामदार शब्द कारगर साबित हुआ। धर्म विभाजन के सहारे चुनाव में उतरी कांग्रेस को इससे कांटा लगा है। क्योंकि, कामदार शब्द ने विकास को प्रमुख मुद्दा बना दिया है। कांग्रेस अपने को इसमें घिरा महसूस कर रही है। उसकी सरकार के लिए विकास के मुद्दे पर टिके रहना संभव होता, तो चलते-चलते विभाजन का मुद्दा न उठाती। यह उसकी कमजोरी का प्रमाण है। मोदी ने इसे
कर्नाटक चुनाव : मोदी के मैदान में उतरते ही कांग्रेस के माथे पर पसीना आने लगा है !
प्रधानमंत्री मोदी के मैदान में आते ही कर्नाटक चुनाव के सारे गणित बदलने लगे हैं। लिंगायत कार्ड खेलकर जो कांग्रेस अपनी ताल ठोंक रही थी, मोदी के आते ही उसके माथे पर पसीना दिखाई देने लगा है। कांग्रेस बैकफुट पर आ गयी है। जैसा कि सभी जानते हैं कि मोदी का चुनावी अंदाज़ तूफानी होता है और वह अपने तर्ज़ पर चुनावी अभियान का संचालन करते हैं।
कर्नाटक चुनाव : विकास के मुद्दे पर बात करने से बच क्यों रही है कांग्रेस ?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर महीने “मन की बात” के ज़रिये देश के लोगों से संवाद स्थापित करते हैं, इसमें वे देश-समाज से जुड़े विकासपरक विषयों पर बात करते हैं। अतः हर महीने देश की जनता में जिज्ञासा रहती है कि वे अबकी इस कार्यक्रम के जरिये किन योजनाओं और नीतियों पर बात करने वाले हैं। लेकिन, विपक्ष और खासकर कांग्रेस पार्टी को शायद हमेशा यह चिंता रहती है कि कैसे हर मुद्दे पर राजनीति की जाए
लिंगायत विभाजन की चाल से खुद कांग्रेस को ही होगा नुकसान !
कर्नाटक में पांच वर्ष तक शासन करने के बाद भी कांग्रेस उपलब्धियों के नाम पर खाली हाथ है। यह विरोधियों का आरोप नहीं, उसकी खुद की कवायद से उजागर हुआ। अब वह धर्म विभाजन के आधार पर अपनी सत्ता बचाने का अंतिम प्रयास कर रही। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित किया। कांग्रेस की त्रासदी समझी जा सकती है। देश के करीब सात