न्याय

‘बलात्कार की इन घटनाओं के लिए केवल आरोपी नहीं, समाज भी जिम्मेदार है’

हर आँख नम है, हर शख्स शर्मिंदा है, क्योंकि आज मानवता शर्मसार है, इंसानियत लहूलुहान है। एक वो दौर था जब नर में नारायण का वास था लेकिन आज उस नर पर पिशाच हावी है। एक वो दौर था जब आदर्शों नैतिक मूल्यों संवेदनाओं से युक्त चरित्र किसी सभ्यता की नींव होते थे, लेकिन आज का समाज तो इनके खंडहरों पर खड़ा है। वो कल की बात थी जब मनुष्य को अपने

‘इस चुनाव में ना तो कोई सत्ताविरोधी लहर है, ना ही विपक्ष के पक्ष में हवा’

देश में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग हर राजनैतिक दल मतदाताओं को “जागरूक” करने में लगा है। लेकिन इस चुनाव में खास बात यह है कि इस बार ना तो कोई सत्ताविरोधी लहर है, ना ही सरकार के खिलाफ ठोस मुद्दे और ना ही विपक्ष के पक्ष में हवा। बल्कि अगर यह कहा जाए कि समूचे विपक्ष की हवा ही निकली हुई है तो भी गलत नहीं होगा।  क्योंकि जो

अप्रासंगिक हो चुके कानूनों को ख़त्म करने की जरूरत

26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान बनकर तैयार हुआ था। लिहाजा इसे देश में संविधान दिवस के तौर पर याद किया जाता है। आज जब हम इस दिवस को संविधान दिवस के रूप में याद कर रहे हैं तो हमे इसके बहुआयामी पक्षों पर विचार करते हुए याद करने की जरूरत है। आजादी से पूर्व एवं आजादी के बाद देश में जरूरत के अनुरूप तमाम कानून बनाए गए और उन कानूनों को लागू भी किया गया। लेकिन बड़ा