केरल

केरल में नहीं थम रही संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रति वामपंथी हिंसा, फिर हुई हत्या

केरल में पिनाराई विजयन के नेतृत्व में चल रही वाम गठबंधन की सरकार अपने कार्यकर्ताओं के द्वारा की जा रही हिंसा पर लगाम लगाने में लगातार नाकामयाब हो रही है। अपितु हिंसा और दमन का चक्र अब इस ओर इशारा करने लगा है कि सी.पी.एम. के शीर्ष नेताओं के शह पर ही ये घटनाएं हो रही हैं। दिनांक 13 फ़रवरी को अहले सुबह चार – साढ़े चार बजे के करीब भाजपा युवा मोर्चा के 20 वर्षीय कार्यकर्ता की हत्या

लाल आतंक : केरल में बढ़ती वामपंथी हिंसा, निशाने पर संघ और भाजपा के कार्यकर्ता

‘ईश्वर का अपना घर’ कहा जाने वाला प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न प्रदेश केरल लाल आतंक की चपेट में है। प्रदेश में लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है। केरल वामपंथी हिंसा के लिए बदनाम है, लेकिन पिछले कुछ समय में हिंसक घटनाओं में चिंतित करने वाली वृद्धि हुई है। खासकर जब से केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की सरकार आई

केरल की वामपंथी हिंसा पर ‘असहिष्णुता गिरोह’ की शर्मनाक ख़ामोशी !

केरल में बढ़ती हिंसा इस बात का सबूत है कि वामपंथ से बढ़कर हिंसक विचार दूसरा कोई और नहीं है। वामपंथी विचार घोर असहिष्णु है। असहिष्णुता इस कदर है कि वामपंथ को दूसरे विचार स्वीकार्य नहीं है, अपितु उसे अन्य विचारों का जीवंत रहना भी बर्दाश्त नहीं है। इस विचारधारा के शीर्ष विचारकों ने अपने जीवनकाल में हजारों-लाखों निर्दोष लोगों का खून बहाकर उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। जिस वामपंथी नेता

केरल में सन 1968 से चल रहा एकतरफा (कम्यूनिस्ट) आक्रमण : जे. नंदकुमार

पुस्तक मेले में पिछले दिनों ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवादी पत्रकारिता’ विषय पर ‘मीडिया स्कैन’ के आयोजन में चर्चा के दौरान केरल में कम्यूनिस्टों का जो चेहरा सामने आया, उस पर चर्चा होनी चाहिए। केरल से यह खबर आती है कि आग से झुलस कर एक नेता की मौत। नेता गैर-कम्यूनिस्ट पार्टी का होता है। यह खबर बनती है, लेकिन क्या वास्तव में खबर इतनी ही है या इसके पीछे विचारधारा का कोई संघर्ष है।

राष्ट्रवादी विचारधारा की बढ़ती स्वीकार्यता से बेचैन वामपंथी

केरल में कम्युनिस्ट पार्टी खुलकर असहिष्णुता दिखा रही है। लेकिन, असहिष्णुता की मुहिम चलाने वाले झंडाबरदार कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्या उन्हें यह असहिष्णुता प्रिय है? यह तथ्य सभी के ध्यान में है कि कम्युनिस्ट विचारधारा भयंकर असहिष्णु है। यह दूसरी विचारधाराओं को स्वीकार नहीं करती है, अपितु अपनी पूरी ताकत से उन्हें