भारत के नाम रहा इस वर्ष का जी-20 शिखर सम्मेलन!
जी-20 विश्व का प्रायः सर्वाधिक मजबूत वैश्विक संगठन माना जाता है। वैश्विक मामलों में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसमें भी पांच छह देश अधिक शक्तिशाली हैं। इसी के अनुरूप सम्मेलनों में इन्हें स्थान मिलता था। भारत विकसित देशों में शामिल नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसे सम्मेलनों में भारत की गरिमा को बढ़ाया है। इस बार सम्मेलन में भारत के महत्व को इसी
चीन की चालबाजी से कर्ज में डूबे मालदीव को भारत देगा सहारा
शपथ ग्रहण समारोह दो देशों के बीच औपचारिक वार्ता का अवसर नहीं होता। लेकिन नेकनीयत हो तो बेहतर संबंधों की बुनियाद अवश्य कायम हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव यात्रा इसी संदर्भ में महत्वपूर्ण रही। मोदी ने तो अपनी शपथ ग्रहण करने से पहले ही पड़ोसियों से अच्छे संबन्ध रखने का निर्णय लिया था। इसी के अनुरूप उन्होंने सार्क देशों को शपथ ग्रहण
आईएमएफ ने माना कि आगे भी चीन से तेज रहेगी भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ़्तार!
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अपने हालिया वर्ल्ड इकॉनमिक आउटलुक में लिखा है कि वित्त वर्ष 2019 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2020 में 7.4 प्रतिशत रहेगा, जबकि आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2019 के लिये चीन के जीडीपी के 6.2 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ने की बात कही है। वित्त वर्ष 2018 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.7
बदलते दौर में मोदी की रवांडा यात्रा का मतलब
रवांडा मध्य और पूर्वी अफ्रीका में सबसे छोटे देशों एक संप्रभु राज्य है। विषुवत रेखा रवांडा युगांडा, तंजानिया, बुरुंडी और कांगो के लोकतांत्रिक गणराज्य से घिरा हुआ है। पूर्व में अपने जातीय समुदायों के हिंसक टकराव के कारण विश्व मीडिया की नजरों में आने वाला रवांडा अब अपने तीव्र विकास के लिए जाना जाता है। रवांडा अफ्रीका के सबसे तेज विकास करने वाले देशों में है।
एससीओ सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने दिया ‘सिक्योर’ मंत्र
बीते 10 जून को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ के 18वें सम्मेलन में शिरकत की। जाहिर है कि सबको इस बात का इंतजार था कि इस मंच से भारत कौन से मुद्दे को प्रमुखता से उठाता है। क्योंकि इस मंच पर पाकिस्तान और चीन के राष्ट्र प्रमुख भी मौजूद थे, वहीं दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इसका हिस्सा थे।
मोदी की तीन देशों की यात्रा में चीन के लिए है सन्देश कि भारत की मोर्चाबंदी भी कमजोर नहीं है !
भारतीय विदेश नीति के लुक ईस्ट अध्याय को एक्ट ईस्ट में बदलने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को है। पिछले गणतंत्र दिवस पर आसियान देशों को आमंत्रित करना एक्ट ईस्ट का बेजोड़ प्रयास था। राजपथ पर इन देशों के शासकों की एक साथ मौजूदगी अपने में विलक्षण और महत्वपूर्ण थी। इसके पहले मोदी म्यामार और वियतनाम भी गए थे। इस बार एक्ट ईस्ट नीति को मजबूत
भारत-चीन अनौपचारिक वार्ता के निकलेंगे सकारात्मक परिणाम
अंततः बिना एजेंडे की शिखर वार्ता का प्रयोग कारगर रहा। भारत और चीन के बीच आपसी विश्वास बहाल हुआ। चीन ने भारत के साथ संवाद और अच्छे संबन्ध रखने का महत्व स्वीकार किया। कहा गया कि द्विपक्षीय संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है। ये सकारात्मक रूप में आगे बढ़ते रहेंगे। दो दिन में छह वार्ताएं हुई। यह सकारात्मक बदलाव को रेखांकित करता है। भविष्य में इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते है।
अपनों के दबाव में भारत से सम्बन्ध सुधारने को मजबूर चीन !
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी चीन यात्रा से एशिया की दो महाशक्तियों के बीच डोकलाम विवाद के बाद पैदा हुई खटास खत्म होने की संभावना है। डोकलाम विवाद पर दोनों देश रणभूमि में आमने-सामने थे। मोदी 27 और 28 अप्रैल को चीन यात्रा पर होंगे। वहां वे अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर विचारों का आदान-प्रदान करने तथा दोनों देशों के बीच परस्पर संवाद को बढ़ावा देने के लिए चीन के वुहान शहर में एक
वामपंथी शासन की नियति ही है तानाशाही
चीन ने शी जिनपिंग को ताउम्र राष्ट्रपति रहने का अधिकार दे दिया है। हालांकि जिस तरह से जिनपिंग को यह अधिकार मिला है, उससे सन्देह होता है कि अधिकार चीन ने दिया है या फिर जिनपिंग और उनके समर्थकों ने कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ चाइना के एकदलीय शासन में छीन लिया है। निर्बाध, ताउम्र सत्ता के लिए चीन में मतदान हुआ है और चीन की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के 2963 सदस्यों में से 2958 सदस्यों ने शी जिनपिंग को
भारत-जापान के बीच बढ़ रही नजदीकी से परेशान चीन
भारत और जापान के सम्बन्ध शुरू से अच्छे रहे हैं। जापान में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रभाव होने के कारण दोनों देशों के बीच संबंधों में और भी प्रगाढ़ता आई है। भारत की आजादी के लिये किये जा रहे संघर्ष में भी जापान की शाही सेना ने सुभाष चंद्र बोस की मदद की थी। आजादी मिलने के बाद से दोनों देशों के बीच सौहाद्र्पूर्ण संबंध रहे हैं, जबकि भारत और जापान दोनों देशों के चीन के साथ कमोबेश तल्खी वाले रिश्ते रहे हैं। इस