नक्सलवाद

कम्युनिस्टों की हिंसक विचारधारा एवं भारत विरोधी सोच को उजागर करती है ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’

फिल्म में एक संवाद है- “बस्तर की सड़कें डामर से नहीं, जवानों के खून से बनी हैं”। बस्तर की 55 किलोमीटर लंबी एक सड़क के लिए 41 जवानों का बलिदान हुआ है।

मोदी सरकार के प्रयासों से खत्म हो रहा है नक्सलवाद

पिछले तीन साल में सुरक्षा बलों के 40 नए कैंप खोले गए हैं और 15 खोले जाने हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में मोबाइल टावरों की संख्या बढ़ाई गई है।

यूएपीए : नकाब में छिपे आतंकियों और नक्सलियों को बेनकाब करने वाला क़ानून

आतंकी हों या नक्सली, इन्हें नैतिक समर्थन उन तथाकथित पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोगों से भी मिलता रहता है, जो शहर के ऐशो-आराम में रहकर देश की आत्मा पर आघात करते रहते हैं। वैसे तो ऐसे ज़्यादातर लोगों की खुद-ब-खुद पहचान हो चुकी है कि ये एक ख़ास वैचारिक गुट के सिपाहसालार हैं,

उस शहरी नक्सलवाद को पहचानिए, जो आपके इर्द-गिर्द मुखौटा लगाकर मौजूद है!

पिछले दिनों वामपंथी विचारधारा से जुड़े पांच बुद्धिजीवियों की गिरफ़्तारी के बाद एक शब्द की बहुत चर्चा हो रही है- शहरी नकसली। महाराष्ट्र पुलिस ने कई शहरों में छापेमारी करके इन बुद्धिजीवियों को नक्सलियों से संपर्क रखने के संदेह में हिरासत में लिया है। पिछले साल भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा की जांच के सिलसिले में ये गिरफ्तारियां हुई हैं। गिरफ्तार किये गए लोगों में कोई

छत्तीसगढ़ : नक्सलियों और उनके समर्थकों के मुंह पर तमाचा है मतदान प्रतिशत में वृद्धि!

छत्तीसगढ़ में पहले दौर के मतदान के साथ ही एक बात सामने आ गई है कि देश की जनता आगे के पांच राज्यों के चुनावों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाली है। छत्तीसगढ़ के मतदाताओं ने जिस तरह खुलकर मतदान किया है, उससे यही ज़ाहिर हो रहा है कि जनता धमकियों से डरती नहीं है और अपने मताधिकार के प्रयोग के लिए जोखिम भी मोल ले सकती है।

यूँ ही नहीं कहा जा रहा कि नक्सलियों की समर्थक है कांग्रेस!

गत 3 नवम्बर को कांग्रेस नेता राज बब्बर ने एक बयान में नक्सलियों को क्रांतिकारी बताया जिसपर काफी हंगामा मचा। हालांकि बाद में उन्होंने इस बयान पर सफाई देते हुए कहा कि उनके बयान का कुछ और मतलब था, लेकिन बात तो निकल चुकी थी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बयान के संदर्भ में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए छत्तीसगढ़ की एक चुनावी रैली में कहा कि कांग्रेस शहरी

मोदी सरकार की रणनीतिक कुशलता से खत्म हो रहा नक्सलवाद !

भारत की आंतरिक सुरक्षा की चर्चा जब भी होती है, नक्सलवाद की समस्या एक बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने उपस्थित हो जाती है। नक्सलवाद, भारत की शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए एक बड़ी और कठिन बाधा के रूप में सत्तर-अस्सी के दशक से ही उपस्थित रहा है। हर सरकार अपने-अपने ढंग से नक्सलवाद से निपटने और इसका अंत करने के लिए प्रयास भी करती रही है। वर्तमान मोदी सरकार ने भी सत्तारूढ़

नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही सड़कें

इस बात में कोई संदेह नहीं कि सड़कें धीमी गति से ही सही, नक्सलगढ़ की छाती पर सवार हो रही हैं और परिवेश बदल रहा है। भय का वातावरण सड़कों के आसपास से कम होने लगा है। रणनीतिक रूप से पहले एक कैम्प तैनात किया जाता है, जिसे केंद्र में रख कर पहले आस-पास के गाँवों में पकड़ को स्थापित किया जाता है। आदर्श स्थिति निर्मित होते ही फिर अगले पाँच किलोमीटर पर एक और

वैचारिक स्वतंत्रता की आड़ में ख़तरनाक साज़िशों का जाल

एक चर्चित पंक्ति है, ‘जब तलाशी हुई तो सच से पर्दा उठा कि घर के ही लोग घर के लूटेरे मिले’। यह पंक्ति अभी दो दिन पहले आई एक ख़बर पर सटीक बैठती है। हालांकि चुनावी ख़बरों के बीच वह ज़रूरी खबर दब सी गयी। दिल्ली विश्वविद्यालय से एक प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को वर्ष २०१४ में नक्सलियों से संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और अब गढ़चिरौली की अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई