पंजाब की पराजय से सबक लें केजरीवाल
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की कामयाबी जितना चमत्कृत करती है, उतना ही पंजाब में आम आदमी पार्टी की नाकामी। यह नाकामी इसलिए भी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि दिल्ली की भांति केजरीवाल ने पंजाब में शपथ ग्रहण समारोह और चुनावी वायदों को पूरा करने का तिथिवार कार्यक्रम घोषित कर रखा था। इतना ही नहीं, पार्टी ने जीत का जश्न मनाने के लिए भारी-भरकम बंदोबस्त कि
ईवीएम पर सवाल उठाने की बजाय हार के कारणों पर आत्ममंथन करें विपक्षी दल
पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हो गये हैं और परिणाम भी सबके सामने आ चुके हैं। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भाजपा प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने की तैयारी में है तो वही मणिपुर और गोवा में भाजपा की सरकारें बन चुकी हैं। यानी पंजाब के अलावा अन्य राज्यों के चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है। स्पष्ट है कि जनता ने केंद्र की मोदी सरकार के लोक कल्याण से जुड़ी योजनाओं व विकासवादी एजेंडे के
दो सालों के शासन में पूरी तरह से नाकाम रही है केजरीवाल सरकार, बिगड़ी दिल्ली की हालत
विकास के नारे के साथ एक दिल्ली के मुख्यमंत्री बनाने वाले केजरीवाल की आप सरकार को दो साल का समय पूरा हो चुका है। दिल्ली के मतदाताओं को स्वच्छ राजनीति, लुभावने वादों और विकास का सब्जबाग दिखाकर केजरीवाल सत्ता तक तो पहुंच गए, लेकिन उनके कार्यकाल में विकास के नाम पर एक पत्ता भी नहीं हिला है। दो साल का समय बीता तो सिर्फ दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग और केंद्र
दिल्ली में तो सरकार चल नहीं रही और पंजाब में खूंटा गाड़ने चले हैं केजरीवाल!
दिल्ली चुनाव के समय दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शिला दीक्षित के घोटालों के खिलाफ तीन सौ पन्ने के सबूत अपने साथ लेकर घूमने वाले अरविन्द केजरीवाल जब पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में आए तो वे तीन सौ पन्ने के सबूत की बात केजरीवाल ऐसे भूले कि फिर कभी उनके श्रीमुख से उनका जिक्र भी सुनने में नहीं आया। आज वे लगभग डेढ़ साल से दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, लेकिन शिला दीक्षित के विरुद्ध एक