काटजू के बयान से ज्यादा ‘जंगलराज’ से शर्मिंदा होता है बिहार, नीतीश जी!
नेताओं के लिए बड़ा आसान होता है कि कोई भावनात्मक मुद्दा पकड़ लो और तुरंत अपने को राज्य और लोगों का हितैषी साबित कर दो। वो भी बिना कुछ किए धरे। यह सियासत का वह शॉर्टकट है, जिसे अपनाकर ज़मीन से कटे और जनता की नज़रों से गिरे हुए नेता भी चमक जाते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस शॉर्टकट के पुराने खिलाड़ी हैं। जब-जब उनकी छवि पर ग्रहण लगता है और उनके अस्तित्व पर
यूपी चुनाव आते ही लामबंद होने लगा असहिष्णुता गिरोह
असहिष्णुता की बहस को गुजरे अधिक समय नहीं हुआ। यदि आप असहिष्णुता की पूरी बहस में सक्रिय गिरोह की भूमिका को याद करें तो यह बिहार चुनाव से ठीक पहले सक्रिय हुआ था और बिहार चुनाव के ठीक बाद असहिष्णुता की पूरी बहस शांत हुई थी। चुनाव के दौरान अखलाक की हत्या को कमान बनाकर वामपंथी गिरोह ने बिहार चुनाव में तीर चलाया था। खैर, नीतीश की जीत के बाद असहिष्णुता की पूरी