संभावित हार की हताशा में एकबार फिर ईवीएम पर सवाल
भारत की विपक्षी पार्टियां भी गज़ब हैं, इन्हें जब-जब भी हार का डर सताता है, ये ईवीएम को चुनावी मैदान में घसीट लाती हैं। यहीं ईवीएम हैं, जिससे इनकी भी सरकारें बनी हैं, लेकिन इन्हें बखेड़ा खड़ा करने की आदत हो गई है। विपक्षी पार्टियों को लगता है कि चुनाव आयोग भी सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलकर कोई बड़ा खेल कर सकता है। पिछले दिनों से आप एक बयान लगातार
गठबंधन के लिए कांग्रेस के आगे घुटने क्यों टेक दिए हैं केजरीवाल?
राजनीति बदलने का दावा कर सत्ता तक का सफर तय करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजनीति को तो नहीं बदल पाए, लेकिन खुद जरूर बदल गए हैं। आज केजरीवाल अपनी कही हर बात से पलटते हुए नज़र आ रहें है। हैरत इस बात की भी है कि जो केजरीवाल कभी किसी दल से गठबंधन नहीं करने की कसमें खाते थे, आज कांग्रेस के समक्ष घुटने टेक दिए हैं
वैचारिक प्रतिबद्धताओं को छोड़ किसी भी तरह सत्ता बचाने की जुगत में जुटे केजरीवाल
भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव को देखते हुए भले ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने अनशन कार्यक्रम को स्थगित कर दिया हो, लेकिन उन्होंने अपनी सिकुड़ती राजनीतिक जमीन को संभालने के लिए कांग्रेस से गठबंधन की आस नहीं छोड़ी है।
‘2014 के चुनाव के समय उभरी आप 2019 के चुनाव में पूर्ण पतन की कगार पर है’
जिस कांग्रेस को केजरीवाल कोसते नहीं थकते थे, आज गठबंधन के लिए उसकी खुशामद करने में लगे हैं। इससे उनके अवसरवादी और दोमुंहे चरित्र का भी पता चलता है।
कांग्रेस-जेडीएस बताएं कि उन्होंने अपनी राजनीति चमकाने के लिए जनता के पैसे किस अधिकार से उड़ाए हैं?
एक आरटीआई से चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। यह खुलासा तथाकथित आम आदमी अरविंद केजरीवाल को लेकर है। पिछले दिनों कर्नाटक में जनता दल सेक्युलर की सरकार बनी थी। पार्टी के नेता एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह को बहुत विलासिता पूर्ण ढंग से आयोजित किया गया था। मालूम हो कि कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भाजपा सबसे अधिक
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद भी सुधरने को तैयार नहीं दिख रही आप !
दिल्ली पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को आम आदमी पार्टी अपनी जीत बता रही है। वास्तविकता यह है कि जब तक अरविंद केजरीवाल दिल्ली की संवैधानिक स्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे, वह विवाद को ही आमंत्रण देते रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तत्काल बाद उनकी सरकार ट्रांसफर विवाद लेकर सामने आ गयी। ये दिखाता है कि इन्हें काम करना ही नहीं है।
केजरीवाल सरकार का धरना विरोध कम, काम से बचने का ‘इंतजाम’ ज्यादा लगता है !
नयी तरह की राजनीति के वादे के साथ सत्ता में आए अरविंद केजरीवाल ने अपने तीन सालों से अधिक के कार्यकाल में दिखा दिया है कि ‘नयी राजनीति’ से उनका क्या मतलब था। लोग समझ चुके हैं कि ‘नयी राजनीति’ के नाम पर उन्हें केवल ठगा गया। वास्तव में ‘नयी राजनीति’ से केजरीवाल का इशारा राजनीति की पुरानी व्यवस्थाओं में परिवर्तन की तरफ नहीं बल्कि नए तरह
राजनिवास के सोफे पर लेटे हुए केजरीवाल की यह तस्वीर क्या कह रही है ?
भारतीय राजनीति में धरना बहुत प्रचलित शब्द है। महात्मा गांधी ने इसे अंग्रेजों के खिलाफ हथियार बनाया था। स्वतंत्रता के बाद भी अनेक परिवर्तनकारी धरने देखे गए। दिल्ली के मुख्यमंत्री को यह धरोहर समाजसेवी अन्ना हजारे से मिली। लेकिन, केजरीवाल इसे हर बार नए कलेवर में पेश करते हैं। अन्ना हजारे का धरना-अनशन केजरीवाल के हांथों में पहुंच कर नाटक की भांति लगने
इंतजार करिए, केजरीवाल जल्दी-ही कांग्रेस को ईमानदार पार्टी का तमगा भी दे देंगे !
देश की राजनीति में उस शख्स को किसलिए याद किया जाए, जो देश में बदलाव का नारा लगाते-लगाते दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच गया। अपनी कुर्सी यात्रा के क्रम में उस शख्स ने दूसरी पार्टी के नेताओं पर खूब बेबुनियाद इल्जाम भी लगाए, लेकिन जब अदालतों में आरोपों के पक्ष में सबूत पेश करने की बात आई, तो उसने धीरे-धीरे एक-एक कर सबसे माफ़ी मांग ली।
भ्रष्टाचार के इतने आरोपों के बाद भी इस्तीफा क्यों नहीं देते केजरीवाल ?
आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की सता पर पिछले तीन साल से काबिज हैं। 2015 में मतदाताओं ने उनके भ्रष्टाचार विरोधी और लोक कल्याण समर्थक वादों से प्रभावित होकर उन्हें भारी-भरकम बहुमत देकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाया था। लेकिन, तीन सालों से अधिक के अपने कार्यकाल में केजरीवाल की सरकार अपने काम के लिए नहीं, कारनामों के लिए ही चर्चा में