एमएसपी वृद्धि : ये कोई राजनीतिक फैसला नहीं, किसानों के हित की दिशा में एक और कदम है !
मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मूल्य में 2018-19 सत्र के लिये बढ़ोतरी की घोषणा की है, जिससे किसानों को राहत मिलने की संभावना है। हालाँकि, विरोधी दल सरकार के इस निर्णय को एक राजनीतिक फैसले के रूप में देख रहे हैं, लेकिन उनके तर्क आधारहीन हैं, क्योंकि सरकार की इस घोषणा से देशभर के किसान लाभान्वित होंगे, जबकि इस साल के अंत
कांग्रेस की तरह मोदी सरकार की कृषि योजनाएं फाइलों तक नहीं सिमटीं, बल्कि जमीन पर पहुँच रही हैं!
अपने चुनावी वादे को पूरा करते हुए मोदी सरकार ने 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 180 रूपये से लेकर 1827 रूपये तक की भारी-भरकम बढ़ोत्तरी की है। राम तिल (नाइजर सीड) पर सबसे ज्यादा 1827 रूपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी की गई है जबकि मूंग के एमएसपी में 1400 रूपये का इजाफा किया गया है।
किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में बड़ा कदम है डेढ़ गुना समर्थन मूल्य !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य तय किया था। इस दिशा में अनेक कदम उठाए गए थे, जिसके कारण चार साल को बेमिसाल माना जा रहा था। मोदी सरकार ने कृषि व्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में अनेक प्रयास किए। अब इस सूची में एक नई उपलब्धि जुड़ी है। किसानों को उनकी उपज की लागत का अब डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया
हवा-हवाई नहीं, ठोस नीतियों पर आधारित है किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर के किसानों से संवाद करते हुए अपनी सरकार के कार्यों का ब्योरा दिया और 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की प्रतिबद्धता भी दुहराई। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के प्रयासों को आंकड़ों से पुष्ट भी किया। गौरतलब है कि यूपीए सरकार के पांच साल (2009-14) में कृषि क्षेत्र के लिए बजट आवंटन 1.21 लाख करोड़ रुपये था जो
किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रही मोदी सरकार
मोदी सरकार वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये कृषि क्षेत्र के बजट को दोगुना करके 2.12 लाख करोड़ रुपये किया गया है, जो संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के कार्यकाल की तुलना में दोगुना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये 600 से अधिक जिलों के किसानों से इस संदर्भ में
तो क्या अमरिंदर सरकार के धोखे के कारण पंजाब में ख़ुदकुशी कर रहे किसान !
पंजाब में लगभग एक साल के अन्दर 400 किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली, वहीं कांग्रेस सरकार वोट की खेती करती रही। चुनाव से पहले कांग्रेस ने वादा किया था कि सारे किसानों के कर्ज माफ़ किये जाएँगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है। अब सरकार ने इस वादे में काफी झोल पैदा कर दिया है। हमारे पंजाबी किसान कुछ ज्यादा ही दिलदार हैं, जो इन बेरहम नेताओं पर भरोसा कर ख़ुदकुशी कर लेते हैं। बीते साल पंजाब में कांग्रेस
मोदी सरकार के इन क़दमों से बढ़ेगी किसानों की आय !
कृषि क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि हेतु सरकार इस क्षेत्र की मौजूदा कमियों को दूर करना चाहती है। इस कवायद के तहत केंद्र सरकार ने हाल ही में चने और मसूर के आयात शुल्क में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है; वहीं तोरिया, जो मुख्य रूप से राजस्थान में पैदा होने वाली तिलहन फसल है, के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि की है। सरकार जल्द ही गेहूं के आयात शुल्क, जो मौजूदा समय में 20 प्रतिशत है, में भी बढ़ोतरी
किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कोशिशों में जुटी मोदी सरकार
अब तक किसानों की आमदनी बढ़ाने पर सीधा फोकस कभी नहीं किया गया। पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया गया। अर्थात हमारी नीतियां खेती केंद्रित रहीं न कि किसान केंद्रित। इसका नतीजा यह हुआ कि कृषि उत्पादन में बढ़ोत्तरी के बावजूद उसी अनुपात में किसानों की आमदनी नहीं बढ़ी। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐतिहासिक भूल को सुधारते हुए 2022 तक किसानों की
कामयाब होती मोदी सरकार की कृषि नीतियाँ, खाद्यान्न के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद
मोदी सरकार की कृषि नीति एवं बेहतर मॉनसून की वजह से जून में समाप्त हो रहे फसल वर्ष में गेहूं, चावल और दलहन सहित खाद्यान्न का रिकॉर्ड 27 करोड़ 33 लाख 80 हजार टन उत्पादन होने का अनुमान है, जो पिछले साल 25 करोड़ 15 लाख टन हुआ था। इसके पहले रिकॉर्ड उत्पादन फसल वर्ष 2013-14 में 26 करोड़ 50 लाख टन का हुआ था। खाद्यान्नों में चावल, गेहूं, मोटे अनाज एवं दलहन शामिल हैं। कृषि मंत्रालय ने
सपा-बसपा की जातिवादी राजनीति से बदहाल हुए यूपी के किसान
जहां तक उत्तर प्रदेश के किसानों की बदहाली का सवाल है, तो उसके लिए जातिवादी राजनीति जिम्मेदार है। पिछले तीन दशकों से उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति चरम पर रही। विकास पर राजनीति के भारी पड़ने का ही परिणाम है कि सिंचाई, बिजली आपूर्ति, ग्रामीण सड़क, बीज विकास, भंडारण, विपणन, सहकारिता जैसी किसान उपयोगी गतिविधियां ठप पड़ गईं। इस दौरान पूरा प्रशासनिक अमला समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की जातिवादी राजनीति के हितों को पूरा करने में लगा रहा।