साईबाबा की सज़ा पर उनकी पत्नी की प्रतिक्रिया से निकलते संदेश
उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और उसके नतीजों के कोलाहल के बीच एक बेहद अहम खबर लगभग दब सी गई । राजनीतिक विश्लेषकों ने इस खबर को उतनी तवज्जो नहीं दी जितनी मिलनी चाहिए थी । उस खबर पर प्राइम टाइम में उतनी बहस नहीं हुई जितनी होनी चाहिए थी । वह खबर थी दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के शिक्षक जी साईबाबा और चार अन्य को देश के खिलाफ युद्ध
वैचारिक स्वतंत्रता की आड़ में ख़तरनाक साज़िशों का जाल
एक चर्चित पंक्ति है, ‘जब तलाशी हुई तो सच से पर्दा उठा कि घर के ही लोग घर के लूटेरे मिले’। यह पंक्ति अभी दो दिन पहले आई एक ख़बर पर सटीक बैठती है। हालांकि चुनावी ख़बरों के बीच वह ज़रूरी खबर दब सी गयी। दिल्ली विश्वविद्यालय से एक प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को वर्ष २०१४ में नक्सलियों से संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और अब गढ़चिरौली की अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई
देश के शिक्षण संस्थानों पर वामपंथियों की कुदृष्टि
इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत अवस्थित रामजस महाविद्यालय विवादों में बना हुआ है। विषय को आगे बढ़ाने से पूर्व आवश्यक होगा कि हम रामजस महाविद्यालय के इतिहास के विषय में थोड़ा जान लें। इस महाविद्यालय की स्थापना सन 1917 में प्रख्यात शिक्षाविद् राज केदारनाथ द्वारा दिल्ली के दरियागंज में की गयी थी। जहाँ से 1924 में स्थानांतरित करते हुए इसे दिल्ली के आनंद परबत इलाके में महात्मा
रामजस कॉलेज प्रकरण पर हंगामा, तो केरल की वामपंथी हिंसा पर खामोशी क्यों ?
रामजस महाविद्यालय प्रकरण से एक बार फिर साबित हो गया कि हमारा तथाकथित बौद्धिक जगत और मीडिया का एक वर्ग भयंकर रूप से दोमुंहा है। एक तरफ ये कथित धमकियों पर भी देश में ऐसी बहस खड़ी कर देते हैं, मानो आपातकाल ही आ गया है, जबकि दूसरी ओर बेरहमी से की जा रही हत्याओं पर भी चुप्पी साध कर बैठे रहते हैं। वामपंथ के अनुगामी और भारत विरोधी ताकतें वर्षों से इस अभ्यास में लगी