क्या अपनी प्रासंगिकता खो रहा है किसान आंदोलन ?
देश इस बात को बहुत अच्छे से समझता है कि देश का किसान जो इस देश की मिट्टी को अपने पसीने से सींचता है वो देश के उस जवान पर कभी प्रहार नहीं कर सकता जो इस देश की आन को अपने खून से सींचता है।
किसान हित नहीं, मोदी का अंधविरोध है इस आंदोलन का एजेंडा
सबसे बड़ी बात यह है कि आंदोलन मोदी विरोधियों का मंच बनता जा रहा है। इसी का नतीजा है कि इसके जनसमर्थन में लगातार गिरावट आ रही है।
कृषि कानून की प्रतियां फाड़कर किसान आंदोलन को भुनाने की व्यर्थ कोशिश करते केजरीवाल
केजरीवाल को यदि वास्तव में अवाम की चिंता होती तो वे सबसे पहले इस कथित आंदोलन को खत्म कराने की पहल करते ना कि यहां अपनी नफरत की राजनीति का अवसर तलाशते।
कृषि क्षेत्र में बाजार अर्थव्यवस्था का आगाज करने वाले हैं नए कृषि कानून
मोदी सरकार नए कृषि कानूनों के जरिए फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने की दूरगामी योजना पर काम कर रही है ताकि कृषि जैव विविधता के विनाश, गेहूं-धान की एकफसली खेती, मिट्टी-पानी-हवा के प्रदूषित होने, भूजल संकट आदि से बचा जा सके।
लोकतंत्र के लिए घातक है आंदोलन की आड़ में अराजकता
संसदीय प्रक्रियाओं को खुलेआम चुनौती देने, संस्थाओं को ध्वस्त एवं अपहृत करने तथा क़ानून-व्यवस्था को बंधक बनाने की निरंतर बढ़ती प्रवृत्ति देश एवं लोकतंत्र के लिए घातक है।
कृषि सुधारों से किसानों की आमदनी बढ़ाने में जुटी मोदी सरकार
मोदी सरकार जिस तरह कृषि क्षेत्र में सुधारों की दिशा में काम कर रही है, उससे जल्दी-ही खेती के मुनाफे का सौदा बनने की उम्मीद है।