वामपंथियों के बौद्धिक प्रपंचों और दोहरे चरित्र को उजागर करतीं कुछ घटनाएं
पिछले दिनों दो-तीन अहम घटनाएं हुईं। उर्दू भाषा के एक कार्यक्रम जश्न-ए-रेख्ता में पाकिस्तानी-कनाडाई मूल के लेखक-विचारक तारिक फतह के साथ बदसलूकी और हाथापाई हुई, माननीय पत्रकार सह विचारक सह साहित्यकार ‘रवीश कुमार’ के भाई सेक्स-रैकेट चलाने के मामले में आरोपित हुए और अभी दिल्ली विश्वविद्यालय में फिर से एक ‘सेमिनार’ के बहाने जेएनयू में ‘भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी-जंग
नजीब मामले में उजागर हुई वामपंथी छात्र संगठनों की संदिग्ध भूमिका
नजीब के नाम पर वामपंथी संगठन और कांग्रेस के नेताओं के साथ तीन नवंबर को जब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में अरविन्द केजरीवाल भाषण देते हुए नजर आए तो उनकी यही बात बरबस याद आ गई, ‘‘सब मिले हुए हैं जी।’’ नजीब के नाम पर अरविन्द केजरीवाल जरूर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंच गए, लेकिन ये नजीब, अरविन्द के पुराने मित्र दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग नहीं थे, बल्कि
जेएनयू को बर्बादियों की तरफ ले जा रहा वामपंथी गिरोह
जेएनयू फिर से एक बार सुर्खियों में है। फिर से, ग़लत कारणों से। ये ग़लत वजहें किसी भी ‘जेनुआइट’ को परेशान कर सकती हैं। आपसी झगड़े के बाद से एक छात्र नजीब जेएनयू से गायब है। जहां तक मेरी स्मृति है, यह शायद जेएनयू में अपनी तरह की पहली घटना है। हां, इसके पहले फरवरी में भी कुख्यात ‘नारेबाज़ी’ कांड के बाद कुछ छात्र ‘भूमिगत’ हुए थे, लेकिन कोई लापता हो जाए, ऐसा पहली बार हुआ है। इस
उड़ी आतंकी हमले के बाद फिर सामने आया वामपंथियों का राष्ट्रविरोधी चेहरा!
वामपंथियों के गढ़ जेएनयू के छात्र-संघ में वामपंथी वर्चस्व आज से नहीं, दशकों से कायम है। कहने की बात नहीं कि वहां कश्मीर का मसला हो या नक्सलियों का, हमेशा ही वहां के छात्र-संघ में जब भी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रस्ताव आए, इन वामपंथियों ने उस पर समर्थन करना तो दूर, उसका कठोर विरोध करना ही उचित समझा। मुझे अच्छी तरह याद है कि जेएनयू के छात्रसंघ में पारित प्रस्ताव कई बार पाकिस्तान और
अन्दर ही अन्दर दरक चुका है जेएनयू में कम्युनिस्टों का दुर्ग
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में एक बार पुनः अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् को छात्रों का भारी समर्थन प्राप्त हुआ। आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई के चुनाव से हटने के बाद विद्यार्थी परिषद् एवं कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई आमने-सामने थी। इस सीधे मुकाबले में विद्यार्थी परिषद् ने भारी अंतर से अध्यक्ष, सचिव एवं सह-सचिव का पद जीत लिया। इस तरह से विद्यार्थी परिषद् दिल्ली विश्वविद्यालय में वर्ष
सावरकर ही नहीं अंबेडकर के खिलाफ भी है जेएनयू की लेफ्ट-यूनिटी
भारत में सावरकर, अम्बेडकर और वामपंथ तीनों की बहस एक कालखंड में पैदा हुई बहस है, जो आज भी प्रासंगिक है। सावरकर की राष्ट्रवादी विचारधारा वामपंथियों के निशाने पर तब भी थी, आज भी है। वहीँ अम्बेडकर, सावरकर की हिन्दू एकजुटता के अभियान से सहमत थे जबकि अम्बेडकर वामपंथियों की जमकर आलोचना करते थे। अम्बेडकर का स्पष्ट मानना था कि वामपंथी विचारधारा संसदीय लोकतंत्र के
जेएनयू चुनाव: वामगढ़ में हिली वामपंथियों की जमीन
यह आर-पार की लड़ाई है। महाभारत याद करिए। एक तरफ पांच पांडव, जिनके साथ केवल सत्य यानी नारायण, वह भी विरथ, हथियार न उठाने की प्रतिज्ञा के साथ, और दूसरी तरफ, तमाम महारथी, अतिरथी, रथी एक साथ, भीषणतम हथियारों के साथ। इस बार का जेएनयू चुनाव भी कुछ ऐसा ही है। एक तरफ राष्ट्रवाद की ध्वजा लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और दूसरी ओर लफ्फाज़ एवं झूठे वामपंथियों का एका। मज़े की बात तो यह है कि कल तक एक-दूसरे को पानी पी-पीकर कोसने वाले…
वामपंथी क्रांतिकारियों के गढ़ जेएनयू का सच!
जब जेएनयू से ख़बर आयी कि एक वामपंथी नेता ने अपने ही साथ पढ़नेवाली छात्रा-कार्यकर्ता के संग बलात्कार किया है, तो सच पूछिए मुझे आश्चर्य तक नहीं हुआ। मनोविज्ञान के मुताबिक जब आप लगातार दुखद और खौफनाक घटनाओं से दो-चार होते रहते हैं, तो धीरे-धीरे उसके प्रति एक स्वीकार्यता का भाव आपमें आ जाता है। जेएनयू में वामपंथियों द्वारा बलात्कार न पहली और न ही आखिरी घटना है।
जेएनयू बनाम एनआईटी- अभिव्यक्ति और असहिष्णुता के मापदंड
राजीव रंजन प्रसाद लेखकीय जमात में मॉस्को से लेकर दिल्ली तक घनघोर शांति है। समाजसेवा की दुकानों में इस समय नया माल उतरा नहीं है। वो येल-तेल टाईप की चालीस-पचास युनिवर्सिटियां जिन्होंने जेएनयू देशद्रोह प्रकरण में नाटकीय हस्तक्षेप किये थे और कठिन अंग्रेजी में कठोर बयान जारी किये थे उनके अभी एकेडेमिक सेशन चल रहे