यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से सहमें सपा-कांग्रेस हुए एक, बसपा की हालत भी पस्त
भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश का चुनाव एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जा रहा है। यद्यपि मोदी सरकार के आने के बाद छात्रसंघ चुनावों से लेकर निगम/पंचायत चुनावों तक भी मोदी लहर को पढ़ने की कोशिश राजनीतिक विश्लेषक करते रहे हैं, परंतु वास्तविकता में उत्तर प्रदेश चुनाव को मोदी समेत पूरी भाजपा भी बेहद गंभीरता से ले रही है, वहीं मोदी-विरोधी संपूर्ण तबका इस बार भी बिहार जैसे परिणामों की
यूपी की बदहाली का जवाब दें सपा, बसपा और कांग्रेस
चुनावी घोषणा पत्र, ये तीन शब्द अपना अर्थ लगभग खो चुके हैं और इसका इस्तेमाल उन वादों के लिए किया जाने लगा है जो या तो पूरे नहीं हो पाते थे या फिर उनके पूरे होने का ख्वाब दिखाकर राजनीतिक अपना उल्लू सीधा करते रहते थे । उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने लोक कल्याण संकल्प पत्र जारी किया, जिसमें चुनाव के बाद जनता के सामने उतर प्रदेश को लेकर अपने विज़न को
परिवारवाद, भ्रष्टाचार और अहंकार के कारण पतन की ओर बढ़ती कांग्रेस
लंबी जद्दोजहद के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच जो गठबंधन हुआ है, उससे तात्कालिक रूप से भले ही कांग्रेस खुश हो लेकिन दीर्घकालिक रूप से देखें तो यह उसके लिए घाटे का सौदा साबित होगा। इसका कारण है कि जिन-जिन राज्यों में कांग्रेस ने क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया वहां वह पुन: मुख्यधारा में नहीं आ पाई। इसका दूरगामी नतीजा यह निकला कि कांग्रेस राज्य दर राज्य कमजोर होती
‘सबका साथ-सबका विकास’ के एजेंडे को प्रतिबिंबित करता भाजपा का संकल्प-पत्र
उत्तर प्रदेश सूबे के चुनावी समर में प्रवेश के साथ भाजपा ने अपने चुनावी संकल्प-पत्र में सामाजिक समरसता और सूबे के पिछड़ेपन पर वार करने का एजेंडा जारी किया है, जो अन्य राजनीतिक दलों से अलग रूपरेखा में प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ मुस्लिम महिलाओं की बद्तर स्थिति में सुधारात्मक दृष्टि से प्रयास करने
भाजपा के भय का परिणाम है कांग्रेस-सपा का गठबंधन
उत्तर प्रदेश के रण में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन का चुनावी रथ तैयार हो चुका है। कल तक जो सपा और कांग्रेस इस चुनावी रण में एक दूसरे का विरोध कर रही थीं, आज हाथ मिलाकर भाईचारे का संदेश दे रही हैं। कितना विचित्र है न कि आज जो राहुल गांधी अखिलेश यादव को भाई बता रहे हैं, उन्हीं राहुल गांधी ने ‘27 साल, यूपी बेहाल’ का नारा देकर सपा के खिलाफ चुनावी बिगुल फूंका था। लेकिन, अब
अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में ‘परिवार’ के ख़िलाफ मिले सबूत, सवालों के घेरे में नेहरू-गांधी परिवार
कांग्रेस-नीत संप्रग-1 सरकार के दौरान हुए वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीद से सम्बंधित अगस्ता-वेस्टलैंड घोटाले में पिछले दिनों तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एस के त्यागी की गिरफ्तारी के बाद अब फिर एक नया मोड़ आ गया है। खबरों के अनुसार जांच एजेंसियों को मिले ताज़ा साक्ष्यों में इस घोटाले में किसी अज्ञात ‘परिवार’ की मुख्य भूमिका होने की बात सामने आ रही है। खबरों की मानें तो 12 वीवीआईपी
यूपी चुनाव : सभी दलों से अधिक मज़बूत नज़र आ रही भाजपा
यूपी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। आगामी ग्यारह फ़रवरी से सूबे में मतदान शुरू हो रहा है, जिसमें अब गिनती के दिन शेष हैं। इसलिए सूबे की लड़ाई में ताल ठोंक रहे सभी राजनीतिक दल अपने चुनावी व्यूह को मज़बूत बनाने और समीकरणों को पक्का करने की कोशिश में लग गए हैं। प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी सपा में महीनों से मचा पारिवारिक और राजनीतिक उठापटक का नाटक भी चुनाव की
यूपी चुनाव : भाजपा की लहर से भयभीत विपक्षियों ने शुरू की एकजुट होने की कवायद
यूपी विधानसभा चुनावों की बिसात बिछ चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपना-अपना दांव खेलने के लिए तैयार हो चुकी है। एक तरफ यूपी में मुख्य विपक्षी दल बसपा है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी खो चुकी साख को वापस पाने के लिए जद्दोजहद करने में लगी हुई है। सत्तारूढ़ सपा में मचे दंगल ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। सपा में जो दंगल मचा है, उसे लेकर लोगों में भ्रम ही घुमड़
परिवार और राजनीति के बीच अंतर का आदर्श स्थापित करते प्रधानमंत्री मोदी
गत दिनों भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कहा गया कि भाजपा इन चुनावों में अवश्य जीत हासिल करेगी, लेकिन इसके लिए मेहनत की आवश्यकता है। साथ ही, उन्होंने यह हिदायत भी दी कि पार्टी नेता अपने परिवार के सदस्यों के लिए टिकट न मांगें। इस बयान के गहरे और व्यापक निहितार्थ हैं, जिन्हें समझने की आवश्यकता है। दरअसल आज देश
पाँचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे दमदार नज़र आ रही भाजपा !
चुनाव की रणभेरी बजते ही, चुनावी युद्ध के मैदान में महारथियों का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है। एक तरफ भाजपा का विकास का मुद्दा है तो दूसरी तरफ अन्य दलों का जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद का मुद्दा। परंपरागत चुनाव से इतर इस बार का चुनाव कई मायनों में अलग प्रतीत हो रहा है। माना जा रहा है कि यह चुनाव परिणाम कई राजनीतिक पार्टियों की दशा और दिशा भी तय कर सकता है।