आत्ममुग्धता और अंधविरोध को समर्पित रहा कांग्रेस का अधिवेशन
कांग्रेस का महाधिवेशन पहली बार राहुल गांधी की सदारत में हुआ। उम्मीद थी कि पार्टी में नई सोच, नया उत्साह दिखाई देगा। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। ताजपोशी नयी थी। इसके अलावा कुछ भी नया नहीं था। वही पुरानी बात दोहराई गई जिसके मूल में नरेंद्र मोदी थे। मुकाबले की बात चली तो गठबन्धन पर पहुंच गए। इसके अलावा महाधिवेशन की कोई उपलब्धि नहीं रही। किसी विपक्षी पार्टी के महाधिवेशन में सत्ता पक्ष पर
कांग्रेस अधिवेशन : खयाली पुलाव वाली राजनीति भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएगी !
उत्तर प्रदेश की दो और बिहार के एक लोकसभा सीटों के लिए हुए उप चुनाव में नापाक जातिवादी गठजोड़ की जीत क्या हुई, राजनीति में नए-नए समीकरण बैठाने की मुहिम को पंख लग गए। 2019 के आम चुनाव में सीटों की संख्या और मत प्रतिशत को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं। कांग्रेस की स्थिति तो बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना वाली है। जिन उप चुनावों में भाजपा की हार से उत्साहित होकर वह