कांग्रेस

‘खोट ईवीएम में नहीं, विपक्षी दलों की नीयत में है’

लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है, लेकिन देश में ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों का विलाप थमने का नाम नहीं ले रहा। बीते रविवार को कांग्रेस, आप, टीडीपी आदि विपक्षी दलों द्वारा प्रेसवार्ता में कहा गया कि वे पचास प्रतिशत वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम वोटों से करवाने की मांग लेकर सर्वोच्च न्यायालय में जाएंगे। गौरतलब है कि इससे पूर्व इक्कीस विपक्षी दलों की एक ऐसी ही याचिका को सर्वोच्च न्यायालय खारिज कर चुका है।

संभावित हार की हताशा में एकबार फिर ईवीएम पर सवाल

भारत की विपक्षी पार्टियां भी गज़ब हैं, इन्हें जब-जब भी हार का डर सताता है, ये ईवीएम को चुनावी मैदान में घसीट लाती हैं। यहीं ईवीएम हैं, जिससे इनकी भी सरकारें बनी हैं, लेकिन इन्हें बखेड़ा खड़ा करने की आदत हो गई है। विपक्षी पार्टियों को लगता है कि चुनाव आयोग भी सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलकर कोई बड़ा खेल कर सकता है। पिछले दिनों से आप एक बयान लगातार

राजनीति में परिवारवाद की सभी सीमाएं पार करती जा रही कांग्रेस

आखिर राबर्ट पार्टी में किस पद पर हैं, उनके बच्‍चे पार्टी में कौन सी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं जो वे रिटर्निंग आफिसर के कक्ष तक नामांकन के समय चले गए। ये कृत्य क्या कांग्रेस द्वारा राजनीति में परिवारवाद की सभी मर्यादाओं को पार कर जाने का ही सूचक है।

‘इस चुनाव में ना तो कोई सत्ताविरोधी लहर है, ना ही विपक्ष के पक्ष में हवा’

देश में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग हर राजनैतिक दल मतदाताओं को “जागरूक” करने में लगा है। लेकिन इस चुनाव में खास बात यह है कि इस बार ना तो कोई सत्ताविरोधी लहर है, ना ही सरकार के खिलाफ ठोस मुद्दे और ना ही विपक्ष के पक्ष में हवा। बल्कि अगर यह कहा जाए कि समूचे विपक्ष की हवा ही निकली हुई है तो भी गलत नहीं होगा।  क्योंकि जो

भाजपा के संकल्प पत्र में जो नए भारत का विज़न है, कांग्रेस के घोषणापत्र में उसका लेशमात्र भी नहीं

कांग्रेस के ज्यादातर वादे मतदाताओं को तात्कालिक तौर पर लुभाने वाले हैं, जबकि भाजपा ने देश को हर तरह से मजबूती देने वाले दूरदर्शितापूर्ण और व्यावहारिक वादे किए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसके वादों पर कितना यकीन दिखाती है।

घोषणापत्र : भाजपा के वादे हैं व्यावहारिक, कांग्रेस के वादे यथार्थ के धरातल से दूर

चुनावी घोषणापत्र महज वादों का पिटारा नहीं होना चाहिये। इसमें देश के विकास की वैसी तस्वीर पेश की जानी चाहिये, जिसे मूर्त रूप दिया जा सके। बहरहाल, चुनावी रणभूमि में देश की दोनों प्रमुख पार्टियां, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणा पत्र को पेश कर दिया है। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र को संकल्प पत्र का नाम दिया है, जबकि कांग्रेस ने ‘हम निभाएंगे’ लिखा है।   

रोजगार पर जुमलेबाजी कर रहे हैं राहुल गांधी

एक ओर कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने पर मार्च 2020 तक 22 लाख सरकारी पदों को भरने का चुनावी वादा कर दिया है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के घोषणापत्र में हर साल 4 लाख सरकारी नौकरियां देने की बात कही गई है। ऐसे में राहुल गांधी अतिरिक्‍त 18 लाख नौकरियों की बात किस आधार पर कर रहे हैं?

भ्रम से बाहर आएं राहुल गांधी, देश की एकता-अखंडता उनके वायनाड जाने की मोहताज नहीं है!

अमेठी में स्मृति ईरानी की सक्रियता से पहले यह कल्पना भी कठिन थी कि राहुल गांधी किसी अन्य क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को पराजित किया था।। लेकिन इसके बाद चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा।

कभी ‘जनेऊधारी हिन्दू’ तो कभी मुस्लिम लीग के झंडे, ये दोहरापन ही कांग्रेस का असल चरित्र है!

बहुत दिन नहीं बीते जब राहुल खुद को जनेऊधारी हिंदू बताते थक नहीं रहे थे और गोत्र का भी प्रचार करते फिर रहे थे। और जब मुस्लिम बाहुल्य सीट पर पहुंचे तो मुस्लिमों का ध्रुवीकरण करने के लिए मुस्लिम प्रतीकों को प्रदर्शित करते झंडों के जरिये ध्रुवीकरण की कोशिश करने लगे। लेकिन विडंबना देखिये कि ‘वंदे मातरम’ और ‘जय श्री राम’ कहने में

‘कांग्रेस का घोषणापत्र देश की सुरक्षा और अखंडता के मुद्दे पर उसका असली चरित्र बयान करता है’

बीते दो अप्रैल को लोकसभा चुनाव – 2019 के लिए कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया। 54 पृष्ठों का ये घोषणापत्र काम, दाम, शान, सुशासन, स्वाभिमान और सम्मान इन छः हिस्सों में बंटा हुआ है। रोजगार से लेकर ‘न्याय’ और राष्ट्रीय सुरक्षा एवं स्वास्थ्य तक सभी वादों को इन छः हिस्सों में रखा गया है।