सनातन संस्कृति और राष्ट्रवादी चेतना की प्रतिमूर्ति थे पं मदन मोहन मालवीय
पंडित मदनमोहन मालवीय जी का संपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक जीवन स्वदेश के खोए गौरव को स्थापित करने के लिए प्रयासरत रहा। जीवन-युद्ध में उतरने से पहले ही उन्होंने तय कर लिया था कि देश को आजाद कराना और सनातन संस्कृति की पुर्नस्थापना उनकी प्राथमिकता होगी। 1893 में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। बतौर वकील उनकी
बिना राष्ट्रीयता का भाव उत्पन्न किए देश का उद्धार दुष्कर है : पं मदन मोहन मालवीय
राष्ट्रीयता की भावना को एक बेहद जरुरी बात मानते हुए पं मदन मोहन मालवीय ‘भारतवासी और देशभक्ति’ शीर्षक की अपनी टिप्पणी में लिखते हैं कि ‘देशभक्ति उस भक्ति को कहते है कि जिसके आगे हम अपने को भूल जायँ, देश की उन्नति ही में अपनी उन्नति समझें, देश ही के यश में अपना यश समझें, देश ही के जीवन में अपना जीवन समझें और देश ही की मृत्यु में अपनी मृत्यु समझें। भारत का उद्धार करने वाली