धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिमपरस्ती के कांग्रेसी खेल को अब जनता समझ चुकी है!
हाल ही में “इंकलाब” नामक उर्दू अखबार को दिए इंटरव्यू में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस “मुसलमानों” की पार्टी है। भले ही इस इंटरव्यू के बाद खंडन-मंडन का दौर चला हो, लेकिन इस बयान से राहुल गांधी की कांग्रेस का असली चरित्र ही उजागर होता है।
एनआरसी : ‘देश देख रहा है कि विपक्षी दल सरकार के विरोध और देश-विरोध के अंतर को भूल गए हैं’
आज राजनीति प्रायः सत्ता हासिल करने मात्र की नीति बन कर रह गई है, उसका राज्य या फिर उसके नागरिकों के उत्थान से कोई लेना देना नहीं है। कम से कम असम में एनआरसी ड्राफ्ट जारी होने के बाद कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया तो इसी बात को सिद्ध कर रही है। चाहे तृणमूल कांग्रेस हो या सपा, बसपा, जद-एस, तेलुगु देसम या फिर आम आदमी पार्टी।
कांग्रेस पिछड़े वर्ग की कितनी हितैषी है, ये ओबीसी आयोग पर उसके इतिहास से ही पता चल जाता है!
देश की राजनीति में आज़ादी के बाद से ही निरंतर पिछड़े समाज व वर्ग के उत्थान की बातें तो बहुत की गईं। लेकिन इसको लेकर कभी कोई नीतिगत फैसला पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा नहीं लिया गया। इसके उलट मोदी सरकार ने सत्ता में आने के उपरांत ही गरीब, वंचित, शोषित, पिछड़े वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाने की दिशा में अनेक हितकारी निर्णय लिए हैं, जिसमें हाल ही में
मोदी सरकार का राफेल सौदा कांग्रेस से बेहतर ही नहीं, सस्ता भी है!
राफेल विमान सौदे के सहारे कांग्रेस चुनावी उड़ान की रणनीति बना रही थी। फ्रांस के साथ हुए समझौते में घोटाले के आरोप लगाकर वह एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास कर रही थी। पहला, उसे लगा कि नरेंद्र मोदी सरकार पर घोटाले का आरोप लगा कर वह अपनी छवि सुधार लेगी। दूसरा, उसे लगा कि वह इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना सकेगी। लेकिन इस संबन्ध में नई
‘जो समझौता लागू करने की हिम्मत राजीव गांधी नहीं दिखा सके, उसे मोदी सरकार ने लागू किया है’
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे मसौदे को जारी कर दिया गया है। एनआरसी में शामिल होने के लिए आवेदन किए 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों के नाम शामिल हैं और इसमें 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। असम सरकार का कहना है कि जिनके नाम रजिस्टर में नहीं है, उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए एक महीने का समय दिया जाएगा।
एनआरसी पर बौखलाने वाले वही लोग हैं, जिन्हें देशहित से अधिक अपना वोट बैंक प्यारा है!
एनआरसी का ड्राफ्ट आज संसद से सड़क तक चर्चा का केंद्रबिंदु बना हुआ है। सभी विपक्षी दल इस मुद्दे पर जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रहें हैं, वहीं सत्तारूढ़ भाजपा का स्पष्ट कहना है कि घुसपैठियों के मसले पर सभी दलों को अपना मत स्पष्ट करना चाहिए। देश की सुरक्षा के साथ भाजपा कोई समझौता नहीं करेगी, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि भाजपा को
तुष्टिकरण का जो दांव कभी हिटलर ने खेला था, आज कांग्रेस भी उसीको आजमाने में लगी है!
पानी को उबलने के लिए भी सौ डिग्री तापमान का इंतजार होता है, लेकिन कांग्रेस दिल्ली का सिंहासन हथियाने के लिए किस कदर बेकरार है, ये इसी से समझा जा सकता है कि उसने अपने सिपाहसालारों को तुष्टिकरण के घातक हथियार से देश को छलनी करने का जिम्मा सौंप दिया है। उसके सिपाहसालार तुष्टिकरण के घातक औंजारों से देश की नस-नस में जहर उतारना
‘राहुल मुसलमानों को यह समझाना चाहते हैं कि कांग्रेस का ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ सिर्फ एक मुलम्मा भर है’
इस देश में मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार कौन है ? अगर आप सड़क पर चलते हुए किसी मुस्लिम शहरी से यह सवाल करें तो सस्वर एक ही नाम आएगा – कांग्रेस पार्टी। क्योंकि आज़ादी के बाद सबसे ज्यादा शासन कांग्रेस का ही रहा है। सालों तक देश में दलितों और मुसलमानों का वोट लेकर सरकार बनाने के बाद अब कांग्रेस के नए अध्यक्ष
कांग्रेस आज जिस अहंकार से ग्रस्त दिखती है, उसकी जड़ें नेहरू के जमाने की हैं!
कल लोकसभा में तेदेपा द्वारा लाया गया और कांग्रेस आदि कई और विपक्षी दलों द्वारा समर्थित अविश्वास प्रस्ताव प्रत्याशित रूप से गिर गया। अविश्वास प्रस्ताव पर हुए मतदान में कुल 451 सांसदों ने मतदान किया जिसमें सरकार के पक्ष में 325 और विपक्ष में 126 मत पड़े। इस प्रकार 199 मतों से सरकार ने विजय प्राप्त कर ली। लेकिन इससे पूर्व अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा में पक्ष-
आजाद और सोज ने जो बोला है, कांग्रेस का असल चरित्र वही है !
कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह, संजय निरुपम, संदीप दीक्षित की विरासत को आगे बढ़ाते हुए गुलाम नबी आजाद और सैफुद्दीन सोज ने भी अपने बयानों से सीमा पार के आतंकियों को खुश कर दिया। सोज ने कश्मीर की आजादी का राग आलापा है, तो आजाद ने अपने ही देश की सेना पर हमला बोला है।