कांग्रेस

लगातार भाषाई मर्यादा लांघते राहुल गांधी को अदालत ने सही सबक दिया है

राहुल गांधी को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पच नहीं रही है। उसी का नतीजा है कि वे ऐसे लफ्जों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं।

संसद सदस्यता गँवाने से क्या कोई सबक लेंगे राहुल गांधी ?

एक पूरे वर्ग का अपमान करने की वजह से राहुल गांधी की सदस्यता गई है, इस विषय पर अब इतना शोर क्यूँ! वो कौन लोग हैं जो राहुल गांधी के समर्थन में खड़े होकर…

विपक्ष की विचारशून्यता

एक राष्ट्रीय विचार के साथ विपक्षी एकजुटता की मंशा रखने से पहले राहुल गांधी को कांग्रेस का राष्ट्र को लेकर रचनात्मक विचार क्या है, अपनी यात्रा में बताना चाहिए।

इतिहास के कंधे पर बैठकर झूठ की राजनीति करना कब छोड़ेगी कांग्रेस ?

उचित होगा कि कांग्रेस अपनी वर्तमान दुर्दशा को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करे तथा अपने अहंकारी चरित्र का त्याग करते हुए स्वयं में सुधार लाने का प्रयास करे।

आजादी के बाद नेहरू सरकार के शासन से बेहद दुखी थे गाँधी

देश को ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी वर्षों के संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को मिली और इसके साथ ही महात्मा गाँधी को आभास हो गया था कि कांग्रेस पार्टी को भंग करने का समय आ गया है। महात्मा गाँधी ने 27 जनवरी, 1948 को एक महत्वपूर्ण ड्राफ्ट तैयार किया था, जिसका शीर्षक था “Last will and Testament” (इसके बाद ही उनकी हत्या हो गयी थी, अतः इसे उनकी अंतिम इच्छा भी कहा जा सकता है।), इस ड्राफ्ट का

भाषाई मर्यादा से बेपरवाह विपक्ष

पहले भी राजनीति में पक्ष-विपक्ष के बीच आरोपों के दौर चलते थे, लेकिन भाषाई गरिमा का लोप नहीं होता था। नेता तंज़ करते थे, मगर किसीकी तौहीन नहीं की जाती थी।

वंशवादी राजनीति से मुक्ति की दिशा में बढ़ रहा है देश

प्रधानमंत्री मोदी विकास की राजनीति के जरिए लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन यानी वंशवादी राजनीति को ठिकाने लगाने में जुटे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है।

जीएसटी: विपक्ष का दोहरा चरित्र

यह मानना सिरे से गलत है कि जीएसटी दरों में किसी प्रकार के निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं। इसमें राज्यों की पर्याप्त भूमिका और हिस्सेदारी है।

कांग्रेस मुक्त हुई उत्तर प्रदेश विधान परिषद

यूपी जैसी स्थिति कांग्रेस कई और राज्यों में झेल रही है। कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त होकर जिन-जिन राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं ने अलग पार्टी बनाई वहां कांग्रेस सिमटती गई।

इंदिरा गांधी ने अचानक नहीं लगाया था आपातकाल, ये उनकी सोची-समझी चाल थी!

आपातकाल लगाने की योजना एक सोची समझी चाल थी, इसका खुलासा पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे के पत्र में आपातकाल लगाने से छह महीने पहले ही हो गया था। यह चिट्ठी तभी के कानून मंत्री ए. आर. गोखले और कांग्रेस के कई नेताओं के देखरेख में ड्राफ्ट की गई थी। इंदिरा गाँधी ने अपने एक साक्षात्कार में ज़िक्र भी किया था कि इस देश को ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की ज़रुरत है।