कोरोना आपदा ने समझाया कि क्यों जरूरी है नागरिकों का डाटाबेस
जो लोग मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया, बैंक खातों-राशन कार्डों को आधार संख्या से जोड़ने, प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण जैसी अनूठी मुहिम का निजता के हनन के नाम पर विरोध कर रहे थे उन्हें बताना चाहिए कि यदि ये उपाय न किए गए होते तो क्या कोरोना आपदा के समय करोड़ों लोगों के बैंक खातों तक तुरंत मदद पहुंच पाती?
करोड़ों लोगों को गरीबी के दलदल से निकालने में कामयाब रही मोदी सरकार
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि देश में गरीबी मिटाने की सैकड़ों योजनाओं के बावजूद गरीबी बढ़ती गई। हां, इस दौरान ज्यादातर सत्ताधारी कांग्रेस से जुड़े नेताओं, ठेकेदारों, भ्रष्ट नौकरशाहों की कोठियां जरूर गुलजार होती गईं। यह भ्रष्टाचार का ही नतीजा है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी हम गरीबी, बेकारी, बीमारी, अशिक्षा के गर्त में आकंठ डूबे हुए हैं। आज जब
विश्व बैंक की रिपोर्ट में आया सामने, तेजी से डिजिटल हो रहा इंडिया !
विश्व बैंक ने 19 अप्रैल को जारी अपनी रिपोर्ट “ग्लोबल फिन्डेक्स” में भारत में वित्तीय समावेशन की दिशा में उठाये गये प्रयासों की सराहना की है। साथ ही, कहा कि भारत में डिजिटल लेनदेन में भी तेजी आ रही है। विश्व बैंक के अनुसार व्यापक पैमाने पर जनधन खाते खोलने और “आधार” को बैंक खाता खोलने की प्रक्रिया में शामिल करने से ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक एवं सामाजिक जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे वित्तीय
विगत तीन वर्षों से सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है भारत
भारत पिछले तीन सालों से सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना हुआ है। मुद्रास्फीति वर्ष 2014 से लगातार नीचे आ रही है और चालू वित्त वर्ष में भी यह चार प्रतिशत से ऊपर नहीं जायेगी। इस वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा दो प्रतिशत से कम होगा और विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर से अधिक हो चुका है। वर्ष 2010 के बाद पहली बार इस साल सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बिक्री से प्राप्त राजस्व के 72,500
जनधन योजना से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिली संजीवनी
विमुद्रीकरण के बाद से जनधन खातों में तेज वृद्धि देखी गई। अब तक 30 करोड़ से अधिक खाते खोले जा चुके हैं। 10 राज्य, जहाँ 23 करोड़, प्रतिशत में 75% खाते खोले गये, में उत्तर प्रदेश 4.7 करोड़ खातों के साथ पहले स्थान पर, 3.2 करोड़ खाते खोलकर बिहार दूसरे स्थान और 2.9 करोड़ खातों के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे स्थान पर है।
ये आंकड़े बताते हैं कि गरीबों तक बैंक पहुँचाने में कामयाब रही मोदी सरकार !
सैद्धांतिक रूप से ही भले ही बैंकों को गरीबों का हितैषी कहा जाता हो लेकिन व्यावहारिक धरातल पर बैंकों का ढांचा अमीरों के अनुकूल और गरीबों के प्रतिकूल रहा है। देश में गरीबी की व्यापकता एवं उद्यमशीलता के माहौल में कमी की एक बड़ी वजह यह भी है। 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद यह उम्मीद बंधी थी कि अब बैंकों की चौखट तक गरीबों की पहुंच बढ़ेगी लेकिन वक्त के साथ यह उम्मीद धूमिल पड़ती गई।