दत्तोपंत ठेंगड़ी : जिन्होंने हिंदू जीवन मूल्यों के आधार पर आर्थिक व्यवस्था के लिए अलग रास्ता सुझाया था
दत्तोपंत जी बचपन में ही संघ के साथ जुड़ गए थे अतः आपके व्यक्तित्व में राष्ट्रीयता की भावना स्पष्ट रूप से झलकती थी। आपके व्यक्तित्व का चित्रण करते हुए भानुप्रताप शुक्ल
एक दलित नेता से ज्यादा राष्ट्र निर्माता हैं डॉ अंबेडकर
आज के दिन 14 अप्रैल 1891 को बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म हुआ। बाबा साहब ने अपने उच्च आदर्शों के सामने कभी भी अपनी विशिष्ट छवि की चिंता नहीं की।
भारतीयता के प्रबल पक्षधर थे दत्तोपंत ठेंगड़ी
स्वदेशी आंदोलन के सुत्रधार और महान सेनानी दत्तोपंत ठेंगड़ी जी भारतीयता के सबसे बड़े पैरोकार थे। इस विषय पर वे किसी भी परिस्थिति से समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे, इसके बाद भी वह आधुनिकता के प्रबल पक्षधर थे। उनका कहना था कि ‘ऐसी आधुनिकता जो हमें हमारी जड़ों से जोड़कर रखे’ जबकि पश्चिम के अंधानुकरण के कीमत पर वो आधुनिकता को स्वीकार करने के विरुद्ध थे। भारतीय संस्कृति
भारतीय अस्मिता और विकास को समर्पित थे दत्तोपंत ठेंगड़ी
भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अपने पूरे जीवन को राष्ट्र पुनर्निमार्ण के लिए समर्पित कर दिया। उनका हर प्रयास भारतीय अस्मिता और विकास के लिए प्रेरित था। वो भारत के सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति भी सजग रहते थे। अपने लेखन और उद्बोधनों में वह अक्सर कहा करते थे कि हमारी संस्कृति का उद्देश्य संपूर्ण विश्व को मानवता की पथ पर अग्रसर करना है, जहां से हमारी राष्ट्र पुननिर्माण की
मजदूरों के कष्टों को निकट से समझते थे दत्तोपंत ठेंगड़ी
भारतीय मजदूर संघ और स्वदेशी आंदोलन के अग्रदूत पूज्य दत्तोपंत ठेंगड़ी का नाम जेहन में आते ही एक महान सेनानी, राष्ट्रवादी संगठनों के जनक, विचारक तथा आचरण एवं संस्कारयुक्त जीवन जीने वाले एक सन्यासी की छवि उभरकर सामने आती है। उनका व्यक्तित्व अत्यंत ही सहज था, उन्होने गांव-गरीब और मजदूर वर्ग के अंतर्मन में सम्मान के साथ जीने की लालसा उत्पन्न की।
मानव-कल्याण और राष्ट्र उत्थान के लक्ष्य को समर्पित व्यक्तित्व थे दत्तोपंत ठेंगड़ी
भारत वर्ष में महापुरुषों के अवतरण की एक पौराणिक परंपरा रही है। हर युग में माँ भारती का गोद महापुरुषों की दिव्य कीर्ति से आलोकित होता रहा है। और इन महापुरुषों ने अपने तपश्चर्य और साधना की परंपरा में एक ही ध्येय को शामिल किया, वो था माँ भारती को परम वैभव तक पहुंचाने का लक्ष्य।