आम आदमी पार्टी में गहराता जा रहा ‘विश्वास’ का संकट !
जिस तरह से हाल के दिनों में आम आदमी पार्टी के दफ्तर में कुमार विश्वास ने अपनी सक्रियता बढ़ाई उसके बाद उनपर हमले और तेज हो गए हैं। एक तरफ तो दिल्ली के पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा हर दिन खुलासों का दावा करते घूम रहे हैं। कभी एसीबी के दफ्तर तो कभी सीबीआई के दफ्तर, ऐसे में पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के खिलाफ मोर्चा खोलकर आम आदमी पार्टी एक और संकट मोल
ईवीएम पर आरोप लगाने वालों की ईवीएम हैकिंग की चुनौती में खुली पोल !
2017 की शुरुआत में हुए पांच राज्यों के चुनावों में जब भाजपा चार राज्यों में अपनी सत्ता स्थापित करने में कामयाब रही, तबसे ही सारे विरोधी एकजुट होकर ईवीएम हैक करने की बात कहकर भाजपा पर आरोप मढ़ने लगे। यूपी चुनाव में जनता द्वारा खारिज की जा चुकीं मायावती ने ईवीएम हैकिंग का किस्सा शुरू किया, जिसे पंजाब की हार से बौखलाए केजरीवाल ने लपकने में जरा भी देर नहीं लगायी। फिर तो केजरीवाल
‘जब मुझे पीटा जा रहा था, केजरीवाल हँस रहे थे’
अभी अधिक समय नहीं हुआ जब दिल्ली विधानसभा में भाजपा के दो विधायकों को मार्शलों द्वारा बड़े ही घटिया ढंग से बाहर निकाला गया था, इसके बाद अब एक बार फिर इससे भी बदतर व्यवहार पूर्व आप नेता कपिल मिश्रा के साथ हुआ है। दरअसल आम आदमी पार्टी बहुमत के नशे में इतनी चूर हो गयी है कि उसे लोकतान्त्रिक मर्यादाओं और मूल्यों तक का ध्यान नहीं रहा है।
चुनाव आयोग की ईवीएम हैकिंग की चुनौती पर सन्नाटा क्यों मारे हुए हैं विपक्षी दल ?
गत मार्च में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की बम्पर विजय से बौखलाए विपक्षी दलों ने अपने बचाव में और कोई दलील न देखकर एक नया शिगूफा उछाल दिया। शिगूफा यह कि भाजपा ने यह जीत ईवीएम में हेर-फेर करके प्राप्त की है। इस शिगूफे की शुरुआत यूपी में अपना सूपड़ा साफ़ होने से बौखलाई मायावती ने की जिसे पंजाब में हार से बौखलाए अरविन्द केजरीवाल एंड कंपनी ने लपक लिया।
कपिल मिश्रा के आरोपों के आगे निरुत्तर नज़र आ रही आम आदमी पार्टी
क्या अरविन्द केजरीवाल कपिल मिश्रा के आरोपों को केवल इसलिए दरकिनार कर सकते हैं, क्योंकि वह कभी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से जुड़े हुए थे ? राजनीति में कोई भी संशय से परे नहीं होता, केजरीवाल भी नहीं। भारत में अगर कोई नेता इस यथार्थ को झुठलाकर भोली-भाली जनता को चकमा देने की कोशिश करे तो जनता उसे नकार देती है। दिल्ली की जनता कुछ समय के लिए मोहपाश में बंध गई थी।
क्या है आम आदमी पार्टी की अंतर्कलह का कारण ?
आम आदमी पार्टी का झगड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। जो चीजें सामने नहींआ रही थीं, वो भी अब सामने आने लगी हैं। अरविंद केजरीवाल पर अपने रिश्तेदारों को आर्थिक फायदा पहुंचाने का आरोप लगा है। एक समय में उनके लेफ्टिनेंट रहे दिल्ली के मंत्री कपिल मिश्रा ने ही केजरीवाल पर पैसों के लेनदेन का आरोप लगाया है। भ्रष्टाचार के खिलाफ छवि केजरीवाल की सबसे बड़ी पूंजी थी। उनकी ईमानदारी को चौबीस कैरेट का
क्या 67 सीटें सौरभ भारद्वाज के तरीके से ईवीएम हैक करके ही मिली हैं, केजरीवाल जी ?
दिल्ली विधानसभा में दो करोड़ रूपए लिए जाने के आरोप का जवाब देने की बजाय अरविन्द केजरीवाल और उनके समर्थकों ने आज ई.वी.एम. का डेमो प्रस्तुत किया। इस तथाकथित डेमो में यह प्रदर्शित करने की पुरजोर कोशिश की गई कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने पिछले चुनावों में मतदान के दौरान ई.वी.एम. में कोड डालकर मतगणना परिणाम प्रभावित कर लिए हैं और इसी कारण अन्य दलों की हार हुई है।
ईवीएम के बहाने कपिल मिश्रा के आरोपों से ध्यान भटकाने में लगे केजरीवाल
क्या दिल्ली विधानसभा में हुए ई वी एम के बचकाने और फर्जी तमाशे से अरविंद केजरीवाल कपिल मिश्रा की लगाई कालिख अपने चेहरे से साफ कर लेंगे? कतई नहीं। उन पर दो करोड़ रुपये की घूस लेने के आरोप उनके अपने साथी रहे कपिल मिश्रा लगा रहे हैं। केजरीवाल के चंपू मंत्री और साथी, जिनमें मनीष सिसोदिया और संजय सिंह शामिल हैं, कह रहे हैं कि कपिल मिश्रा के आरोपों पर जवाब देना भी समय बर्बाद करना है।
बेदम नहीं हैं केजरीवाल पर कपिल मिश्रा के आरोप
अभी विधानसभा चुनावों, उपचुनाव और फिर एमसीडी चुनाव में लगातार मिली पराजयों से केजरीवाल उबरने की कोशिश कर ही रहे थे कि उनकी सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने उनके लिए एक अलग ही तूफ़ान खड़ा कर दिया है। बता दें कि कपिल मिश्रा केजरीवाल सरकार में जल मंत्री के पद पर थे, जिससे उन्हें अभी हाल ही में हटाया गया। पद से हटाए जाने के बाद से वे केजरीवाल खिलाफ बगावती तेवर अपनाए हुए
ममता सरकार को लाल बत्ती से इतना लगाव क्यों है ?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भाजपा-विरोध तो जगजाहिर है, लेकिन अब वे सभी सीमाएं लांघते हुए केंद्र की भाजपा सरकार के सही फ़ैसलों का विरोध करती नज़र आ रही हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने नोटबन्दी से की, बाद में वे नीति आयोग की बैठक में अनुपस्थित रहीं जहाँ हर राज्य के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में विकास संबंधित मुद्दों पर विमर्श करने के लिए उपस्थित थे। इस बैठक से ममता बनर्जी के अलावा