कांग्रेस

बाबा साहब की उपेक्षा करने वाली कांग्रेस रामनाथ कोविंद को भला कैसे स्वीकार कर सकती है !

कल यानी सोमवार 19 जून को जब भारत के अगले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए राजग की ओर से बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद जी को उम्मीदवार घोषित किया गया, तब से विपक्षी पार्टियां खासकर कांग्रेस और वामपंथी दल सन्नाटे में आ गए हैं। दरअसल यह रामनाथ कोविंद अथवा भाजपा-संघ का विरोध नहीं है, यह एक सामंतवादी मानसिकता है जो समय-समय पर उभर कर सामने आती है, उसका स्वरूप अलग

इन तथ्यों से साफ हो जाता है कि राजनीति की उपज है मध्य प्रदेश का किसान आंदोलन !

यह एक हद तक सही है कि देश में किसानों की माली हालत ठीक नहीं है, लेकिन पिछले दिनों जिस तरह अचानक देश के कई हिस्‍सों में किसानों का आंदोलन उठ खड़ा हुआ, उससे 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सक्रिय हुए पुरस्कार वापसी गिरोह की याद ताजा हो उठी। बाद में किसानों को आंदोलन के लिए भड़काने, सड़कों पर दूध बहाने से लेकर सब्‍जी फेंकने तक में कांग्रेसी नेताओं की संलिप्‍तता के ऑडियो-वीडियो

संदीप दीक्षित ने कुछ नया नहीं किया, सेना का अपमान करना तो कांग्रेस की पुरानी परम्परा रही है !

काग्रेस सरकारों ने सेना को कभी खुली छूट नहीं दी, जिस कारण पाकिस्तानी गोलीबारी से लेकर कश्मीर के अराजक तत्वों तक से निपटने तक में सेना को अत्यंत कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। अब मोदी सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी है, जिसका परिणाम है कि अब हमारे जवान न केवल आतंकियों का सफाया कर रहे बल्कि कश्मीर के अराजक तत्वों से भी कठोरता के साथ निपटने रहे हैं।

अमित शाह ने ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के जरिये कांग्रेस की दुखती रग पर ऊँगली रख दी है !

अमित शाह के ‘चतुर बनिया’ वाले बयान के बाद कांग्रेस की प्रतिक्रिया बिलकुल स्वाभाविक हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री से लेकर आज तक कांग्रेस ही ज़्यादातर सत्ता पर काबिज़ रही है और कांग्रेस के शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार का ही दबदबा रहा है। गांधी को ये अंदेशा था, इसीलिए वो कांग्रेस को भंग करने की बात कहे थे। मगर, कांग्रेस ने उनकी इस इच्छा का तो सम्मान नहीं किया, बल्कि उनके

केंद्र की पशु वध सम्बन्धी अधिसूचना से इतना तिलमिलाए क्यों हैं कांग्रेस और कम्युनिस्ट ?

केंद्र सरकार ने हाल ही में पशु बाजारों में मवेशियों की खरीद-फरोख्‍त पर प्रतिबंध को लेकर एक अधिसूचना जारी की है। इसके तहत देश भर के पशु बाजारों में अब पशुओं को कत्‍ल करने के लिए खरीदे जाने पर रोक लागू होगी। यह एक ऐसा अधिनियम है, जिसके चलते पशुओं के कत्‍लगाह बनते जा रहे नगर, कस्‍बों, गांवों में बूचड़खाने की पनपती संस्‍कृति पर विराम लग सकता है। हैरत है कि इतने सटीक और अर्थपूर्ण अधिनियम को

कश्मीर पर पाकिस्तान की भाषा बोल रही है कांग्रेस !

कश्मीर को स्थायी रूप से राख में डालने का काम इसी कांग्रेस के बड़े नेता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू ने किया था। उसे देश भुगत रहा है। तब पाकिस्तान ने बल प्रयोग से कश्मीर को हथियाने की कोशिश की। लेकिन, कश्मीर के नए प्रधानमंत्री मेहरचन्द्र महाजन के बार-बार सहायता के अनुरोध पर भी नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार उदासीन रही।

सौ दिन भी नहीं हुए पंजाब में कांग्रेस सरकार को बने और भ्रष्टाचार के गुल खिलने लगे !

पंजाब में सत्ता प्राप्त होते ही कांग्रेस अपने पुराने रंग-ढंग में ढलती हुई नज़र आ रही है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तो उम्मीद की जा रही थी कि वे वाकई पंजाब में कुछ अलग करेंगे। लेकिन, अब कुछ महीनों के अन्दर ही कैप्टन सरकार में भ्रष्टाचार के गुल खिलने शुरू हो गए हैं।

मोदी सरकार के तीन साल बीतने के बाद कहाँ खड़ा है विपक्ष ?

केंद्र में नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के तीन साल पूरे हो रहे हैं। सरकार के उठाए गए कदमों के बारे में सब जगह चर्चा हो रही है, लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र में बगैर विपक्ष के बारे में बात किए कोई चर्चा पूरी नहीं होती है। आज जब सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं और प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में लगातार इजाफा हो रहा है, तब विपक्ष के बारे में, उसकी नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में विचार करना और जरूरी

नेहरू की ऐतिहासिक भूलों का परिणाम हैं देश की अधिकांश समस्याएँ

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह ने कश्‍मीर समस्‍या के लिए कांग्रेस को जिम्‍मेदार ठहराया। देखा जाए तो कश्‍मीर ही नहीं, देश में जितनी भी समस्‍याएं हैं उनमें से अधिकांश के लिए नेहरू परिवार की सत्‍ता लोभी राजनीति जिम्‍मेदार है। अपने को उदार साबित करने और विश्‍व में शांतिरक्षक का तमगा पाने के लिए नेहरू ने कई ऐसी भूलें की हैं, जिनका खामियाजा देश को सैकड़ों वर्षों तक भुगतना

तीन तलाक की पैरवी में ‘किसकी’ भाषा बोल रहे हैं कपिल सिब्बल ?

कोई भी व्यक्ति किसी संगठन से तभी जुड़ता है, जब उसके विचार संगठन की विचारधारा से साम्य प्रकट करते हैं। अतः इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि संविधानिक पीठ के समक्ष रखे गए कपिल सिब्बल के विचार तीन तलाक पर कांग्रेस की विचारधारा से साम्य रखते होंगे। साथ ही, राजनीतिक तौर पर भी कांग्रेस तीन तलाक का स्पष्ट रूप से विरोध करते हुए कभी नहीं दिखी