आतंकवाद पर हर तरफ से हमले की रणनीति से पस्त होते जा रहे आतंकियों के हौसले !
आज भारत लगातार आतंकवाद से डटकर मुक़ाबला कर रहा है। भारत में आतंकवाद से सीधे तौर पर प्रभावित राज्य जम्मू-कश्मीर में इन दिनों आतंकियों की शामत आई हुई है। एक तरफ सेना लगातार आतंकियों पर हमला बोल रही है, तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा पाकिस्तान से फंड लेकर आतंकियों को पालने-पोसने वाले अलगाववादियों की नकेल कसने में लगी है। इधर अमेरिका ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन हिजबुल
अलगाववादियों पर हो रही कार्रवाई का घाटी में क्या होगा असर ?
इस साल की शुरुआत में पाकिस्तान से फंडिंग का खुलासा होने के बाद देश में अशांति फ़ैलाने से लेकर कई संगीन अपराधों के लिए अब अलगाववादी नेताओं के कई करीबियों को हिरासत में लिया गया है। देश की सुरक्षा के लिहाज से यह एक बेहद जरूरी कदम था। ईडी ने आतंकी फंडिंग केस में शब्बीर शाह के एक करीबी कथित हवाला डीलर असलम वानी को श्रीनगर से गिरफ्तार किया। साथ ही शब्बीर शाह को भी
सेना ने अब जो ‘रणनीति’ अपनाई है, वो घाटी में आतंक की कमर तोड़ देगी !
कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सेना का अभियान जोरशोर से चल रहा है। इसी क्रम में सेना को बीते सप्ताह बड़ी सफलता मिली। पुलवामा में सुरक्षाबलों ने लश्कर के कमांडर आतंकी अबु दुजाना सहित दो अन्य आतंकियों को मार गिराया। हिजबुल कमांडर बुरहान वानी, लश्कर कमांडर जुनैट मट्टू और सब्जार भट जैसे बड़े आतंकियों के मारे जाने के बाद अब दुजाना के खात्मे को बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। जुनैद
सेना और जांच एजेंसियों के जरिये कश्मीर में आतंकवाद पर सरकार ने बोला दोतरफा हमला !
यूँ तो एक लम्बे समय से केंद्र सरकार ने सेना को कश्मीरी आतंकियों से निपटने के लिए खुली छूट दे रखी है, मगर अब जिस स्तर पर सेना कार्रवाई कर रही उसके अलग ही संकेत हैं। कश्मीर में हिंसा फैलाने वाले आतंकियों के साथ-साथ उनको शह देने वाले अलगाववादियों पर भी सरकार एकदम सख्त रुख अपनाए हुए है। स्पष्ट है कि सरकार अब कश्मीर के सभी अराजक तत्वों से एकदम सख्ती से निपटने का मन बना
अलगाववादियों पर सरकार की सख्ती से कश्मीर में टूटेगी आतंक की कमर
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) इन दिनों अलगाववादी नेताओं की धरपकड़ की कार्रवाई में लगी है। यह कार्रवाई कश्मीर में आतंकवाद को लेकर की जा रही फंडिंग की जांच के तहत की गई है। कुछ महीनों पहले एक चैनल के स्टिंग में अलगाववादी नेता नईम ने कश्मीर में हिंसा फैलाने के लिए अलगाववादियों को पाकिस्तान से फंडिंग होने की बात कही थी, जिसके बाद एनआईए इस मामले की जांच में लग गयी थी। अब इसी मामले
वे कौन-से नमाज़ी थे कि उनके सीने में हत्यारी मानसिकता धधक रही थी !
गत दिनों जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के नौहट्टा स्थित जामिया मस्जिद से नमाज़ अदा करके निकली उन्मादी भीड़ ने मस्जिद के बाहर सुरक्षा इंतजामों के लिए मौजूद डीएसपी अयूब पंडित की निर्ममतापूर्वक पीट-पीटकर हत्या कर दी। उनपर भीड़ के इस हमले के सम्बन्ध में कई तरह की बातें सामने आ रही है।
कश्मीर में सेना की नयी ‘रणनीति’ ने आतंकियों की कमर तोड़ दी है !
पिछले साल हुए सर्जिकल स्ट्राइक जैसे अहम सैन्य ऑपरेशन के बाद भारतीय सेना बहुत मुस्तैद और मारक हो गई है। यही कारण है कि सीमा पर बढ़ रहे लगातार तनाव के बावजूद सेना ने स्थिति को बखूबी संभाला हुआ है। आए दिन सीमा पार से घुसपैठ करने वाले आतंकियों की धरपकड़ की जा रही है, तो कहीं नियमित रूप से मिलिट्री इनकाउंटर में आतंकी मारे जा रहे हैं। कहना होगा कि भारतीय सेना इन दिनों
भारतीय सेना पर लांछन लगा पाकिस्तान की लाइन को आगे बढ़ाते रहे हैं वामपंथी !
भारतीय सेना सदैव से कम्युनिस्टों के निशाने पर रही है। सेना का अपमान करना और उसकी छवि खराब करना, इनका एक प्रमुख एजेंडा है। यह पहली बार नहीं है, जब एक कम्युनिस्ट लेखक ने भारतीय सेना के विरुद्ध लेख लिखा हो। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट लेखक पार्थ चटर्जी ने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की तुलना हत्यारे अंग्रेज जनरल डायर से करके सिर्फ सेना का ही अपमान नहीं किया है, बल्कि अपनी संकीर्ण
कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोल रही है कांग्रेस !
कश्मीर को स्थायी रूप से राख में डालने का काम इसी कांग्रेस के बड़े नेता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने किया था। उसे देश भुगत रहा है। तब पाकिस्तान ने बल प्रयोग से कश्मीर को हथियाने की कोशिश की। लेकिन, कश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचन्द्र महाजन के बार-बार सहायता के अनुरोध पर भी नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार उदासीन रही।
नेहरू की ऐतिहासिक भूलों का परिणाम हैं देश की अधिकांश समस्याएँ
हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कश्मीर समस्या के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। देखा जाए तो कश्मीर ही नहीं, देश में जितनी भी समस्याएं हैं उनमें से अधिकांश के लिए नेहरू परिवार की सत्ता लोभी राजनीति जिम्मेदार है। अपने को उदार साबित करने और विश्व में शांतिरक्षक का तमगा पाने के लिए नेहरू ने कई ऐसी भूलें की हैं, जिनका खामियाजा देश को सैकड़ों वर्षों तक भुगतना