कांग्रेस-जेडीएस सरकार जैसे बनी थी, उसका गिरना अवश्यंभावी था!
कांग्रेस और जेडीएस सरकार के गठन से पहले न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी नहीं बनाया गया था। कर्नाटक में एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ी इन दोनों पार्टियों ने बिना किसी एजेंडे के सरकार बनाई थी। कर्नाटक में कांग्रेस व जेडीएस ने भाजपा को रोकने के नाम पर गठबन्धन किया था। इनके पास अन्य कोई कार्यक्रम नहीं था। ऐसी सरकार के गिरने में चौंकाने वाली कोई बात नहीं, इसका ये हश्र अवश्यंभावी था।
‘एजेंडा पहले ही नहीं था, अब संख्याबल भी नहीं रहा, फिर भी कुमारस्वामी से कुर्सी नहीं छूट रही’
कर्नाटक का सियासी घमासान राज्य के संचालन को कितना नुकसान पहुंचा रहा होगा, इस दिशा में कोई सोचने को तैयार नहीं है। हाथी निकल गया लेकिन पूंछ अटक गई है। पूरी कैबिनेट जा चुकी लेकिन कुमार स्वामी अभी भी बालहठ की तरह अपना पद पकड़े हुए हैं, मानो उनके सत्ता में बने रहने से रातोरात कोई चमत्कार हो जाएगा।
कर्नाटक का नाटक : बिना एजेंडे के चल रही कांग्रेस-जेडीएस सरकार की हालत अब गई, तब गई
असल संघर्ष तो कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया और कुमारस्वामी के बीच कुर्सी को लेकर है और इसका ठीकरा बीजेपी के माथे पर फोड़ने की कोशिश की जा रही है। केंद्र में कैबिनेट मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में स्पष्ट कर दिया था कि कर्नाटक का संकट गठबंधन दलों के आपसी स्वार्थ का नतीजा है
कर्नाटक : ‘122 से 78 सीटों पर पहुँचने के लिए कांग्रेस को खूब-खूब जश्न मुबारक !’
कर्नाटक चुनाव के नतीजे आने के बाद गत दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मीडिया के सामने आए और खुलकर अपनी बात देश के सामने रखी। एक घंटे से ज्यादा चली उनकी इस प्रेसवार्ता में भाजपा ने कांग्रेस के दोहरे चरित्र पर सवाल उठाया और पूछा कि क्या वाकई कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिल गया है ? क्या कांग्रेस को जनता ने सत्ता से बाहर नहीं कर दिया ? चुनाव पूर्व एकदूसरे
जेडीएस से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है !
कर्नाटक के घटनाक्रमों से एक बार फिर साबित हो गया कि कांग्रेस के लिए सत्ता साधन न होकर साध्य है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार, विशेषकर नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की मजबूरी के तहत बनने जा रही कांग्रेस-जनता दल (एस) सरकार कितनी टिकाऊ साबित होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि ये गठबंधन करके कांग्रेस ने